पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

B गया अब मालूम करना चाहिए कि यह कौन है जो इतना बडा हौसला करके राजदीवान क मकान पर चढ गया है नकाय की जगह मामूली एक कपडा मुह पर डाले हुए है जिसे देखते हुए इतना कह सकत है कि चोर नहीं है। यह आदमी छत पर होकर जब तक मकान के अन्दर साय हम पहिल ही चलकर दखें कि इस मकान में कौन कौन जाग रहा है और कहाँ क्या हो रहा है। ऊपर वाल खण्ड में एक सजा हुआ कमरा है जिसमें जान के लिए पांच दर्वाज है उसक आग पटा हुआ आठ दरका दालान है जिसके हर एक खभो और महराया पर मालती लता चढी हुइ है कुछ फूल भी खिले हुए है जिनकी भीनी भीनी खुशबू इस दालान और कमरे को मुअत्तर कर रही है। इस कमरे में यों तो बहुत सी चिल्लोरी होडिया और दीवारगीरे लगी हुई है मगर विचले दवाजे के दोनों बगल वाली सिर्फ दो तिशाखी दीवारगीरों और गद्दी के पास वाले दो छोटे छोटे शमादानों में मोमबत्तियाँ जल रही है। ये दोनों बेठकी सुनहरे शमादान दिल्लौरी मृदगियों से ढक हुए थे जिनकी रोशनी उस खूबसूरत कमसिन नौजवान औरत के गुलाबी चेहरे पर यखूबी पड़ रही है जो गावतकिए के सहारे गद्दी पर बैठी हुई है और जिसके पास ही एक दूसरी हसीन औरत गद्दी का काना दवाये बैठी उसके मुँह की तरफ देख रही है। यह औरत बला की खूबसूरत थी इसके हर एक अग मानों साँचे में ढले हुए थे। इसके गालों पर गुलाब के फूलों की सी रगत थी। इसके ओंठ नाजुक और पतले थ मगर ऊँची साँस लेकर जब वह अपना निचला ओठ दवाती तब इसके चेहरे की रगत फौरन बदल जाती और गम के साथ ही गुस्स की निशानी पाई जाती। इसके नाजुक हाथों में स्याह चूड़ियाँ और हीरे के कडे पड हुए थे उगलियों में दो चार मानिक की अगूठियों भी थी जिनकी चमक कभी कभी बिजली की तरह उसक हर पर धूम जाती थी। हुरन और खूबसूरती के साथ ही चहर पर गजब और गुस्से की निशानी भी पाई जाती थी, इसके तेवरों से मालूम होता था कि यह जितनी हसीन है उतनी ही वेदर्द और जालिम भी है। तेवर बदलने के साथ ही जब कभी यह अपन ओठों को न मालूम तौर पर हिलाती तो साफ मालूम हो जाता कि इसके दिल में खुटाई भी परले सिरे की भरी हुई है। मगर वो सब जा कुछ भी हा लेकिन देखन में इसकी छवि बहुत ही प्यारी मालूम होती थी। थोडी देर तक सन्नाटा रहने के बाद उस औरत न जिसका हुलिया ऊपर लिख आये है ऊंची सांस ल शमादान की तरफ देखते हुए कहा- बहिन मालती. तुम सच कहती हो। मैं खूब जाती है कि वीरसेन का दजां किसी तरह कम नहीं है, महारानी के फौज का सेनापति है उसकी वीरता किसी से छिपी नहीं है और मुझे भी बहुत चाहता है मगर क्या करूँ मेरा दिल तो दूसरे ही के फन्दे में जा फंसा है और अपने काबू में नहीं है। मालती-ठीक है मगर तुम्हारे पिता ने तो बीरसन के साथ तुम्हारा सवध कर दिया है और सभों को यह बात मालूम भी हो गई है कि कालिन्दी की शादी बहुत जल्द वीरसेन के साथ होगी। कालिन्दी-जो हो पर मुझे यह मजूर नहीं है। मालती-भला यह ता सोचो कि इस समय वेचारी महारानी पर कैसा सकट आ पड़ा है। तुम्हारे पिता दीवान साहय किस तरह महारानी के नमक का हक अदा कर रहे है और दुश्मन से जान बचाने की फिक्र में पड़ है। अफसोस कि तुम उनकी लडकी होकर दुश्मन ही से मुहव्वत किया चाहती हाँ खैर इसे जाने दो तुम खूब जानती हो कि जसवन्तसिह महारानी पर आशिक है और उन्हीं के लिए इतना बखेडा मचा रहा है वह जानता भी नहीं कि तुम कौन हो, तुम्हारी सूरत तक कभी उसने नही देखी, फिर किस उम्मीद पर तुम ऐसा करने का हौसला रखती हो ? उसे क्या पड़ी है जो तुमसे शादी करे। कालिन्दी-वह झख मारगा और मुझस शादी करेगा। मालती-(ओठ विचका कर) वाह. क्या अनाखा इश्क है। कालिन्दी-शक जब वह मुझे देखेगा खुशामद करेगा। मालती-शायद तुमने अपने को महारानी से भी ज्याद सूबसूरत समझ रक्खा है ।। कालिन्दी नहीं नहीं इस कहने से मेरा मतलब यह नहीं है कि में महारानी से बढकर हसीन है। मालती-तब दूसरा कौन मतलब है? कालिन्दी-मै उसे इस किले के फतह करने की तीय बताऊगी जिसमें सहज में उसका मतलब निकल जाय और लड़ाई दगे की नौबत न आये। क्या तब भी वह मुझसे राजी न होगा? यह सुनते ही मालती का बहरा जर्द हो गया और वदन के रोगट यड़े हो गए। उसको आचो में एक अलग तरह की चमक पैदा हुई। उसन सोचा कि यह कम्बरत तो गलब किया चाहती है अब महारानी की कुशल नहीं। मगर बड़ी सुम कुमारी १०६५