पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६२

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ari आवाज में कम-बहिन मेरी समझ में नहीआता कि तुम इसका भेद जान के भी इतना क्यों छिपाती हा ? क्या तुमने अभी नहीं सुना कि इसके और भूतनाथ के बीच में क्या वाते हुई है ? मगर फिर भी ताज्जुब है कि इसे तुम अपनायत के ढग से देख रही हा ॥ तारा-(लम्बी सास लकर ) हाय अब मै अपने दिल को नहीं रोक सकती। उसमें अब इतनी ताकत नहीं है कि उन भेदों को छिपा सके जिन्हें इतने दिनों तक अपने अन्दर इसलिये छिपा रक्खा था कि मुरीयत के दिन निकल जाने पर प्रकट किय जायेंगे। नहीं नहीं अब में नहीं छिपा सकती विहिन कमलिनी तू वास्तव में मेरी वहिन है और सगी बहिन है मै तुझसे बड़ी इ मरा ही नाम लक्ष्मीदेवी है। कम-(चौक कर और तारा को गले लगा कर ) आह मेिरी प्यारी बहिन क्या वास्तव में तुम लक्ष्मीदेवी हो ? तारा-हा और यह विचित्र मनुष्य हमारा बाप है। कम-हमारा बाप बलभद्रसिह " तारा-हा यही हमारे तुम्हार और लाडिली के बाप बलभद्रसिह है। कम्बख्त मायारानी की बदौलत मस्साथ मरे वाप भी कैदखान की अधेरी काटरी में सडते रह! हरामजादा दारोगा इस पर भी सन्तुष्ट न हुआ और उस इनको जहर द दिया मगर ईश्वर न एक सहायक भज दिया जिसकी बदौलत जान बच गई। पर फिर भी उस जहर के तेज असर ने इनका बदन फोड दिया और रग विगाड दिया बल्कि इस योग्य तक नहीं रक्खा कि तुम इहे पहिचान सका। इतना ही नहीं और भी बड़े बड़े कष्ट भागने पडे। (रो कर) हाय अब मेरे कलेजे में दर्द हो रहा है। मे उन मुर्सयतो को बयान नहीं कर सकती 'तुमस्वयअपने पिता ही से सब हाल पूछ लो जिन्हें में कई वर्षों के बादाइस अवस्था में देख रही हूँ। पाठक आप समझ सकते है कि तारा की इन यातो ने कमलिनी के दिल पर क्या असर किया होगा तेजसिह और भैरासिह की क्या अवस्था हुई होगी और देवीसिह कितनेशर्मिदा हुए होंगे जिन्होंने पायर मार कर उस विचित्र मनुष्य का सर तोड वाला था। कमलिनी दौड़ी हुई अपने बाप के पास गई और उसके गले से चिपट कर रान लगी। तनसिह भी लपक कर उनके पास गये और लखलखे की डिविया उनके नाक से लगाई। बलभदसिह होश में आकर उठ बैठे और ताज्जुब भरी निगाहों से चारों तरफ देखने लगे। तारा कमलिनी और लाडिली पर निगाह पड़ते ही उद्योग करने पर भी न रुकने वाले आसू उनकी आखों में डबडया आये और उन्होंने कमलिनी की तरफ देख कर कापती कहा क्या तारा ने मेरे या अपन विषय में कोई बात कही है ? तुम लोग जिस निगाह से मुझे दख रही हो उससे साफ मालूम होता है कि तार ने मुझे पहिचान लिया और मेरे तथा अपने विषय में कुछ कहा है । कम-( गदगद होकर ) जी हा तारा ने अपना और आपका परिचय देकर मुझे बड़ा ही प्रसन्न किया है। क्ल-तो बस अब मै अपने को क्योंकर छिपा सकता है और इस बात से क्योंकर इनकार कर सकता है कि मै तुम तीनो बहिनों का बाप हू। आह !मै अपने दुश्मनों से अपना बदला स्वय लेने की नीयत से थोडे दिन तक और अपने को छिपाना चाहता था मगर समय ने ऐसा करने न दिया खैर मर्जी परमात्मा की अच्छा कमलिनी सच कहियो क्या तुझे इस बात का गुमान भी था कि तेरा बाप जीता है? कम-मै अफसोस के साथ कहती है कि कई पितृपक्ष ऐसे बीत गए जिसमें मैं आपके नाम तिलाजली दे चुकी है क्योंकि मुझे विश्वास दिलाया गया था कि हम लोगों के सर पर से हमारे प्यारे बाप का साया जाता रहा और इस बात को भी एक जमाना गुजर गया। जो हो मगर आज हमारी खुशी का अन्दाजा कोई भी नहीं कर सकता। बलभदसिह उठ कर तारा के पास गये जिसमें चलने फिरने की ताकत अभी तक नहीं आई थी तारा उनके गले से लिपट गई और फूट फूट कर रोने लगी। उसके बाद लाडिली की नौबत आई और उसने भी रो रो कर अपने कपर्ड भिगोय और मायारानी को गालिया देती रही। आधे घण्टे तक यही हालत रही अन्त में तेजसिह ने सभी को समझा बुझा कर शान्त किया और फिर बातचीत होने लगी। देवी-( बलभदसिह से ) मैं आर से माफी मागता हू, मुझसे जो कुछ भूल हुई यह अनजाने में हुई है पल-(हस कर) नही नहीं मुझे इस बात का रज कुछ भी नहीं है बल्कि सच तो यों है कि अब मुझे केवल आप ही लोगों का भरोसा रह गया मगर अफसोस इतना ही है कि भूतनाथ आप लोगों का दोस्त है और में उसे किसी तरह भी माफ नहीं कर सकता। तेजसिह--हम लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हो रहा है और विल्कुल समझ में नहीं आता कि आपके और भूतनाथ के पीच मे किस यात की ऐठन पड़ी हुई है। बल-(तेजसिह से ) मालूम होता है कि अभी तक आपने वह गठरी नहीं खाली जो आपाप एक औरत के हाथ से छीनी थी और जो इस समय भी मै आपके पास देख रहा हू । - देवकीनन्दन खत्री समग्र