पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४६

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Gri जिसे दखत ही तुम भरून हा जाओग चाह वह आयमर दिल को कितना ही तण्डा क्या कर। भूत-(काप कर और दा कदम पीछे हटकर ) उहरा पनी 7 करा म हाथ जोगना , जरा सब करो । आदमी-अच्छा क्या चाहतेहा जल्दी का भूत-पहिल यह बताआ कि आज एसे समय में तुम मेरे पास थे ? आदमी-(जोर से इस कर) क्या येवकूफ आदमी है ! अपन६६. हो कर मैं उसी दिन स तुझ याज रहा होऊगा जिस दिन तून मुझ पर सफाई काथ फरा था मगर लाचार था कि तरा पता ही नहीं लगता था। मनही जानता था कि मृग्नाथ के चोले र अन्दर वही गमी सूरत छिपी हुई है जिस में वर्षों से दढ रहा हू अगर जाता तो कभी का तुझसे मिल चुका हाता इतने दिन मुफ्त में गवा कर आज की नीयत न आइ हाती ! अच्छा पूरी और क्या पूछत हो। भूत-बहुत देर तक सोधन के बाद सिर नीचा कर का क्या में अशा कर सकता है कि यो दिन तक तुम मुझ और छाड दाग में प्रतिज्ञा करता हु कि इस बार रदपतुझसे मुलाकात करुगा। उर समय तुमसुशी समर किनार लना मुझ कुछ भी रजन होगा। सादमी-स्रि उतारना , भूत-ही मरा सिर उपर लना मुड़ी कुछ भी दुख होगा। आदमी-या सिस्तार लेने र बेदना पूरा हो जायगा ? मूत-क्यों नहीं क्या इसभेसादक काई सजा है? आदमी-मै स्मदाता टूपि यह कुछ ग सजा नहीं है क्या तुम नहीं जाना किग्य बुज-लागजिन्हें दान भी मह सकते है ना मी यात गर असान अपनहायस याद कर दत है और अपनी टीगना हो गहत तथा एसा करतसन्य उन्हें कुछ भी दुख नोोता । भूत- कॉप कर ) ता ज्या तुमने सभी कडे, रजा भर लिय संगच ली है? आदमी-बश. बदला जसारा कहने का उमकबराबर हो जिसका दिला लिया जाय। भूतनाथ-(लम्बी सार हर वास्तवम गु: टीक कटन हा में जो भी शेर में मुद्दत से पड़ा हुआई (रुक कर) खैर यह बताआ कि हमार तुम्हार धीच कम तरह का माननात हा सकता है या तुम थोडे दिन के लिए मुझे छाउ मकले हानग कि मैं पहिल कह चुका हूं? आरपी-नही बल्कि तुम् इसी मय भार स्मथ बलाह मूत-हाँ? आदमी-जहाँ मैलचलू भूत-ज्यदस्ती । आदमी-हा जयदी । भूत-एना नहीं हा सरता । आदमी-ऐप ही हागा । भूत-तुम अपनी ताकत पर नरासा करते हो? आदमी-हा अपनी ताकत पर और तपवीर पर भी । भूत-अच्छा फिर देखें।। आदमी-अच्छा तो श्यामगुन्दरसिह के सामने ( गठरी दिखा कर ) इस सालू, तुम डरागे ता नहीं ? भूत-पाई हर्ज नहीं में स्यामसुन्दरसिह का तुम्हारी भूल सम्झा हूँ। अादमी-(हस कर) आ हा तर ते मुझे इससे बढ कर काई तदबीर करनी चाहिए अच्छा देखा । इतना कह कर उस अदभुत आदमी तीन दफे ताली बजाइ और साथ हो इसके बगल वाल पेडों के झुरमुट में से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया जिस काल म्प से सिर से पैर तक अपन का टाक रक्यता था। भूतनाथ काप कर कई कदन पछि हट गया पार पडे गार स उसकी तरफ देखने लगा और इसके बाद श्यामसुदर की तरफ निगाह परी यह जानन के लिए कि दखें इन कतो का असर उसक ऊपर क्या हुआ है मगर रात का समय और कुछ दूर हाने के कारण श्यामसुन्दररिह के कहर का उतार चढाद भूतनाथ देख न सका। भूत-(जो कडा करके ) में कैसे जान सकता हू के इस चाल कन्दर कोन छिपा हुआ है। नवा अदमी-ठीक है लय याद कहो तो में इत्त कपड़ को उतार दूं मगर नाज्जब नहीं कि मरी आवाज तुम्हारे कानों में देवकीनन्दन जत्री समन