पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४९

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CE लगूगा तब तक तुम गठरी उठा कर चल देना। श्यामसुन्दर-अगर ऐसा ही है तो आप पहिले दहाँ जाकर उससे लडिये धीच में में पहुच कर गठरी उठा लूगा । नकाबपोश-(हस कर ) मालूम होता है कि तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं और तुम उस आदमी स बहुत डरते हो? श्यामसुन्दर-वशक एसा ही है क्योंकि मैं देख चुका हू कि भूतनाथ ऐसे जवामर्द और यहादुरको उसने कैसा नीचा दिखाया और जहा तक मैं समझता हू आप भी उसका मुकाबला नहीं कर सकते। मालूम होता है कि आपने उसकी लडाई नहीं देखी अगर देखते तो लड़ने की हिम्मत न करते। भकामपोश-नहीं नहीं मैं उसकी लडाई देख चुका है और इसी से उसके साथ लड़ने की इच्छा होती है। श्यामसुन्दर अगर ऐसा है तोविलयन कीजिये जाकर उससे लड़ाई शुरू कर दीजिए फिर मैं जा कर गठरी स्टर लूगा और चल दूगा। मगर यह तो बताइये कि आप कौन है और कमलिनीजी के लिए इतनी तकलीफ क्यों उठा रहे हैं? नकाबपोश-इसका जवाब में कुछ भी न दूंगा कुछ सोच कर) अच्छा तो अब यह बताओ कि गठरी उठालने के याद तुम कहाचले जाओगे? श्यामसुन्दर-इसका जवाब में क्या दे सकता है? जहा मौका मिलेगा चल दूगा। नकाबपोश नहीं ऐसा न करना जरों तुम्हें जाना चाहिये में बताता हूँ । श्यामसुन्दर-(चौक कर ) अच्छा बताइय नकापपोश-तुम यहा से सीध दक्खिन की तरफ चले जाना थोडी दूर जाने बाद एक पीपल का पेड दिखाई देगा उसके नीचे पहुच कर वाई तरफ घूम जान्ग एक पगडी मिलेगी उसी को अपना रास्ता समझना थोडी दूर जाने बाद फिर एक पीपल का पेड दिखाई देगा उसके नीचे चले जाना वहा एक नकाबपाश बैठा हुआ दिखाई देगा और उसी के पास हाथ पैर बंधी हुई हरामजादी भगवानी को भी देखागे जो मौका पाकर यहा से भाग गई थी। श्यामसुन्दर-(ताज्जुब में आकर ) अच्छा फिर? नकाययोश-फिर तुम भी उसके पास जाकर पैठ जाना जब मैं उस जगह आऊगालो देखा जायगा या जैसा वह नाकादपोश कहेगा वैसा ही करना। डरना मत उसे अपना दोस्त समझना। तुम देखते हो कि मैं जो कुछ कहना या परता हू उससे तुम्हारे मालिक हो की भलाई है। श्यामसुन्दर-मालूम तो ऐसा ही होता है। नकाबपोश-मालूम होता है नहीं बल्कि यह कहो कि बेशक ऐसा है। अच्छा अब तुम्हें एक बात और कहना है। श्यामसुन्दर-वह क्या? नकाबपोश-यह ता तुम दख ही चुके हो कि उस अदभुत आदमी ने भूतनाथ को अपने कब्जे में कर लिया है। श्यामसुन्दर-सो तो प्रकट ही है। नकाबपोश--अव यह भूतनाथ को अपने साथ ले जायगा। श्याम अवश्य ले जायगा इसी के लिये तो इतना बखेडा मचाये हुए है। नकायपोश-उस समय मैं भी उसके साथ साथ चला जाऊगा। श्यामसुन्दर-अच्छा तब? नकाबपोश - रात को तुम अपने साथी नकाबपोश और भगवानी को लेकर उस समय इसी जगह आ जाना जिस समय कमलिनी ने तुमसे मिलने की प्रतिज्ञा की है और सब हाल ठीक ठीक उससे कह देना और यह भी कह दना कि कल शाम को अपने लिलिस्मी मकान के पास मरी बाट जोहे । श्यामसुन्दर-अच्छा ऐसा ही कस्गा मगर आप भी तो विचित्र आदमी मालूम पड़ते हैं। नकाबपोश-जो हो लो अब मेरे साथ साथ चले आओ मैं उसके मुकाबिले में जाता है। नकाबपोश और श्यामसुन्दरसिंह की बातचीत बहुत जल्द हुई थी इसमे आधी घडी से ज्यादे न लगी होगी बल्कि इससे भी कम समय लगा होगा। आखिरी बात कह कर नकाबपाश उस तरफ रवाना हुआ जहा भूतनाथ बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करना चाहिये श्यामसुन्दरसिह भी उसके पीछे पीछे गया मगर आगे जाकर पड़ों की आड में छिप कर खडा हो गया जहा से वह सब कुछ देख और सुन सकता था। भूतनाथ अभी तक उसी तरह अपने विचार में निमग्न था और वह अद्भुत व्यक्ति उसकी तरफ बड़े गौर से देख रहा था। इसी बीच नकाबपोश भी उस जगह जा पहुचा और उस चट्टान पर बैठ गया जिस पर गठरी रक्खी हुई थी। पहिले तो भूतनाय ने समझा कि यह भी उसी विचित्र मनुष्य का सार्थी होगा जिसने मुझे हर तरह स दया रक्खा है मगर जब उस आदमी को भी नकाबपोश के यकायक आ जाने से अपनी तरह आश्चर्य में डूब हुए देखा तो उसे घडा ही चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५४१ ।