पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५५९

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वि देवी-मैं भी यही मुनासिब समझता है, इसके बाद इसे होश में ला कर जो कुछ पूछना हो पूछा जायगा । इतना कह कर देवीसिह ने बटुए मे म लोटा निकाला भैरोसिह का लोटा भी उठा लिया और जल भरने के लिए चश्मे के किनारे गये। चश्मा बहुत दूर न था इसलिए बहुत जल्द लौट आये और बाल दूर करके उसका चेहरा धोने लगे। आश्चर्य की बात है कि जैस जैसे उस विचित्र मनुष्य का चेहरा साफ होता जाता था तैसे तैसे तारा कचहरे की रगत बदलती जाती थी यहा तक कि उसका चेहरा अच्छी तरह साफ हुआ भी न था कि तारा ने एक चीख मारी और हाय कह के गिरन के साथही बेहोश हो गई। उस वक्त सभों का ख्याल तारा की तरफ जा रहा और कमलिनी ने कहा निसन्देह इस मनुष्य को तारा पहिचानती है । उसी समय भैरोसिह की निगाह सामन की तरफ जा पडी और एक नकाबपोश को अपनी तरफ आते हुए देख कर उसने कहा देखिये एक नकाबपोश हम लोगों की तरफ आ रहा है । आश्चर्य है कि उसने यहा का रास्ता कैसे देख लिया कदाचित चाचाजी के पीछे छिप कर चला आया हो। वेशक ऐसा ही है नहीं तो इस भूलभलैया रास्त का पता लगाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है जा हो मगर मै कसम खा कर कह सकता हू कि यह वहीं नकाबपाश है । जिसका हाल इस समय सुनने में आया है। और दखो उसके हाथ में एक गठरी भी है हा यह वही गठरी होगी जिसक विषय मे कहा जाता है कि इसमें तारा की किस्मता बन्द है ।। कमलिनी-पेशक ऐसा ही है । देवी-हा इसके लिए तो मै भी कसम खा सकता है | ॥ ग्यारहवा भाग समाप्त ॥ चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५५१