पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६१

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तेज-इसलिए कि मै एक तरफ बेचारी तारा को बेहोश देखता हूं और दूसरी तरफ किशोरी और कामिनी को ऐसी अवस्था में पाता हूँ जैसे वर्षों की बीमार हो और तुमको भी सुस्त और उदास देखता हूँ इन कारणों से सरी यह इच्छा होती है कि पहिले इस तरफ का हाल सुन लू । कम-आपका कहना बहुत ठीक है फिर भी में यही चाहती हूँ कि पहले आपका हाल सुन लू । तेज-खैर में भी अपना किस्सा मुख्तसर ही में पूरा करता हूँ। इतना कह कर तेजसिह ने फिर कहना शुरू किया- 'जब वह औरत उस काम से छुट्टी पा चुकी जिसके लिए उतरी थी तो घोडे के पास आई और अपने साथी से बोली भूतनाथ ने जिस समय आपको देखा उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गई। इसका जवाब उस आदमी ने जो वास्तव में (विचित्र मनुष्य की तरफ इशारा करके ) यही हजरत थे यों दिया 'वेशक ऐसा ही है क्योंकि भूतनाथ मुझे मुर्दा समझे हुए था। देखो तो सही आज मेरे और उसके बीच कैसी निपटती है। मैं उसे अवश्य अपने साथ ले जाऊगा और नहीं तो आज ही उसका भण्डा फोड दूंगा जो वडा अच्छा नेक और बहादुर बना फिरता है । इतना कह दोनों पुन घोडे पर सवार हुए और आगे की तरफ चले। मेरे दिल में तरह तरह के खुटके पैदा हो रहे थे और मैं अपने को उनके पीछे पीछे जाने से किसी तरह रोक नहीं सकता था। लाचार हम दोनों भी उनके पीछे तेजी के साथ रवाना हुए। इस बात की फिक्र मेरे दिल से बिल्कुल जाती रही कि हमारे फौजी सिपाही दुश्मनों के मुकाबले में कय पहुचेगे और क्या करेंगे। अब तो यह फिक्र पैदा हुई कि यह आदमी कौन है और इससे तथा भूतनाथ से क्या सम्बन्ध है इस बात का पता लगाना चाहिए और इसीलिए हम लोग अपना रास्ता छोड कर घोडे के पीछे पीछे रवाना हुए मगर हम लोगों को बहुत देर तक सफर करना न पडा और शीघ्र ही हमलोग उस जगल में जा पहुचे जिसमें भगवानी और श्याम सुन्दर की कहा सुनी हो रही थी और थोड़ी ही देर बाद आप लोग भी पहुच गए थे। मैं जानबूझ कर आप लोगों से नहीं मिला और इस विचित्र मनुष्य के पीछे पड़ा रहा यहा तक कि आप लोग चले गये और मुझे वह विचित्र घटना देखनी पड़ी। इसके बाद तेजसिह ने वह सब हाल कहा जिसे हम ऊपर लिखआए हैं और पुन इस जगह दोहरा कर लिखना वृथा समझते है हा उस दूसरे नकाबपोश के विषय में कदाचित पाठकों को भ्रम होगा इस लिए साफ लिख देना आवश्यक है कि वह दूसरा नकाबपोश जिसने भगवानी को भागने से रोक रक्खा था और जिसके पास पहुचने के लिये तेजसिह ने श्यामसुन्दरसिह को नसीहत की थी वास्तव में तारासिह था जिसका हाल इस समय तेजसिह के बयान करने से मालूम हुआ। जो कुछ हम ऊपर लिख आये है उतना वयान करने के बाद तेजसिह ने कहा जब यह विचित्र मनुष्य भूतनाथ को लेकर रवाना हुआ तो मैं भीइसके पीछे पीछे चला पर बीच ही में उससे और देवीसिह से मुलाकात हो गई देवीसिह उसे पकड के यहा ले आये और मै भी देवीसिह के पीछे पीछे चुपचाप यहा तक चला आया । इतना कह कर तेजसिह चुप हो गये और तारा की तरफ देखने लगे। कम-यह घटना तो बडी ही विचित्र है नि सन्देह इसके अन्दर कोई गुप्त रहस्य छिपा हुआ है। तेज-जहा तक मै समझता हू मालूम होता है कि आज बडी वडी गुप्त बातों का पता लगेगा! अब कोई ऐसी तर्कीब करनी चाहिये जिसमें यह ( विचित्र मनुष्य की तरफ इशारा करके ) अपना सच्चा हाल कह दे । देवी-तो इसे होश में लाना चाहिए। तेज-नहीं इसे अभी इसी तरह पड़ा रहने दो कोई हर्ज नहीं और पहिले तारा को होश में लाने का उद्योग करो। देवी-बहुत अच्छा। अच देवीसिह तारा को होश में लाने का उद्योग करने लगे और तेजसिह ने कमलिनी से कहा जब तक तारा होश में आवें तब तक तुम अपनाहाल और इस तरफ जो कुछ बीता है सो सब हाल कह जाओ। कमलिनीन ऐसा ही किया अर्थात अपना और किशोरी कामिनी तथा तारा का सब हाल सक्षेप में कह सुनाया और इसी बीच में तारा भी होश में आकर बातचीत करने योग्य हो गई। कम-(तारा से) क्यों बहिन अब तबीयत कैसी है ? तारा-अच्छी है। कम-तुम इस विचिन्न मनुष्य को देख कर इतना डरी क्यों ? क्या इसे पहिचानती हो.? तारा-हा में इसे पहिचानती हू मगर अफसास कि इसका असल भेद अपनी जुबान से नहीं कह सकती। (विचित्र मनुष्य की तरफ देख के ) हाय इस बेचारे ने तो किसी का कुछ भी नुकसान नहीं किया फिर आप लोग क्यों इसके पीछे पड़े है? SA . आन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२