पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४७

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भूत-(चौक पर ) वम यस यह आवाज एसो नहीं है जिस में भूल जाऊ हाय वेक्सी और मजबूरी इस कहत है। (श्यामसुन्दरसिह स ) अन तुन थोडी दर के लिए यहा से चल जाओ जब मैं जफील बुलाऊगा तब फिर आ जाना। श्यामसुन्दरसिह इस समय एफ एसा नाटक दखा था जिसका उसे गुमान भी न था। उनथानो आदमियों के जान से भूतनाथ की क्या हालत हो गई थी इसे वह खूब समझ रहा था मगर उस इस बात का आश्च्य था कि भूतनाथ जिसक नमस लागा का दिल म होल पैदा होता है इस समय ऐसा मजयूर और बक्र क्यों हो रहा है? यद्यपि भूतनाथ का पम वह टाल नहीं सकता था और उस वहाँ सटलाना ही आवश्यक था मगर साथ ही इसके वह इस सीन का भी छोड़नी सकता था। भूतनाथ की गजा पाकर वह वहा रू चला ल गया मगर घूम फिर कर बिल्ली की तरह कदम रखा हुआ लोट आया और एक पेड़ की जड में छिप कर खडा हा गया जहास वह उन तीनों को दख सकता था और उनकी बातचीत भी चरबी सुन सकता था। जर भूतनाथ न देखा कि श्यामसुन्दर चला गया ता उसने उस आदमी स कहा जा महिले आया था का मार और गुहार बीय में मेल ही हो सकता' आदमी-नहीं- भूत-फिर तुम मुझसे दना चाहत हो? आदमी-यही नि चुपचाप इगार साथ,चले चलो। इस बात का सुन कर भूतनाथ न सिर झुका लिया और कुछ साचन लगा । यह अवस्था देख कर उस आदमी न कहा ' भूत-गर मालूम हाना है कि तुम भाग को तदधार सोच रह हा मगर इस बात का खूब बाद रक्यो कि भर सामा स तुम्हारा नाम जाना बिल्कुल ही वृथा है जब तक कि यह चीज मर पास मौजूद है और भ माथी जीते है। तुम्हें फिर कहना ह कि चुण्याप भर साथ चले दला और जो कुछ मेंहू करा । भूत - नहीं नहीं में भागपा नन्द नहीं करता बल्कि इसके बदले में तुम्हारे साथ लड़ कर जान दे दा उचित , आदमी -- अगर यही इराटा है ता आआ में मुस्तैद हू यह कर कर उस आदनी ने अपने हाथ की गठरी उस दूसर आदमी के हाथ में ददी जा सिर से पैर तक फाल कपड न अपन का दाक हुए था और उसे वास चल जान के लिये कहा। वह व्यक्ति वहा से हट कर पेडों की आड़ में मायब हा गया और उस विचित्र मनुष्य ने तलवार म्यान से बाहर खैच ली भूतनाथ भी तन्नपार खैच ली और उसके सामने पैतग बदल कर आखड़ा हुआ और दानों में लडाई,शुरु हो गई। नि सन्देह भूतनाथ तलवार चलाने का फन में बहुत हाशियार ओर बहादुर यो मार श्यामसुन्दरसिह ने जा छिप कर यह तन्मशा दख रहा था मालूम कर लिया कि उसका दैरी इस कान में उससे बहुत बड धद क है क्योंकि घन्टे भर की लड़ाई में उसने भूतनाथ को सुस्त कर दिया और अपन यदन में एक जख्म भी लगन न दिया इसक विपरीत भूतनाथ क बदन में छाट छोटे कई जख्म लग चुके 2 और उनमें सख्त निकल रहा था। कपल इतना ही नहीं। श्यामसुन्दर सिंह ने यह भी मालूम कर लिया कि उस अद्भुत न जा लडाई के फ7 में भूतनाय स बहुत ही बड चढ के है कदमाकों पर जान बूझ क तरह द दिया और भूतनाव का छोड दिया नहीं तो अन तक भूतनाथ को कर का यतम फर चुका होता । मगर क्या भूतनाथ इस बात को नहीं समझता था? वेशक समझता था वह खूब जानता - कि आज मेरा दुसरान मुझसे बहुत जबदस्त है और उसने कई मौकों पर जय कि वह मेरी जगन ले सकता था जान वृझ कर तरह द दिया या अगर जख्म पहाया भी तो बहुत कम। सुष्ट हो चुकी थी। अब वहा की चीजें बिल्कुल साफ साफ दिखाई दन लगी थी। भूतनाव बहुत ही थक गया था इसलिए वह सुस्ताने के लिए ठहर गया और बड़े गौर से अपने पैरी की सूरर' परखने लगा जिसक चेहरे पर थकावट या उदासी का काई चिन्ह नहीं दीख पडता था गल्कि वह मन्द मन्द मुस्कारका और उसकी आय भूतनाथ के चेहरे पर इस ढग त पड रही थी जैस आस्तादों की निगाहे अग्न नौसिधे शानियों पर पड़ा करती है। भूतनाथ वहर गया और उसनधीनी आवाज में अपने बैरी हा अव मैल्डन की हिम्मत नही कर सकता विशण कारक इसलिय कि तुम मुझ सतर नहीं लडते पीस दुश्मनों का नउना चाहिया मसूर माना कि तुगन कर 'मौके पर नुझ आउ दिया। और उपगी भाईकेसिवाय इसके और कोई उपाय नहीं देखता कि अपने साथ से अपनी जान दा आदमी- नही नहीं भूतनाथ तुम अपन 4 से अपनी मन न दे सकत क्योकि तुम्हारी एक बहुत ही प्यारी योज मर कक्ष में है जो तुम्हारे वार तकलीफ में पड़ जायगी और जिसे तुम "लामाघाटी में छोड़ अये थे। मुझ किरदार है कि तुम उस्की रेइज्जती कसूल न क सग । चन्द्रकान्ता सन्तति भार ११