पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४१

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६ ch . आदमी का शैतान आदमी होता है। आदमी अपने हमजिन्स की तबीयत को बेशक बदल सकता है हॉयह बात विचार शावेत की दृटता और स्थिरता पर निर्भर है कि किसका मन कितनी देर में बदल सकता है। भगवानी औरत की जात है जिनका मन बनिस्बत मर्दो के बहुत कमजोर होता है। ऐसे को यदि तीन धूता की लच्छेदार बातों ने जो आपके यहा कैद थे मौका पाकर बदल दिया तो कोई आश्चर्य की बात नहीं इससे इस बात को निश्चित नहीं कर सकते कि भगवानी अवश्य पहिले से ही खोटी थी या पहिले अच्छी थी यीच में खोटी बना दी गई। कमलिनी-( भैरोसिह के विचार से प्रसन्न होकर ) येशक तुम्हारा कहना बहुत ठीक है में स्वीकार करती हूँ। देवी -- भैरासिह की पाठ मुहब्बत से ठोंक कर ) शाबाश में यह जानकर प्रसन्न हुआ कि तुम मन को अवस्था का अच्छी तरह समझते हो जिसका नतीजा भविष्य में बहुत अच्छा निकलेगा। ईश्वर हमारे उस मनोरथ को पूरा फर जिसक लिए इस समय तेजी और घबडाहट के साथ हम लाग जा रहे है तो किसी समय इस विषय पर बहुत सी बातें मै तुमसे कहा। इन लागा का राह चलने या स्थान साजने में किसी तरह की कठिनता न हो इसलिए विधाता ने आसमान पर कुदरती माहताव जला दी थी और वह क्रमश ऊची होकर पृथ्वी क इस खण्ड की उन तमाम चीजों को जो किसी आड़ में न थी साफ दिखाई देने में सहायता कर रही थी। यही सवय था कि इन लोगों को उन कठिन रास्तों पर चलने में विशेष कष्ट न हुआ जा बहुत ही पथरीला खराव और चकावू के नक्शे की तरह पेचीला था। पहाडियों पर धूम फिर कर चढत उतरत हुए य लाग एक ऐसे स्थान पर पहुचे जिसके दोनों तरफ ऊचे पहाड़ और बीच में एक यारीक पगडण्डी थी जिसके देखने से साफ मालूम होता था कि कारीगरो ने बडे बडे दोकों को काटकर यह रास्ता तयार किया हा। यहाँ पर कमलिनी और लाडिली घोड़ो पर स उतर पड़ी और उन्हें एक पेडस बाध आगे की तरफ रवाना हई कमलिनी आगे आगे जा रही थी उसके पीछे लाडिली और फिर दानों ऐयार आश्चर्य से चारों तरफ देखते और यह साधते हुए जा रहे थे कि नि सन्दह अनजान आदी जिसे इस रास्ते का हाल मालूम न हो यहा कदापि न हीआ सकता। इस पाडण्डी पर दो सौ कदम जाने बाद साफ पानी से भरा हुआ एक पतला चश्मा मिला जो इन लागेकी राह काटता हुआ दाहिने से बाई तरफ का यह रहा था। अब कमलिनीउसीनहर के किनारे किनारे वाई तरफ जाने लगी मगर अपनी तज निगाह उन छाटे छाट जगली पेड़ों पर बडी सावधानी से डालती जाती थी जो उस चश्मे के दोनों किनारो पर बडी खूबी और खूबसूरती के साथ खडे इस समय की ठडी ठंडी हवा के नर्म झोको मे नए शराबियों की तरह धीरे धीरे झूम रहे थे। यकायक कमलिनी की निगाह एक ऐसे पेड पर पड़ी जिसके दोनों तरफ पत्थरी के ढोके इस तौर पर पड़े हुए थे मानों किसी न जानयूझ कर इकटठे किये हो। यहा पर कमलिनी सकी और कुछ सोचने बाद अपने साथियों को लिय चश्में क पार उतर गई जिसके आगे थोड़ी ही दूर जान बाद ढालवी जमीन मिली मगर लाडिली और दोना ऐयार कमलिनी के पीछे पीछे चले ही गय! दा सौ कदम से ज्यादे न गये होंगे कि ये लोग एक गुफा के मुहाने पर पहुच कर रुक गये। कमलिनी नदवीसिह स मामसत्ती जलान के लिए कहा और जब मोमबत्ती जल तो सब उस खोह के अन्दर घुसे। खोह की अवस्था दखने से जाना जाता था कि वर्षों से इसकी जमीन ने किसी आदमी के पैर न चूमे होंगे बल्कि कह सकते है कि शायद किसी जगली जानवर न भी इसके अन्दर आने का साहस न किया होगा। थाडी ही दूर पर खोह का अन्त हुआ और इन लागो न अपने सामने लोह का एक चन्द दर्वाजा दया। कमलिनी ने लाडिला पर एक भेद भरी निगाह डाली और कहा इस दर्षाजे का हाल र गोपालसिह के सिवाय कोई भी नहीं जानता। मुझे तो खून से लिखी किताब की बदौलत इसका हाल मालूम हुआ है इसकी चादी भी इसी जगह मौजूद है । यह कह कर कमलिनी ने तिलिस्मी खजर के पंज सदबाज क दाहिनी तरफ वीचों बीच की जमी ठोकी जा वास्तव में किसी धातु की थी मगर मुदत से काम में न आने के कारण उसका रग पत्थर के रग म मिल गया था। टुकन साथ ही बित्ते भर का एक पल्ला अलग हो गया और उसके अन्दर हाथ डाल कर कमलिनी न कोई पेच दबाया और इसके साथ ही हल्की आवाज देता हुआ दवाजा खुल गया। कमलिनी ने उस खिडकी का बन्द कर दिया जिसके अ५२ हाथ डालकर पच छुनाया था और इसके बाद सभों को लिए हुए दाज के अन्दर चली गई। दर्वाजा खालने के लिए जिस तरह की चाभी इस तरफ थी उसी तरह की दर्याजे के दूसरी तरफ भी थी अर्थात दूसरी (रिफ भी उसी तरह की ताली और पच मौजूद थी जिसे घुमा कर कमलिनी ने दवाजा थद किया और गाथियों को साथ लिए हुए आग की तरफ बढी। इन सभों को घटे भर तजी के साथ जाना पड़ा और इसके बाद मालूम हुआ कि सुरम के दूसरे मुहान पर पहुच गय क्योंकि यहा भी उसी रग ढग का दर्शजा बना हुआ था। कमलिनी ने उस दर्वाज को भी खाला और सभा का साथ लिय हुए अन्दर चली गई। यहा पर रास्ता दो हा गया था अर्थात एक सुरग बाई तरफ गई हुई थी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ $