पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५५

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GET . नेकी की बस अब जल्द यहाँ से चलो क्योंकि इसका बहुत कुछ बन्दोबस्त करना होगा । अब मै यह भी समझता हू कि महारानी जरूर जीती होंगी। जस-एक बात तो मेरी ठीक निकली अब इसका भी सबूत दिये देता है कि महारानी जीती है और उन्हीं के हुक्म से यह सब कार्रवाई की गई है सिर्फ दीवान के हुक्म से नहीं। वाले अब मुझे तुम्हारे ऊपर किसी तरह का शक नहीं है और बेशक तुम्हारी वह बात भी ठीक होगी। इस वक्त तो मुझे बम यही धुन है कि घर पहुचते ही पहले उस नमकहराम का सर अपने हाथ से काढूँ जिसने महारानी के मरने की झूठी खबर सुना कर मुझे तबाह करना चाहा था। जस-हॉ जरूर उसे सजा मिलनी चाहिये जिसमें औरों को डर पैदा हो और आगे ऐसा काम करने का हौसला न पडे। जसवन्त जानता था कि बालेसिह का आदमी बिल्कुल बेकसूर है, महारानी की चालाकी ने शहर भर को धोखे में डाला था उसकी कौन कहे उसने चाहा भी था कि उस बेचारे को बचा दे मार इस समय उस हरामजादे ने यह सोच कर हा में हा मिला दी कि उसके मारे जाने ही स मेरा रोआब लोगों पर जम जायगा और मेरे नाम से सब कापने लगेंगे। ये दोनों घोडों पर सवार हो घर की तरफ रवाना हुए मगर अपने अपने खयालों में ऐसा डूबे थे कि तनोबदन की सुध न थी वे विल्कुल नहीं जानते थे कि किघर जा रहे है और घर का रास्ता कौन है कि एकाएक जगली सूखे पत्तों की खडखडाहट सुन दोनों चौके और सर उठा कर सामने की तरफ देखने लगे। दूर से बहुत से मशालों की राशनी दिखाई पडी जो इन्हीं की तरफ आ रही थी। ये दोनों एक झाडी की आड में हाकर देखने लगे। पास आने से मालूम हुआ कि बहुत से फौजी सिपाही दो पालकियों को घेरे हुए जा रहे हैं जिनके साथ साथ कई लौडियाँ भी कदम बढाये चली जा रही हैं। जब वे लोग दूर निकल गये दोनों आदमी झाडी से बाहर हुए 1 बालेसिह ने कहा 'जसवन्त, बेशक इसमें महारानी होंगी मगर मालूम नहीं दूसरी पालकी में कौन है? जत-मैं सोचता हू कि दूसरी पालकी में रनवीर होगा। बाले-तुम्हारा ख्याल बहुत ठीक है मगर देखो हमलोग अपने अपने खयालों में ऐसा डूबे हुए थे कि रास्ता तक भूल गये चलो बाई तरफ धूमो। दोनों वाई तरफ घूमे और तेजी से चल पड़े। . तेरहवां बयान पाठक इन दोनों को जाने दीजिये और आप जरा हमारे साथ चलिये, देखें इन पालकियों में कौन है और यह फौजी सिपाही कहा जा रहे है जिनके पैरों की आवाज ने बालेसिह को चौका कर बता दिया था कि तुम लोग रास्ता भूले हुए किसी दूसरी ही तरफ जा रहे हाँ ! बालेसिह का खयाल बहुत ठीक है, वेशक ये महारानी कुसुमकुमारी के फौजी आदमी है जो दोनों पालकियों को घेरे जा रहे है और वे खास महारानी की लौडिया है जो पालकी का पावा पकडे हुए कदम बढ़ाये जा रही हैं। एक पालकी के अन्दर से सिसक सिसक कर रोने की आवाज़ आ रही है, बेशक इसमें कुसुमकुमारी है। हाय बेचारी पर कैसी मुसीबत आ पडी रिनबीरसिह जख्मी होकर जा गिरे तो अभी तक होश नहीं आया. लाचार पालकी में रख कर अपने घर ले चली है। इस झुण्ड में कोई बेदर्द हत्यारा कैदी भी हथकडी वेडी से जकडा हुआ नजर नहीं आता जिससे मालूम होता है कि खूनी पकड़ा नहीं गया। महारानी अपने किले में पहुंची और रनवीरसिह के इलाज के लिय कई वैद्य और हकीम मुकर्रर किये मगर पाँच दिन बीत जाने पर भी उन्होंने आँखें नहीं खोली इस गम में कुसुमकुमारी ने भी एक दाना भन्न का अपने मुह में नहीं डाला। बेचारी विल्कुल कमजोर हो गई है तिस पर भी उसने इरादा कर लिया है कि जब तक उसका प्यारा रनवीरसिह होश में आकर कुछ न खायमा तब तक वह भी उपवास ही करगी क्योंकि उन्हीं के सहारे अब इसकी जिन्दगी है। उसे तनोयदन की सुध नहीं हरदम रनवीरसिह के पास बैठी उनका मुंह दया करती और हाथ उठा उठा कर ईश्वर से उनकी जिन्दग्गे मनाती रहती है। कुसुमकुमारी रनबीरसिह के पास बैठी तलहथी पर गाल रक्खे कुछ सोच रही है आँखों से आंसू वरावर जारी है कुसुम कुमारी १०६३