पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७४

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बलभद्रसिह के मोढे का निशान देखकर कमलिनी लाडिली और लक्ष्मीदेवी का शक जाता रहा और इस साथ ही साथ तेजसिह इत्यादि ऐयारों को भी निश्चय होगया कि यह बेशक कमलिनी लक्ष्मीदेवी और लाडिली का बाप है और भूतनाथ अपनी बदमाशी और हरमजदगी से हमलोगों को धार में डाल कर दुय दिया चाहता है। थोडी देर तक बाप बेटियों के बीच में वैसी ही मुहब्बत भरी बातें हाती रही जैसी कि गप बेटियों में होनी चाहिये और वीच ही बीच में ऐयार लोग भी हा, नहीं टीक है वेशक इत्यादि करत रहे। इसके बाद इस विषय पर विचार हाने लगा कि भूतनाथ के साथ इस समय क्या सलूक करना चाहिए। बहुत वादाविवाद हाने पर यह निश्चय ठहराकि भूतनाथ को कैदकर रोहतासगढ भज दना चाहिए जहा उसके किए हुए दापों की पूरी पूरी तहकीकात समय मिलन पर हा जायगी हा लगे हाथ उस कागज के मुद्दे को अवश्य पढ कर समाप्त कर दर चाहिए जिससे भूतनाथ की बदमाशियों तथा पुरानी घटनाओं का पता लगता है-तथा उन सब बातो से छुट्टी पाकर किशारी कामिनी लक्ष्मीदवी कमलिंगी और लाडिली को राहतासगढ़ में चल कर आराम के साथ रहरा चाहिए। ऊपर लिखी बातों में जात पा चुकी थी कई यात कमलिनी की २च्छानुसार न थीं मगर तजसिह की जिद स जिन्हें सब लोग बडा बुजुर्ग और पुद्धिमान मानते थ लाचार हाकर उस मानना ही पड़ा। तजसिह उसी समय कमरे के बाहर चले गए और पील बुलाकर दसिह तथा रेरासिट का अभी तरफ ध्यान दिलाया जब दोनों ऐयारा ने इधर दया तो तेजसिह कुछ इशारा किया जिसस वदोनों समझ गए कि भूतनाथ । को कैदियों की तरह बेवस करके मकान के अन्दर ल आन की आज्ञा हुई है। देवीसिह यह धात भूताय स कही नाय ने कुछ सोचकर सिर झुका लिया और तय हथकड़ी महिनन के लिए अपन दानों हाथ दवासिह की तरफ खटाए। देवीसिह ने हथकडी ओर बेडी से भूतनाथ को दुरुस्त किया और इसका बाद दोनों एयार उस जगी पर चढ़ाकर मकान के अन्दर ल आए 1 इस समय भूताथ की निगाह फिर उस कागज के मुद्द और पीतल की सदूकडी पर पड़ा और न उसके रोहर पर मुर्दनी छा गई। तेज भूतनाथ तुम्हारा कसूर अव हम सच लागों को मालूम हो चुका है। यद्यपि यह कागज का मुटदा अनी पूरा पूरा पढा नहीं गया केवल चार पाच पीठिया है। इसमें को पदी गई पर तु इतने ही स सभा का कले. o गया है। नि सन्दह तुम बहुत कड़ी सजा पान के अधिकारी ही अतएव तुम् इस समय कैद । रन का हुक्म दिया है फिर जी होगा दखा जायगा। भूत-(कुछ साचकर) मालूम होता है कि मेरी माँ पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और इस बलभदसित की सभा ने सच्चा समझ लिया है। तेज-वेशक बलभद्रसिह सच्चे है और इस विषय में अब तुम हम लोगों का धारखा दन का उद्योग मत करो हा यदि कुछ कहना है तो इन चीतियों के बारे में कही जो बेशक तुम्हारे हाथ की लिखी हुई है और तुम्हारे दापों को आईने की तरह साफ याल रही है। भूत-हा इन चीटियों के विषय मे भी मुझे बहुत कुछ कहा है परन्तु आप लोगों के सामने कुछ कहना उचित नहीं समझता क्योंकि आप लोग मेरा फैसला नहीं कर सकते है। तेज-सो क्या क्या हम लोग तुम्ह सजा नहीं द सकते ? भूत-यदि आप धर्म की लकीर को बेपरवाही के साथ लाघने से कुछ भी सकाच कर सकते हैं 8 मेरा कहना सही है क्योकि आप लोगों के मालिक राजा वीरेन्दसिह मरे पिछले कसूरों को माफ कर चुके है और इधर राजा वीरेन्दसिह का जो जो काम मै कर चुका हूँ उस पर ध्यान दने योग्य व ही है। इसी से मैं कहता है कि बिना मालिक के कोई दूसरा मेरे मुकदमें का देख नहीं सकता। तेजसिह-(कुछ दर सोचने के बाद ) तुम्हारा यह कहना सही। खैर जैसा तुम चाहते हो वैसाही होगा और राजा साहब ही तुम्हारे मामले का फैसला करेंग मगर मुजरिम को गिरफ्तार और कद करना तो हम लोगों का काम है। भूत-देशक कैद करके जहा तक जल्द हा सके मालिक के पास ले जाना जरुर आप लोगों का काम है मगर कैद में बहुत दिनों तफ रख कर किसी को कष्ट देना आपका काम नहीं है क्योंकि कचित् यह निदाय ठहरे जिसे आपने दोषी समझ लिया हो। तेज-क्या तुम फिर भी अपने का बेकसूर साबित करने का उद्योग करेंगे। भूत-येशक मै धेकसूर बल्कि इनाम पाने योग्य हू परन्तु आप लोगों के सामने जिन पर अक्ल की परछाई तक नहीं पड़ी है मे अब कुछ भी न कहूगा। आप यह न समझिए कि में केवल इसी यनियाद पर अपने को छुड़ा लूगा कि महाराज ने मेरा | कसूर माफ कर दिया है। नहीं बल्कि मुकद्दमा कोई अनूठा रग पैदा करके मेरे बदले में किसी दूसर ही को देवकीनन्दन खत्री समग्र .