पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७८

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दि तुम्हारी मा को भी अष्टम चन्द्रमा की तरह कृपा दृष्टि से दख लिया और साढेसाती के कदिन शनिको भी तुमस जैगापाल करने के लिए कहला भेजा है पर इससे यह न समझना कि ज्योतिषियों के बताए हुए दान का फल बन कर मैं तुम्हारी रक्षा के लिए आया हूँ। अब तुम्हें भी यह उचित है कि आजकल के ज्यातिपियों क कर्म-भण्डार से फलित विद्या की तरह जहा तक जल्द हो सके अन्तर्ध्यान हो जाओ। नानक--(डर कर ) अफसोस तुम्हारी पुरानी आदत किसी तरह कम नहीं हाती! दाशब्दों में पूरी हो जाने वाली बात को भी बिना हजार शब्दों का लपेट दिये तुम नहीं रहते। साफ क्यों नहीं कहते कि क्या हुआ। नकार्य-अफसास अभी तक तुम्हारी बुद्धि की कतरनी को चाटो के लिए शान का पत्थर नहीं मिला। अच्छा तव में साफ साफ ही कहता हूँ सुनो। तुम्हारे शाप का छिपा हुआ दोप बरसात की बदली में छिपे हुए चन्दमा की तरह यकायक प्रकट हो गया इसी स तुम्हारी माँ भी दुश्मन के काबू में शेर के पज में प्रचारी हिरनी की तरह पड़ गई और उसी कारण से तुम पर भी उल्लू के पीछे शिकारी वाज की तरह धावा हुआ ही चाहता है। सम्भव है कि चारपाई के खटमल की तरह जय तक काई दूढन क लिए तैयार हा तुम गायय हो जाओ मगर मेरी समझ में फिर भी गर्म पानी का डर बना ही रहेगा। नानक-(चिढ कर) आखिर तुम न मानाग 1 खैर मै समझ गया कि मर धाप का कसूर धीरन्दसिह को मालूम हो गया। परन्तु उनके तजसिह के और कमलिनी के मुँह स निकल हुए क्षमा शब्द पर मुझे बहुत कुछ भरासा था यद्यपि दोष जान लेने के पहिले ही उन्होंने ऐसा किया था। नकाय-नहीं नहीं तुम्हारे बाप ने चीरेन्दसिह का जो कसूर किया था वह तो उनके एयारो का पहिल से ही मालूम हो गया था भगर इन नये प्रकट भये हुए दोपों के सामन व दोप ऐसे थे जैस सूर्य के सामन दीपक चन्दमा के सामन जुगनू दिन के आग रात या मरे मुकाबलम तुम नानक-अगर तुममें वह ऐव न होता तो तुम बड़े काम के आदमी थे दख रहे हो कि हम लोग सड़क पर बमौके खड़े है मगर फिर भी सक्षप में वात पूरी नहीं करते । नकाव-इसका सयव यही है कि मेरा नाम सक्षप में या अकले नहीं है गापी और कृष्णा इन दोनों शब्दों से मेरा नाम बड़े लोगों ने ठोक मारा है अस्तु बड़े लोगों की इज्जत का ध्यान करके मैं अपने नाम को स्वार्थ की पददी देन के लिए सदैव उद्योग करता रहता हूँ। इसी स गोपियों के प्रेम की तरह मेरी बातों का तौल नहीं होता और जिस तरः कृष्ण जी त्रिभगी थे उसी तरह मेरे मुख से निकले हुए शब्द भी त्रिभगी होते है। हा यह तुमने ठीक कहा कि सड़क पर खड रहना भले मनुष्यों का काम नहीं है अस्तु थाडी दूर आगे बढ़ चला और नदी के किनारे बैठ कर मरी बात इस तरह ध्यान देकर सुनो जैसे बीमार लोग वैद्य के मुंह से अपनी दवा का अनुपात सुनते है । यस जल्दी बढो देर न करो क्योकि समय बहुत कम है कही एसा न हो कि विलम्ब हो जाने के कारण वीरेन्द्रसिह के ऐयार लोग आ पहुचे और उस चरणानुरागी पात्र की मजबूती का इल्जाम तुम्हारे माथे ठोकें जिसके कारण जगली काटों और ककड़ियों से बच कर यहा तक वे लोग पहुंचेंगे। नानक-(झुझझलाकर) बस माफ कीजिए बाज आये आपकी बातें सुनने स! जिस सयब से हम पर आफत आने वाली है उसका पता हम आप लगा लेंगे मगर दौपदी के चीर की तरह समाप्त न होने वाली तुम्हारी याते न सुनेंगे। नकाव-( हस कर ) शायाश शायाश जीत रहा अब मैं तुमसे सुश हा गया क्योंकि अब तुम भी अपनी बातों में उपमालकार की टाग ताडालगे। सच तो यों है कि तुम्हारा झुझलाना मुझे उतना ही अच्छा लगता है जितना इस समय भूख की अवस्था में फजली आम और अधावट दृध से भरा हुआ घोसेरा केटारा मुझो अच्छा लगता। नानक-ता साफ साफ क्यों नहीं कहत कि हम भूये है जय तक पेट भर के या न लेग तब तक असल मतलब न नकाव-शाबाश खूब समझ । येशक मैने यही साचा था कि तुम्हारे यहा दक्षिणा के सहित भोजन करूगा और उन बातों का रत्ती रत्ती भेद बता दूंगा जिनकी बदौलत तुभ कुम्भीपाक में पड़ने सभी ज्यादा दुख भोगा चाहते हो मगर नहीं दाज पर पहुँचत ही दखता हू कि फाडा फूट गया और सडा मवाद यह निकला है। अब तुम इस लायक न रह कि तुम्हारा छूआ पानी भी पीया जा4 खैर तुम्हारे दोस्त है जिस काम के लिये आये है उसे अवश्य ही पूरा करेंगे। (मुछ सोच कर )क भी नहीं छि छि, तुझ नालायक से अब हम दोस्ती रखना नहीं चाहते जो कुछ ऊपर कह चुका है उसो से जहा तक अपना मतलब निकाल सको निकाल ला और जो कुछ करते बने कर। हम जात है । इतना कह कर नकाबपाश वहा से रवाना हो गया। नानक न उस बहुत समझाया और रोकना चाहा मगर उसने एक न सुनी और सीध नदी के किनारे का रास्ता लिया तथा नानक नी अपनी बदकिस्मती पर रोता हुआ घर पहुंचा। उस समय मालूम हुआ कि उसके नौजवान अमीर दोस्त को अच्छी तरह अपनी नायाब ज्याफत का आनन्द लकर गए हुए आधी घडी के लगभग हो चुक्त है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ५७०