पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४५

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लापरवही के ढग के होते हैं और इसके विपरीत भूतनाथ के मुह से निकले हुए शब्द उसकी बेबसी लाचारी और कमजोरी की सूचना देते हैं। साफ साफ जान पडता हैकि भूतनाथ इससे दयता है और इसका इस समय यहा आना भूतनाथ को बहुत बुरा मालूम हुआ है। नि सन्देह इसमें और भूतनाथ में काई मद की बात गुप्त है जिस भूतनाथ प्रकट नहीं करना चाहता! जो हो पर मुझे इन बातो से क्या मतलब ? सच तो यों है कि इस समय इसका यहा आना मेरे लिये बहुत मुबारक है। साफ देख रही है कि वह मुझे चले जाने का हुक्म दे रहा है और भूतनाथ जार करके उसका हुक्म टाल नहीं सकता अतएव विलम्ब करना नादानी है जहा तक जल्द हा सके यहा से भाग जाना चाहिए यद्यापि कमलिनी ने वादा किया है कि किशारी कामिनी और ताराक मिल जाने पर तेरी जान छोड़ दी जायेगी-फिर भी पराधीन और खतरे में तो पडी ही रहूगी । कौन ठिकाना तारा कामिनी और किशारी भूख प्यास की तकलीफ से मर गई हों और इस सवय से कमलिनी क्रोध में आकर मेरा सिर उतार ले नहीं नहीं एसा न हाना चाहिये। इस समय ईश्वर ही ने मेरी मदद की है जो इस आदमी को यहा भेज दिया है अस्तु जहा तक हो सके भाग जाना ही उचित है। इन बातों का सोचकर भगवानी उठ यडी हुई ओर घन जगल की तरफ रवाना हो गई। फिर फिर कर देखती जाती थी कि कही भूतनाथ मेरे पीछे ता नहीं आता मगर एसा न था और इसलिए वह खुशी खुशी कदम बढाने लगी। उसने यह भी साच लिया था कि माधवी मनोरमा और शिवदत्त मेरी बदौलत छूट गये है इसालये उन तीनों में से चाहे जिसके पास मै चली जाजगी मरी कदर होगी और मुझे किसी बात की परवाह न रहेगी। भगवानी स्वयम् तोचली गई मगर घबराहट में उसने उन कीमती जघरों और जवाहिरात की चीजों की गठरी उसी जगह छोड दीजो कमलिनी के घर से लूट कर लाई थी। यह गठरी अभी तक उसी जगह एक पत्थर क ढोंके पर पड़ी हुई थी और इस पर किशोरी कामिनी तथा तारा को छुडाने की जल्दी में कमलिनी ने भी विशेष ध्यान न दिया था तो भी एक तौर पर यह गठरी भी भूतनाथ के ही सुपुर्द था। नगदानी को इस तरह चले जाते देख नूतनाथ की ऑखों में खून उतर आया और क्रोध के मारे उसका ददन कॉपने लगा। उसन जोर से जफील ( सीटी) बुलाई और इसके बाद उस आदमी की तरफ देख के बोला- भूत-देशक तुमन बहुत बुरा किया कि भगवानी का यहा स विदा कर दिया मैं तुम्हारी इतनी जबदस्ती किसी तरह बर्दाश्त नहीं कर सकता । आदमी-( जाश के साथ ) तो क्ण तुम मरा मुकाबला करागे ? कह दा कह दो-हाँ कह दो ॥ भूत -आखिर तुममें क्या सुरखाय का पर लगा हुआ है जो इतना बढे चले जाते हो |मैं भी ता मर्द 11 आदमी-(बहुत जोर से हस कर -जिससे मालूम होता था कि बनावटी हसी है) हाँ हाँ मैं जानता है कि तुम मर्द हो और इस समय मेरा मुकाबला किया चाहते हो । यह कह कर उसने पीछे की तरफ दखा क्योंकि पत्तों की खडखडाहट तेजी के साथ किसी के आने की सूचना दने लगी थी। पाठकों को याद होगा कि कमलिनी यहा पर अकेले भूतनाथ को नहीं छोड़ गई थी बल्कि श्यामसुन्दरसिह को भी छाड गयी थी । कमलिनी क चले जाने बाद श्यामसुन्दरसिह भूतनाथ की आज्ञानुसार यह देखने के लिए वहा से चला गया था कि जगल में थोड़ी दूर पर कहीं कोई ऐसी जगह है जहा हम लोग आराम से एक दिन रह सकें और किसी आने जाने वाल मुसाफिर को मालूम न हा। यही सबब था कि इस समय श्यामसुन्दरसिह यहाँ मौजूद न था और भूतनाथ ने उसी को बुलाने के लिए जफील दी थी जिसके आन की आहट इन लोगों को मिली। आदमी-(भूतनाथ स) मैं ता पहिले ही समझ चुका था कि तुम श्यामसुन्दरसिह हो चुला रहे हो मगर तुम विश्वास करा कि उसक आने से मै उरता नहीं है बल्कि तुम्हारी बेवकूफी पर अफसोस करता हू। मर्द आदमी तुमने इतना न सोचा कि ज्य भगवानी के सामन तुम मेरी बातों को सुन नहीं सकते थे तो श्यामसुन्दरसिह के मामने कैसे सुनाग ? खैर मुझ इन बातों से क्या मतलब तुम्हें अख्तियार है चाहे दो सौ आदमी इकटठे कर ली । भूत-(घबराहट की आवाज से ) तुम तो इस तरह की बातें कर रहे हो जैसे अपने साथ एक फौज लकर आये हो । आदमी-बेशक ऐसा ही है (दो कदम आग बढ़ कर और अपने हाथ की वह गठरी दिखा कर जिसमेंकाई चीज लपटी हुई थी) इसक अन्दर एक एसी चीज है जिसका होना मेरेसाथ वैसा ही है जैसा तुम्हारे साथ एक हजार बहादुर सिपाहियों का हाना । क्या तुम नहीं जानतं कि इसके अन्दर क्या चीज है ? नहीं नहीं तुम बेशक समझ गये होगे कि इस कपड़े कोअन्दर (कुछ रुक कर हा टीक है पहिला नाम चाहे कुछ भी हो मगर अब हमको उसे तारा ही कह कर युलाना चाहिये-अच्छा तो हम क्या कह रहे थ? हाँ याद आया इस कपड़े के अन्दर तारा की किस्मत बन्द है। क्या तुम 'इसे योलन के लिए हुम्म देत हो? मगर याद रक्खा कि खुलन के साथ ही इसमें से इतनी कडी ऑच पैदा हागी कि चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११