पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७०

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अन्दर बैठा हुआ है दो दो बातें तो हो लेने दते । भूतनाथ की बात सुन कर दवीसिह का बडा ही आश्चर्य हुआ और वह कुछ देर तक सिर नीचा किए हुए साचते रहे इसके बाद कुछ याद करके बाले अच्छा मरी एक बात का और जवाब दो। भूत-पूछिए। देवी-यदि तुम्हें उस कागज क मुट्ट से कुछ डर न था और वास्तव में जो कुछ उस मुटठ में तुम्हारे खिलाफ लिखा हुआ है वह झूठ है जैसाकि तुम अभी कह चुके हों तो तुम उस गठरी को देख के उस समय क्यों डरे थे जब बलभद्रसिह ने रात के समय उस जगल में तुम्हें वह गटरो दिखाई थी और पूछा था कि यदि कहो तो भगवानी के सामने इसे खोलूँ? मैं सुन चुका हू कि उस समय इस गठरी का देख कर तुम काप गए थे और नहीं चाहते थे कि भगवानी के सामने वह खाली जाय । भूत-ठीक है मगर मैं उस कागज के मुटठे को याद करके नहीं डरा था जो वल्कि मुझे इस बात का गुमान भी न था कि इस गठरी में कोई कागज का मुटटा भी है सच तो यों है कि में उस पीतल की सन्दूकडी को याद करके डरा था जो उस समय तजसिह से सामने पड़ी हुई थी। मैं यही समझे हुए था कि उस गठरी के अन्दर केवल एक पीतल की सन्दूकडी है और वास्तव में उसकी याद से ही में काप जाता है। उसकी सूरत देखने से जो हालत मेरी होती है सो में हो जानता हू मगर साथ ही इसके भै यह भी कहे देता है कि उस पीतल की सन्दूकडी के अन्दर जा चीज है उससे कमलिनी तारा और लाडिली या असली बलभद्रसिह का काई सम्बन्ध नहीं है। इसका विश्वास आपको उसी समय हो जायगा जय वह सन्दूकडी खोली जायेगी। भूतनाथ की बातों ने देवीसिह का चक्कर में डाल दिया। वह कुछ भी नहीं समझ सकते थे कि वास्तव में क्या बात है। देवीसिह ने जो बातें भूतनाथ स पूछी उनका जवाब भूतनाथ ने बड़ी खूबी के साथ दिया न तो कहीं अटका और न किसी तरह का शक रहने दिया और ये ही बातें थी जिन्होंन देवीसिह को तरददुद परेशानी और आश्चय में डाल दिया था। बहुत देर गौर करन के बाद देवीसिह ने पुन भूतनाथ से पूछा । देवी-अच्छा अब तुम क्या चाहत हो सा कहो ? भूत- कवल इतना ही चाहता हूं कि आप मुझ इस मकान में ले चलिए और तजसिह तथा तीनो बहिना से कहिये कि मेर मुकदम की पूरी पूरी जाच करें आप लोगों के आगे निर्दाप हाने के विषय में जो कुछ मै सबूत दू उसे अच्छी तरह सुनें समझें और देखें तथा इसके बाद जो दगाबाज ठहर उस सजा द बस । देवी-अच्छा में जाकर लजसिह आर कमलिनी स ये बातें कहता हु, फिर जेसा व कहेंग किया जायगा । भूत-ता आप एक काम और कीजिए। देवी-वह क्या। इसके जवाब में भूतनाथन अपन एयारी क बटुए में से एक तस्वीर निकाल कर देवीसिह के हाथ मे दी और कहा आप यह तस्वीर लक्ष्मीदवी (तारा) को दिखाए और पूछे कि तुम्हारा बाप यह है या वह दगाबाज जो सामने बैठा हुआ अपन का बलभद्रसिह बताता है? दवीसिह न वड गौर से उस तस्वीर को देखा। यह तस्वीर पूरी तो नहीं मगर फिर भी बलभदसिह की सूरत स बहुत कुछ मिलती थी। भूतनाथ की बातों ने और उसके सवाल जवाब के ढग ने देवीसिह के दिल पर मामूली असर पैदा नहीं किया था बल्कि सच ता यह है कि उसने थाडी दर क लिय देवीसिह की राय बदल दी थी। देवीसिंह ने सोचा कि ताज्जुब नहीं भूतनाथ बहुत कुछ सच कहता हा और बलभद्रसिह वास्तव में असली बलभद्रसिह न हो क्योंकि जहा तक भैन देखा है बलभदसिह के मिलन स जितनाजोश कमलिनी लाडिली और तारा के दिल में पैदा हुआ था उतना बलमदसिह के दिल में अपनी तीनों लड़कियों को देख कर पैदा नहीं हुआ यह एक ऐसी बात है जो मेरे दिल में शक पैदा कर सकती है मगर उस कागज के मुद्दे में जितनी चीठियों भूतनाथ के हाथ की लिखी कही जाती हे वे अवश्य भूतनाथ के हाथ की लिखी हुई है इसमे कोई सन्देह नहीं क्योंकि जब मैने भूतनाथ से कहा था कि तुम्हारे अक्षर इन चीटियों के अक्षरों से मिलते है तो इस बात काकाई जवाब उसने नहीं दिया अस्तु उन दुष्ट कर्मो का करने वाला तो अवश्य भूतनाथ है मगर क्या यह बलभदसिह भी वास्तव में असली वलभद्रसिह नहीं है? अजय तमाशा है कुछ समझ में नहीं आता कि क्या निश्चय किया जाय। इस सय वातों को सोचत हुए दवीसिह वहा से रवाना हुए और डोगी पर सवार हो मकान के अन्दर गए जहा तेजसिह उस कागज के मुद्दे का हाथ में लिए हुए देवीसिह के वापस आने की राह देख रहे थे। तेज-दवीसिह तुमने इतनी दर क्यों लगाई ? में कब स राह देख रहा हू कि तुम आ जाआ तो इस मुद्वे का खोलू। देवी-हा हा आप पदिय मे भी आ गया। देवकीनन्दन खत्री समग्र ५६२