पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५६७

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head ort बाप को नहीपहिचानेगी बलभदसिह अपने को छिपावेगा और देवीसिह मेरे भेदों का गुप्त रखने का उद्योग करेगा। बस इतनी ही बात थी जिससे वह एकदम हताश नहीं हुआ था और इन लोगों के साथ कमलिनी से मिलने के लिए चुपचाप सिर झुकाये हुए कुछ सोचता विचारता जा रहा था। वह अपनी धुन में ऐसा डूबा हुआ था कि उसे अपने चारों तरफ की कुछ भी खबर न थी और उसकी वह धुन उस समय टूटी जब तारासिह ने कहा यह देखो तालाव वाला तिलिस्मी मकान दिखाई दने लगा। कई आदमी भी नजर पडते है। मालूम पडता है कि उसमें कमलिनी का डेरा आ गया । अगर मेरी निगाह धाखा नहीं देती तो में कह सकता हूं कि वह चबूतरे के दक्षिणी कोने पर खडे होकर जो इसी तरफ देख रहे है हमारे चाचा तेजसिह है , तजसिह के नाम ने भूतनाथ को चौका दिया और उसके दिल में एक नया शक पैदा हुआ। इसके साथ ही उसके चेहरे की रगत न पुन पल्टा खाया अथाल जर्दी के बाद सुफेदी ने अपना कुदरती रग दिखाया और भूतनाथ का कापता हुआ पैर धीरे धीरे आग की तरफ बढ़ने लगा। जब ये लोग मकान के पास पहुचे तो भूतनाथ ने देखा कि भैरोसिंह और देवीसिहभी अन्दर से निकल आय है और नफरत की निगाह से उसे देख रहे हैं। जब ये लोग तालाब के किनारे पहुचे तो भगवनिया न देखा कि तालाब की मिट्टी न मालूम कहा गायब हो गई हे तालाब स्वच्छ है और उसमे माती की तरह साफ जल भरा हुआ दिखाई दता है। वह बडे आश्चर्य से तालाब के जल और उसके बीच वाले मकान को देखने लगी। भैरासिह उन लोगों को रहरन का इशारा कर के मकान के अन्दर गया और थोड़ी देर बाद बाहर निकला इसके बाद डाँगी खाल कर फिरे पर ले गया और चारों आदमियों को सवार करा के मकान के अन्दर ले आया। स्वामसुदरसिंह और भगवानी को विश्वास था कि यह मकान हर तरह के सामान से खाली होगा यहा तक कि चारपाई विछान और पा पाने के लिए लोटा गिलास तक न होगा मगर नहीं इस समय यहा जो कुछ सामान उन्होंने दया वह बनिस्बत पहिल के देशकमत और ज्याद था। इसका कारण यहथाकि दुश्मन लोग इस मकान में से वही चीजें ले गये जिव लाग देख और पा सकते थमगर इस मकान के तहखानों और गुप्त कोठरियों का हाल उन्हें मालूम न जिनमें एक से बढ के उमदा चीजें तथा बेशकीमत असबाय मकान सजाने के लिये भरा हुआ था और जिन्हें इस समय कमलिना ने रिकान पर मकान को पहिले से ज्यादै खूबसूरती के साथसजा डाला था और भागे हुए आदमियों में से दो सिपाही और दो कर भी आ गय थे जा भाम जान के बाद भी छिपे छिपे इस मकान की खोज खबर लिया करते थे। तारासिंह श्यामसुन्दरसिह भगवनिया ओर भूतनाथ उस मकरे में पहुचाए गए जिसमें किशोरी कामिनी लक्ष्मीदेवी कमलिनी लाडिली और बलभदसिह वगैरह बैठे हुए थे और किशोरी कामिनी और लक्ष्मीदेवी सुन्दर मसहरियों पर लेटी बलभद्रसिह को असली सूरत में देखते ही भूतनाथ चौंका और घवडा कर दो कदम पीछे हटा मगर भैरोसिह ने जो उसके पीछे था रोक लिया। बलभदसिह को असली सूरत में देख कर भूतनाथ को विश्वास होगया कि उसका सारा भेद खुल गया और इस बारे में उस समय तो कुछ भीश५. न रहा जब उस कागज के मुटठे और पीतल की सन्दूकडी को भी कमलिनी के सामने देखा जो भूतनाथ की विचित्र जीवनी का पता दे रही थी। जिस समय भूतनाथ की निगाह उनके चहरे पर गौर के साथ पड़ी जिनसे रज और नफरत साफ जाहिर हाती थी उस समय उसके दिल में एक होल सा पैदा हो गयाऔर उसकी सूरत देखने वालों को ऐसा मालूम हुआ कि वह थोड़ी ही देर में पागल हो जायगा क्योंकि उसके हवास में फर्क पड़ गया था और वह बड़ी ही येचैनी के साथ चारों तरफ देखने लगा था। बलभद-भूतनाथ मै अफसोस करता हू कि तुम्हारे भदों को कुछ दिन तक और छिपा रखने का मौका मुझे न मिला ॥ देवी-जिस गठरी में तारा की किस्मत बन्द थी और जिसे तुम अपने सामने देख रहे हो वह वास्तव में तेजसिह के कब्ज में आ गई थी। बलभद्र-जिसनकाबपोशते तुम्हार सामने मुझे पराजित किया था वह तजसिह थे और इस समय तुम्हार वगल में खडे है। है है देखो सम्हलो पागल मत बनो। भूत - (लडखडाई आवाज से) ओह उस औरत को धाखा हुआ उसने नकाबपोशु को वास्तव में नहीं पहिचाना , भूतनाथ पागला की तरह हाथ फैला और आखें फाड फाड कर चारों तरफ देखने लगा और फिर चक्कर खाकर जमीन पर गिरने के साथ ही बेहोश हो गया। तेज-बुरे कामों का यही नतीजा निकलता है। चन्द्रकान्ता सन्ततिभाग १२