पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४८

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e - । यह एक ऐसी बात थी जिसने भूतनाथ के दिल को एक दम से ही मसल डाला और इस तकलीफ को वह सहन सका। उसका सिर घूमने लगा वह धीरे से जमीन पर बैठ गया और वह विचित्र आदमी इस ढग से उसे देखने लगा जैसे ब्याध अपने शिकार को काबू में कर लेने के बाद आशा और प्रसन्नता की दृष्टि से उसकी तरफ देखता है। श्यामसुन्दरसिह इस दृश्य को गौर से और ताज्जुप से देख रहा था। बीच में एक दफे उसकी यह इच्छा भी हुई कि झाडी में से बाहर निकले और भूतनाथ के पास पहुच कर उसकी मदद कर मगर दो बातों को सोच कर वह रुक गया एक तो यह कि भूतनाथ ने उसे वहा से विदा कर दिया था और कह दिया था कि जब हम जफील बुलाए तय आना मगर इतनी लडाई होने और हार मानने पर भी भूतनाथ ने उसे नहीं बुल या इससे साफ मालूम होता है कि भूतनाथ श्यामसुन्दरसिह का उस जगह आना पसन्द नहीं करता दूसरे यह कि उसने कमलिनी की जुबानी भूतनाथ की बहुत तारीफ सुनी थी कमलिनी जोर देकर कहती थी कि लड़ाई के फन में भूतनाथ बहुत ही तेज और होशियार है, मगर इस जगह उस विचित्र मनुष्य के सामने उसने भूतनाथ को ऐसा पाया जैसे काबिल ओस्ताद के सामने एक नौसेखा लडका। इससे यह नहीं कहा जा सकता कि भूतनाथ नादान है बल्कि भूतनाथ ने जिस चालाकी और तेजी से अपने देश का मुकाबला किया वह साधारण आदमी का काम नहीं था असल तो यह है कि भूतनाथ का वैरी ही कोई विचित्र व्यक्ति था। उसकी चालाकी फुर्ती और वीरता देख कर श्यामसुन्दरसिह यद्यपि सिपाही था मगर डर गया और मन में कहने लगा कि यह मनुष्य नहीं है इसके सामने जाकर मैं भूलनाथ की कुछ भी मदद नहीं कर सकता। इन्हीं दो बातों को सोच कर श्यामसुन्दरसिंह जहा का तहा रह गया और कुछ न कर सका। श्यामसुन्दरसिह छिपा हुआ इन सब बातों को सोच रहा था भूतनाथ हताश होकर जमीन पर बैठ गया था और उसका बैरी आशा और प्रसन्नता की दृष्टि से उसे देख रहा था कि इसी बीच में एक आदमी ने श्यामसुन्दरसिह के मोढे पर हाथ रक्खा। श्यामसुन्दरसिह चौक पड़ा और उसने फिर कर दया तोएक नकाबपोश पर निगाह पड़ी जिसका कद नाटा तोन था मगर बहुत लम्बा भी न था। उसका चेहरा स्याह रग के नकाय से ढका हुआ था और उसके बदन का कपडा इतना चुस्त था कि बदन की मजबूती गठन और सुडौली साफ मालूम होती थी। उसका कोई अग एसा न था जो कपड़े को अन्दर छिपा हुआ न हो। कमर में खजर तलवार और पीठ पर लटकती हुई एक छोटी सी दाल के अतिरिक्त यह हाथ में दो हाथ का एक डबा भी लिए हुए था। हा यह कहना तो हम भूल ही गये कि उसकी कार में कमन्द और ऐयारी का बटुआ भी लटकता दिखाई दे रहा था। श्यामसुन्दसिह ने बडे गौर से उसकी तरफ देखा और कुछ बोला ही चाहता था कि उसने चुप रहने और अपने पीछे पीछे चले आने का इशारा किया। श्यामसुन्दरसिह चुप तो रहगयामगर उसके पीछ पीछे जाने की हिम्मत न पडी। यह देख उस नकाबपोश ने धीरे से कहा डरो मत हमको अपना दोस्त समझा और धुपचाप चले आओ। देखो दर मत करो नहीं तो पछताआमे। इतना कह कर नकाबपोश ने श्यामसुन्दरसिह की कलाई पक्ड ली और अपनी तरफ खैचा। श्यामसुन्दर सिहको ऐसा मालूम हुआ कि जैसे लाह के हाथ ने कलाई पकड ली हो जिसका छुडाना कठिन ही नही बल्कि असम्भव था। अब श्यामसुन्दरसिह में इनकार करो की हिम्मत न रही और वह चुपचाप उसकेपीछे पीछे चला गया। दस बारह कदम स ज्यादे न गया होगा कि नकाययोश सका और उसने श्यामसुन्दरसिह से कहा इतना देखने पर भी तुम कमलिनी के नमक की इज्जत करते हो या नहीं? श्यामसुन्दर - बेशक इज्जत करता है। नकाबपोश-- अच्छा लो तुम उस मैदान में जाओ जहा भूतनाथ बैठा अपनी बदनसीवी पर विचार कर रहा है और उस गठरी को उठा लाओ जिसे भगवनिया चुरा लाई थी। तुम जानते हो कि उसमें लाखों रुपये का माल है। कही ऐसा न हो कि बैरी उसे उठा ले जाय । अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारे मालिक का बहुत नुकसान होगा। प्रयामसुन्दर-ठीक है मगर मैं डरता हू कि ऐसा करने से कहीं भूतनाथ रज न हो जाय । नकाबपोश-तुम्हें भूतनाथ के रज होने का खयाल न करना चाहिये बल्कि अपने मालिक के नफा नुकसान को विचारना चाहिये। इसके सिवाय मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हू कि भूतनाथ कुछ भी न कहेगा हा उसका वैरी कुछ बोले तो ताज्जुब नहीं मगर नहीं नहाँ तक मै सोचता है वह भी कुछ न बोलेगा क्योंकि वह नहीं जानता कि इस गठरी में क्या चीज श्यामसुन्दर-अगर रोके तो? नकाबपोश-मै छिप कर देखता रहूगा अगर वह तुम्हें राकना चाहेगा तो में झट से पहुंच जाऊगा और उससे लड़ने देवकीनन्दन खत्री समग्र ५४०