पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७५

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cort कैदखाने की कोठरी का महमान बनावेगा। तेज - खैर में भी तुम्हें बहुत जल्द राजा बीरेन्दसिह के सामन हाजिर करन का उद्योग करुगा। इतना कह कर तेजसिह नदवीसिह की तरफ देखा और दीसिह ने भूतनाथ को तहखान की कोठरी में ले जाकर चन्द कर दिया। इस काम से छुट्टी पाकर तेजसिह ने चाहा कि किसी एयार के साथ भूतनाथ और भगवनिया को आज ही राहतासगढ रवाना करें और इसके बाद कागज के मुह को पुन पढना आरम्भ करें मगर उन्हें शीघ ही मालूम हो गया कि काई एघार तब तक भूतनाथ का लकर राहतासगढ जाना खुशी से पसन्द न करेगा जब तक भूतनाथ की जन्मपत्री पढ या सुन न लेगा। अस्तु तजसिह की यही इच्छहुईकि लगे हाथ सब कोई रोहतासगढ चले चलें और जो कुछ हा वहा ही हा। अन्त में एसा ही हुआ अर्थात तजसिह की आज्ञा सभों का माननी पड़ी। चौथा बयान - नानक को तो हमने इस तरह भूला दिया जैसे अमीर लोग किसी से कुछ वादा करके उसे भुला देते है। आज अकस्मात नानक की याद आयी है अकस्मात काहेचल्कि यों कहना चाहिए कि यकायक आ पड़ने वाली आवश्यकता ने नानक की याद दिला दी है। निया प्रान्न से भाग हुए स्वार्थी नानक ने वहा से बहुतदूर जाकर अपना डेरा बसाया ओर यही सवव है कि आज मिथिलश की अमलदारी में एक छोटे से शहर के मामूली महल्ले में मगनी का मकान लेकर लापरवाही के साथ दिन वितात हुए नानक को हम देखते हैं। यह शहर यद्यपि छोटा है मगर दो तीन पढे लिखे विद्यानुरागी रईसों ओर अमीरों के कारण जिन पर यहा की रिआया का बहुत बड़ा प्रम है अगूठी का सुडौल नगीना हो रहा है। नानक यद्यपि कगाल नहीं था मगर बहुत ही खुदगर्ज और साथ साथ कजूस भी हाने के कारण अपने को छिपाये हुए बहुत ही साधारण ढम से रहा करता था अर्थात उसके घर में (कुत्ते दिल्ली को छोड) एक नौकर एक मजदूरनी और एक उसकी जारू के सिवाय जिसे वह न मालूम कहाँ से उठा लाया या व्याह लाया था और कोई भी नहीं रहता था।, लागों का कथन तो यही था कि नानक ने व्याह करके अपनी गृहस्थी बसाई है मगर कई आदमियों को जो नानक के साथ ही साथ रामभोली के किस्स से भी अच्छी तरह जानकार थे इस बात का विश्वास नहीं होता था। नानक के लिए यह शहर नया नहीं है। जव से उसका नाम इस किस्स में आया है उसके पहिले भी समय समय पर कईदफ वह इस शहर में आकर रह चुका है। अवकी दर्फ यद्यपि उसे इस शहर में आए बहुत दिन नहीं हुए मगर वह इस ढग स रह रहा है जैसे पुराना वाशिन्दा हो। वह यह भी साचे हुए है कि उसका गुमनाम बाप अर्थात् भूतनाथ जिसका असल हाल थोडे ही दिन हुए उसे मालूम हुआ है बहुत जल्द वीरेन्द्रसिह की बदौलत मालामाल हो कर शहर में आवेगा और उस समय हमलोग बडी खुशी से जिन्दगी बिताग मगर उसकी इस आशा को वडा भारी धक्का लगा जैसा कि आग चल कर मालूम होगा। रात पहर भर के लगभग जा चुकी है। नानक अपने मकान के अन्दर वाल दालान का बिछावन आसन और रोशनी क सामान स इस तरह सजा रहा है जैसे किसी नए या बहुत ही प्यार मेहमान की अवाई सुन कर जाहिरदारी के शौकीन लाप सजाया करते हैं। उसकी स्त्री भी खाने पीने के सामान की तैयारी में चारों तरफ मटकती फिरती है और थालियों का तरह तरह के खान तथा कई प्रकार क मास स सजा रही है। उसकी सूरत शक्ल और चाल ढाल से यह भी पता लगता है कि उसे अपन मेहमान के आने की खुशी नानक से भी ज्यादे है। खेर इस टीमटाम के बयान का तो जाने दीजिये मुख्तसर यह है कि बात की बात में सब सामान दुरुस्त हो गया और नानक की स्त्री ने अपनी लौडी स कहा- अरे जरा आग बढ़ के दय ता सही गज्जू यायू आत है या नहीं ॥ लोडी-(धीर से जिसमें दूसरा काई सुनने न पावे) बीबी जल्दी क्यों करती हो वेता यहाँ आन के लिए तुमसे भी ज्याद बेचैन हा रह होंगे। बीवी-( मुस्कुरा कर धीर स ) कम्बख्त-यह तू केस जानती है? लौडी-तुम्हारी और उनकी चाल स क्या ने नही जानती ? क्या उस एकादशी के रात वाली बात भूल जाऊगी? (अपना नाजू दिखाकर ) दया यह तुम्हार। लो अपना पूरी बात कर पाई थी कि मटकत हुए नानक भी उसी तरफ आ पहुंचे और लाचार होकर लोडी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२