पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

में आपका मतलब समझ गया। कहकर भरसिह न अटी लेकर अपनी उगली मै पहिर ली! कमलिनी 1- मर इस कहन म तुमन क्या मतलब निकाला ? मेस इगदा क्या समझे? भैरा-रही कि अग्प लाग गयो मनोरम्त और शिवदत बन कर उन दुश्मनों का धोखा दिया चाहत है क्शेवि व लागअनी त व्हद उथल पुथल मचाने पर भी आपक मकान के बाहर न हुए होग। कमलिनी -शायाश तुम्हारी बुद्धि बड़ी तेज है दशा मरा नही इरादा है। दा दफे करके हिफाजत के साथ चारों आदमियो ने किशोरी कामिनी और तारा का सुरंग के बाहर निकाला और दवीसिह तथा भैरासिह बडी मुस्तैदी से किशारा कामनी और तारा का इलाज कराल्ग। जब कमलिनी का इस बात का निश्चय हा गया कि अब इन तीनों की जान का खौफ नहीं है तथ वह दवीसिह और लाडिली को साथ लेकर फिर उसी सुरग में घुसी । अवको दफे वह कैदखाने वाली काठरी में गई और वहा कारवाई का पूरा मौका पाकर इन ती ने माधवी मनोरमा और शिवदत्त बन जो कुछ किया उसका हाल हम ऊपर के बयानों में लिख चुके हैं ! पाठक महाराय अन आप यह तो समझ ही गय होंग कि दुश्मना न खाज दूड कर तहखाने में से जिन केदियों को निकालावे वास्तव में माधवी मनोरमा और शिवदत्त न य चल्कि कमलिनी लाडिली और दीसिह थे। खैर अब इस तरफ आइए और किशोरी कामिनी तथा तारा का हाल देखिये जिसकी हिफाजत के लिए केवल मेरासिह रह गय था ताकत पहुचाने वाली दवाओं की घरकत से किशारी कामिनी और तारा ने उस समय आखोली जब आसमान पर सुबह की सुफैदी फल चुकी थी। पुरवस निकल कर कमश फैल जाने वाली लालिमा रात मर तजी के साथ चमकने वाल सितारों ओर सवार चन्ददव को सूर्यदव के अगाई की सूचना दे रही थी और इसी समय से तारों समत तारापति भी नौ दो ग्यारह हान के उद्योग में लगे हुए थे तथा भैरासिह आसमान की तरफ मुंह किये बड़ी दिलचस्पी के साथ इस शोमा का देख कर साच रहा था कि वाह ईश्वर की भी क्या विचित्र गति है ? करोडो आदमी एसे हॉग जो चन्ददेव की यह अवस्था दक्ष सूर्यदय ही के ऊपर इनसे बैर रखने का कलक लगाते हाग जिनकी बदौलत चन्द्रमा में रोशनी है और वह खूबसूरती तथा उद्दीपन का मसाला गिना जाता है। इस समय भैरासिह का यह देख कर कि किशारी कामिनी और तारा न आँखें खालदी है बडी खुशी हुई और उसने समझा कि अब मेरी मेहनत ठिकाने लगी मगर अफसास उस इस बात की कुछ खबर न थी कि बदकिस्मती ने अभी तक उन लोगो का पीछा नहीं छोड़ा या विधाता अभी भी उन लोगों के अनुकूल नहीं हुआ। आठवां बयान भगवानी का भूतनाथ के हवाले कर के जव कमलिनी चली गई तो भूतनाथ एक पत्थर की चट्टानपर बैठ कर साचन लगा । स्यामसुन्दरसिंह किसी काम के लिए चला गया था और भगवानी उसके सामन दूसरी चट्टान पर मिर पकडे बैठी हुइ थी। उसके हाथ पैर छुले थ मगर भूतनाथ क सामन से भागजान की हिम्मत उस न थी। भूतनाथ क्या सोच रहा था या किस विचार में डूबा हुआ था इसका पताअभी न लगता था मगर उसक ढग से इतना जरुर मालूम हाता था कि वह किसी गम्भीर चिन्ता में डूबा हुआ है जिसमें कुछ कुछ लाचारी ओर बधग की झलक भी मालूम हाती थी। वह घन्टों तक न जान क्या क्या साथता रहा और बहुत देर बाद लम्बो सास लकर धीरे स बोला बेशक वही था और अगर यह था तो उसने मुझ अपनी आँखा की ओट होन न दिया हागा यह वास भूतनाथ ने इस दग स कही मानों वह स्वयं अपने दिल को सुना रहा और आगे भी कुछ कहा चाहता है मगर पास ही स किसी ने उसकी अधूरी बात का यह जवाव द दिया- हा आखों की ओट नहीं होने दिया । मूतनाय चौक पडा ओर मुड कर पीछ की तरफ देखन लगा। उसी समय एक आदमी भूतनाथ की तरफ बढता हुआ दिखाई दिया जा तुरन्त भूतनाथ के सामन आकर खड़ा हो गया। चन्द्रदव जिनको उदय भये अभी आधी घड़ा भी नहीं हुई थी इस नव आय हुए मनुष्य की सूरत शक्ल को अच्छी तरह नहीं तो भी बहुत कुछ दिखा रहे थे। इसका कद नाटा सदन गठीला और मजबूत थारायद्यपि काला तान या मगर गारा भी न था। चहरा कुछ लम्बा सिर पर बडे वड पुंघराल बाल इतन चमकदार और खूबसूरत थे कि एयारा को उन पर नकली या बनावटी हान का गुमान हो सकता था। चुस्त पायजामा और घुटने तक का चपकन जिसमें बहुत से जेब थे पहिरे और उस पर रशमी कमरबन्द बाधे कमरबन्द ही नहीं बल्कि कमरबन्द के ऊपर यशकीमत कमन्द इस खूबसूरती के ढग से लपट हुए था कि देखने से औरों को तो नही मगर ऐवारों को बहुत ही खूबसूरत जचती हागी। कमर में पाई तरफ लटकने वाली तरवार की म्यान साफ कह रही थी कि में एक हलकी पसली तथा गजुक तलवार की हिफाजल कर रही हू पीठ पर गोड़ की एक छोटी सी ढाल हुएथा केवल चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११