पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५५६

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दि भूत- तुम्हारा कहना बहुत ठीक है परन्तु मुझे निश्चय है कि जब में अपना असल भेद तुमसे कह दूंगा तो तुन स्वय मुझसे घृणा करोगे और चाहोगे कि यह दुष्ट किसी तरह मेरे सामने से दूर हो जाय प्यारे दोस्त जब से मैंने अपनी प्रकृति बदलने का उद्योग किया है और ईश्वर के सामने कसम खाई है कि अपने माथे से बदनामी का टीका दूर करके नेक ईमानदार सच्चा और सुयाग्य बनूगा तब से मेर हृदय की विचित्र अवस्था होगई है। जब मुझे यह मालूम होता है कि मेरी पिछली बातें अब प्रकट हुआ चाहती हैं तब मुझ मौत से भी बढ के कष्ट होता है और जब यह चाहता है कि अपनी जान देकर भी किसी तरह इन बातों से छुटकारा पाऊ तो उसी समय मुझे मालूम होता हैकि मेरे अन्दर दिल के पास ही बैठा हुआ कोई कह रहा है कि खबरदार ऐसा न कीजियो । तू कमस खा चुका है कि अपने सिर से बदनामी का टीका दूर करेगा। यदि ऐसा किये बिना मर जायगा तो ईश्वर के सामने झूठा होने के कारण तर्क का मागी होगा अर्थात तेरी आत्मा जेकभी मरने वाली नहीं है बड़ा कष्ट भोगेमी और हजारों वर्ष तक बिना पानी के मछली की तरह तडपा करेगी। हाय ये बातें ऐसी है कि मुझे वेचैन किए देती हैं ऐसी अवस्था में तुम स्वय सोच सकते हो कि अपनी चुराइयों को मैं अपने ही मुँह से कैस प्रकट करु और तुमसे क्या कह । यदि जी कडा करके कुछ कहूगा भी तो नि सन्देह तुम मुझसे घृणा करोगे जैसा कि मैं तुमसे कह चुका है। - देवी- नहीं नहीं कदापि नहीं में शपथपूर्वक कहता है कि यदि मुझे यह भी मालूम हा जायगा कि तुम मरे पिता के घातक हो जिन पर मेरा बडा ही स्नेह था तो मैं तुम्हें इसी तरह मुहबत की निगाह से देखूगा जैसा कि अब देख रहा हू कहो अब इससे ज्याद मैं क्या कह सकता हूँ इतना सुनी भूतनाथ जिसने अपनी पीठ विचित्र मनुष्य की तरफ इसलिए कर रक्खी थी कि चेहरे के उतार चढाव सेवा उसका यातो का कुछ भेट न पा सके देवीसिह के पैरों पर गिर पड़ा और रोन लगा। देवीसिह ने उसे उठा कर गरने से लगा लिया और कहा- देखा जी कडा करो घबडाओ मत इश्वर जो कुछ करेगा अच्छा ही करगा क्योंकि नेकी की राह चलने वाला की वह सहायता किया ही करता है और उसके पिछले ऐयों पर ध्यान नहीं देता यदि वह जार जाय कि यह भविष्य में नैक और सच्चा निकलगा। विचित्र मनुष्य जो दूर खडा यह तमाशा देख रहा था जो में बहुत ही कुढा और उसने भूतनाथ से ललकार के कहा भूतनाथ यह क्या बात है ? तुम राह चलते हर एक ऐर गरे के सामने खड़े होकर घण्टो क्लपा करोग और मैं खडा पहरा दिया कलेगा? यह नहीं हा सकता ! मै तुम्हारा तावेदार नहीं है बल्कि तुभ तावेदार हो चलो जल्दी करो अब मै नहीं रुक सकता । भूतनाथ ने लाचारी और मजबूरी की निगाह देवीसिंह पर डाली और सिर नीचा करक चुप रहा। देवीसिह ने पहिले तो भूतनाथ के कान मे धीरे से कुछ कहा और इसके बाद विचित्र मनुष्य भी तरफ बढ़ कर बोले- देवी- क्यों ये क्या तून मुझे एरे मैरों मे समझ लिया है ? जुबान समाल के नहीं चालता क्या तू नहीं जानता कि मैं कौन है? 7 . विचित्र में खूब जानता है कि तुम्हारा नाम दवीसिह है और तुम राजा वीरेन्द्रसिह को एयार हो मगर मुझे इससे क्वी मतलब? तुमने मेरे आरगमी को इतनी दर तक क्यों रोक रक्खा देवी- भूतनाथ तेरा आसामी नहीं बल्कि मेरा साथी ऐयार है। कदाचित अपने पागलपन में तून इसे अपना आसामी समझ लिया हो तो भी जा कुछ कहना हा भूतनाथ से कह तुझे पागल समझ कर मै कुछ न कहूंगा छोड़ दूंगा मगर तू इतना हौसला नहीं कर सकता कि राजा वीरेन्द्रसिह के ऐयारों को ऐर गैरे कह कर सम्योधन करे क्या तू नहीं जानता कि ऐयार की इज्जत राजदीवान से कम नहीं होती? मैं येशक तुझे इस बेअदबी की सजा दूंगा! विचित्र मनुष्य-तुम मुझे क्या सजा दोगे में तुम्हें समझता हो क्या हूँ । देवी -तो मैं दिखाऊँ तमाशा तुझे और बता दूं राजा बीरेन्द्रसिह के ऐयार लोग कैसे होते हैं। विचित्र-हा हा जो कुछ करते बने करो में तैयार हूँ, तुमसे डरन वाला नहीं। इतना कह कर विचित्र मनुष्य ने म्यान से तलवार निकाल ली और देवीसिह ने भी जमीन पर से पत्थर का एक टुकडा उठा लिया। विचित्र मनुष्य ने झपट कर देवीसिह पर तलवार का पार किया। देवीसिह उछल कर दूर जा खडे हुए और उस पत्थर के टुकडे से अपने धैरी पर वार किया मगर उसने भी पैतरा बदल कर अपने को बचा लिया और देवीसिह पर झपटा। अबकी दफे देवीसिह ने फुर्ती के साथ पत्थर के दो टुकडे दोनों हाथों में उठा लिया और दुश्मन के वार को खाली देकर एक पत्थर चलाया । जब तक विचित्र मनुष्य उस वार को बचाए तब तक देवीसिह ने दूसरा टुकडा चलाया जो उसके घुटने पर बैठा और उसे सख्त चोट लगी। देवीसिह ने विलम्बन किया फिर एक पत्थर उठा लिया और अपने वेरी का दूर सही मारा ! पैर में चोट लग जाने के कारण वह उछल कर अलमन हो सका और देवीसिह का बलाया हुआ देवकीनन्दन खत्री समग्र ५४८