पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६

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दि थोडी थोडी देर पर लम्बी लम्बी सॉसें ले रही है, चारो तरफ लौड़ियों घेरे बैठी है, उसकी प्यारी सखिया भी पास बैठी उसका मुंह देख रही हैं मगर किसी का हौसला नहीं पड़ता कि उसे कुछ कहे या समझा।। यकाएक नक्कारे की आवाज ने उसे चौका दिया। यह नक्कारे की आवाज कहाँ से आई? क्या मेरी फौज किसी से लड़ने के लिए तैयार हुई है ? मगर मैने तो अपनी फौज को ऐसा कोई हुक्म नहीं दिया क्या मेरा सेनापति वीरसेन फौज लेकर लौट आया? लेकिन अगर लौट ही आया तो नक्कारे पर चोट देने की क्या जरूरत थी ? लो फिर आवाज आई !मगर वह आवाज बहुत दूर की मालूम होती है !! इन सब बातों को सोचती हुई महारानी ने सिर उठाया और इधर उधर देखने लगी। इतने ही में एक लोडी बदहवास दौडी हुई आई और घबराहट की आवाज में डरती हुई बोली, “दीयान साध्य यह खवर सुनाने के लिये हाजिर हुए है कि यालेसिह की फौज शहर के पास आ पहुँची जिसका मुखिया वही दुष्ट जसवन्त मुकर्रर किया गया है ! यह खबर कुछ ऐसी न थी जिसके सुनने से बेचैनी न हो जिसमें वेचारी कुसुमकुमारी ऐसी औरत के लिये वह भी इस दशा में कि उसका प्यारा रनधीर जिसे जान से ज्यादे समझे हुए है उसकी आखों के सामने दुश्मन के हाथ से जख्मी होकर बेहोश पडा है और उसकी फौज एक दूसरे ही ठिकाने दूसरी फिक्र में डेरा डाले पडी है जो यहां से लगभग पद्रह कोस के होगा। दीवान को बुलाकर सब हाल सुना मगर सिवाय इसके और कुछ न कह सकी कि जो मुनासिब समझो बन्दोबस्त करो, में तो इस समय आप बदहवास हो रही है, क्या राय चेचारे नेकदिल दीवान ने जो कुछ हो सका वन्दोवस्त किया, मगर यह किसे उम्मीद थी कि यकायक बालेरािह फौज लेकर चढ आवेगा और खबर तक न होने पायेगी। इस छोटे से शहर के चारों तरफ बहुत मजबूत और ऊंची दीवार थी। जगह जगह मोके मौके पर लडने तथा गोली बल्कि ताप चलाने तक की जगह बनी हुई थी और याहर चारों तरफ खाई भी बनी हुई थी जिसमें अच्छी तरह से जल भरा हुआ था मानों एक मजबूत किले के अन्दर यह शहर बसा हुआ हो। महारानी की कुछ ज्यादे फौज न थी मगर इस किले की मजयूती के समय दुश्मनों की कलई जल्दी लगने नहीं पाती थी। कह सकते है कि अगर इस किले के अन्दर गल्ले की कमी न हो तो इसका फतह करना जरा टेढ़ी खीर है। दीवान साहब ने एक जासूस के हाथ वीरसेन के पास चीठी भेजी जिसमें लिखा हुआ था-' रनवीरसिह के जख्मी होने से हम लोगों की बनी वनाई बात बिगड़ गई. इतने मेहनत और तरदुद से फौज का इकट्ठा करना बिल्कुल बेकार हो गया। यकायक चढाई करने के पहिले ही न मालूम किस दुष्ट ने बालेसिह को होशियार कर दिया और वह अपनी फौज लेकर इस किले पर चढ आया जिसकी कोई उम्मीद न थीं। अब हम लोग किला बन्द करके जो कुछ थोड़े बहादुर यहाँ मौजूद है उन्हीं को सफीलों पर चढा कर दुश्मन की फौज पर गोला बरसाते है, जहा तक जल्द हो सके तुम फौज लेकर उस गुप्त राह से हमारे पास पहुचो। अफसोस हमें यकीन नहीं है कि यह चीती तुम्हारे पास पहुच सकेगी क्योंकि जहाँ तक हम समझ सकते है पहर दो पहर के अन्दर ही बालेसिह इस किले को घेर लोगों की आमदरफ्त बन्द कर देगा। ईश्वर मदद करे और यह खत तुम्हारे पास पहुच जाय तो आज के तीसरे दिन सनीचर को उसी सुरग की राह से जिसका दर्वाजा आधी रात के समय खुला रहेगा तुम मेरे पास फौज लिये हुए पहुँच जाओ। रनबीरसिह अभी तक येहोश पड़े है।" इस चीठी को रवाना कर दीवान साहब ने किला बन्द करने का हुक्म दे दिया, शहरपनाह की दीवारों और बुर्जियों पर तोपें चढने लगी। चौदहवां बयान आधी रात का समय होने पर भी किले में सन्नाटा नहीं है। दीवान साहब मुस्तैदी के साथ सब इन्तजाम कर रहे हैं। कोई सलहखाने से हर्वे निकाल कर बॉट रहा है, कोई मेगजीन की दुरुस्ती में जी जान से लगा हुआ है, कोई तोपों के लिए बारूद की थैलियों भरवा रहा है, कोई बन्दूकों के लिये बारूद और गिन गिन कर गोलियाँ तक्सीम कर रहा है. किसी तरफ कडाबीन वालों को कडाबीन में भर कर चलाने के लिए गोरखपुरी पैसे तौल-तौल के दिए जा रहे हैं। एक तरफ गल्ले का बन्दोवस्त हो रहा है हजारों बोरे अन्न से भरे हुए भण्डार में जा रहे है, और दीवान साहब घूम घूम कर हर एक काम देख रहे है। इधर तो यह धूमधाम मची है मगर उधर महल की तरफ सन्नाटा है सिवाय पहरा देने वाले सिपाहियों के और कोई, दिखाई नहीं देता। महारानी के महल के पास ही दीवान साहब का मकान है जिसके दर्वाजे पर तो पहरा पड रहा है मगर पिछवाड़े की तरफ देखिये एक आदमी कमन्द लगा कर ऊपर चढ़ जाने की फिक्र में है। लीजिये वह छत पर पहुच भी देवकीनन्दन खत्री समग्र १०६४