पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७१

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lor तेज-मगर यह ता कहा कि तुम्हें इतनी देर क्यों लगी? देवी-भूतनाथ 7 मुझ रोक लिया और कहा कि पहिल मेरी बात सुन ला ता यहा से जाओ। बलभद-क्या भूतनाथ तालाय के बाहर अभी तक बेटा है ? देवी-हा अभी तक पता है और पटा रहा। बलभद-सा क्या क्या कहता है? देवी-वह कहता है कि मुझे कमलिनी ने बिना समझे व्यर्थ निकाल दिया उन्हें चाहिय था कि नकली बलभद्रसिर के सामा मेरा इन्साफ करती। बलभद-नकली बलभदसिह कैसा? देवी-वह आपका नकली धनगदसिह पताना हे और कहता है कि असली बलभदासह अभी तक एकाद है अगर किरगे को शक हो तो मुझरा सवाल जवाब कर ले। बलभद-नकली और असली 87 में प्रवृत्त की जरूरत है या सवाल जवाब करने की? देवी-ठीक है मगर उसन आपका दुलाया है और कहा है कि बलभद्रसिह मरी एक बात आकर सुन जाय फिर जो कुछ उनके जी में आव करे। बलभद-मारकम्बख्त का में अब उसकी याते सुनन के लिए क्यों जान लगा? देवी-व्या हर्ज है अगर आप उसकी दा बातें सुन ले कदाचित कोई नया रहस्य ही मालूम हो जाय । बलभद-नहीं में उसके पास न जागा । तेज-ता भूतनाथ का इसी जगह क्यों न बुला लिया जाय? कमलिनी-हाँ में भी यही उचित समझती हूँ। देवी-नहीं नहीं इससे यह उत्तम होगा कि बलभदसिह खुद उसस मिलने के लिए तालाब पर जायें । इतना कह कर देवीसिह ने तेजसिह की तरफ देखा और कोई गुप्त इशारा किया। बलभद-उराका इस मकान में आना मुझ भी पसन्द नहीं | अच्छा में स्वय जाता ह, दखू वह नालायक क्या कहता तेज-अच्छी बात है आप भरोसिह को अपर साथ लत जाइय। बलभद-सा क्यो? देवी-फोन टीक कम्बखत चाट कर बेट आखिर गम और डर ने उस पागल तो बना ही दिया है। इतना कह कर देवीसिह ने फिर तजसिह की तरफ दखा और इशारा किया जिसे सिवाय तेजसिह के और कोई नहीं समझ सकता था। बलभद-अजी उस कम्बरत गीदड की इतनी हिम्मत कहा जो मरा मुकाबला करे । तेज-ठीक है मगर भैरोसिंह को साथ लकर जाने में हर्ज भी क्या है? (भैरासिंह से) जाओ भैरो तुम इनके साथ जाआ । लाधार भेरोसिह को साथ लकर बलभदसिह बाहर चला गया। इसके बाद कमलिनी न देवीसिंह से कहा, मुझ मालूम होता है कि आपने मेरे पिता का जर्बदस्ती भूतनाथ के पास भेजा है। देवी-हा इसलिए कि य थाडी देर के लिये अलग हो जाय तो में एक अनूठी बात आप लोगो स कहू। कम-(चौफ कर ) क्या भूतनाथ ने कोई नई बात बताई है? देवी-हा भूतनाथन यह बात बहुत जोर देकर कही कि असली वलभदसिह अभी तक कैद में है और यदि किसी को शक हो तो मेरे साथ चल में दिखला सकता है। उसने बलभद्रसिह की तस्वीर भी मुझ दी है और कहा कि यह तस्वार तीन बहिना को दिया पहिया कि असली बलभदसिह यह है या वह। लक्ष्मीदवीन हार बढाया और देवीसिंह ने वह तस्वीर उसके हाथ पर रख दी। तारा-(तस्वीर देख कर) आह !यह तो मेरे बाप की असली तस्वीर है। इस देहर में लो काई ऐसा फर्क ही नहीं है जिससे पहिबानन में कठिनाई हो। (कमलिनी की तरफ तस्वीर बदा कर)लो बहिन तु भी मी देखला मै समझती हूयह सूरत तुम्हें भी न भूली होगी। कमलिनी--(तस्वीर दयकर) वाह) क्या इस सूरत का मैं अपनी जिन्दगी में कभी भूल सकती। (देदीसह स क्या भूताय ने इसी सूरत का दिखाने का वादा किया है? देवी- इसी का। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२