पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५८०

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निकले तव तक किशोरी स्वय खोह के बाहर निकल आई। कमला ने पिसारी को देखा तो बडे जाश और मुहब्बत से लपक के किशोरी के गले से लिपट गई और किशोरी ने भी बड़े प्रेम से उस दवा लिया तथा दोनों की आखों से आसुओं की बूदें टपाटप गिरने लगी। कमलिनी ने दोनों को अलग किया और कमला को अपने गले सलगालिया, इसके बाद कामिनी लाडिली और तारा भी बारी बारी कमला से मिली। उस समय सभों के चेहरयुशी से दमक रह ये और सभी क दिल की कली खिली जाती थी। किशोरी कामिनी तारा और लाडिली को मालूम हो चुका था कि रामला भूतनाब की लड़की है और वे सब भूतनाथ से बहुत रज थी मार कमला की तरफ से किसी के दिल मलान या पल्कि कमला को देखने के साथ ही उन पाचों के दिल में एसी मुहब्बत पैदा हो गई जैसा रस मियों के दिल में हुआ करती है। मगर अफसोस कि अभी तक कमला को इस बात की रावर ही कि भूतनाथ उसका बाप है और उरग्न बडबर कसूर किये है। किशोरी कमलिनी और कमला इत्यादि की मुहब्बत भरी दातचीत कदापि पूरी न होती यदि तेजसिह यहा५प कर यह न कहते कि अब तुम लोगों को यहा से बहुत जल्द चल देना चाहिय जिससे स्यान्त व परिलेटी राहतासगट पहुंच जाय । पालकिया गुफा के आगे रक्यी गई कमलिनी किशोरी कामिनी कामला लाइिली और ताग उस पर सवार हुई। कहारों को आकर पालकी उठान का हुक्म दिया गया और खुशी राशी सय काई राहतासगढ़ की रफ रवाना हुए। सूर्य अस्त होने का पहिले ही रवारी तासमह फिल के अन्दर दासिल हा गइमिल का जनाना भाग आज फिर रोनक हा गया मगर जना महल में पैर रखते ही एक दफे किभारी की कलजा दहल उठायोकि इस समय उसार पुन अपने का उसी मकान में पाया जिसमें कुछ दिर पहिलसी की अपस्या रात कोतकलाप, उटा चुकी थी और इसके साथ ही साथ उराका लाली और कुदा की च वाले याद आ गई चल किसारी हार नहीं बल्कि लाडिली का भी यह जभाना याद आ गण क्यामि यही लाडिलो लाली बन कर उन दिन इस महल में रहती जिादित किशोरी यहा मुसीबत के दिन काट रहा थी। लाडिली तो किशारी का पहिचानती थी मगर किशारी को इस बात का गुमान भी न था कि वह लाली वारस में यहा लाडिली शी जो आज हमार रहल में दाखिल है। महल में पैर रखन के साथ ही किशोरी को व पुरानो बात याद आ गई और इस समय स उस सूबसूरत हर पर थाडी दर के लिय उदासी छा गई साथ ही पुरानी रात याद आ जान के कारण लाडिली की निगाए ना किसारी का बेहरे पर जा पडी। वह उसकी अवस को दय कर समझ गई कि इस समय इस पुरानात वाद आ गई। उनी बातो को खुद भी याद करके इस समय अपने को और किशोरी को मालिक की तरह या दूसरास इस मा आएदय के और किशोरी के चहरे पर ध्यान पड़ने से लाडिली को हसी आ गई। उसने कहा राफ परतु राक न सकी और खिलखिला कर हस पडी जिसस किशोरी को ताज्जुब हुआ और उसने लाडिला से पूग? किशोरी-क्यों तुम्हें रसो किस बात पर आई? लाडिली-यो ही हसी आ गई। किशोरी--ऐसा नहीं है इसमें जरूर काई भय है क्योकि कई दिगो सहमारा राम्रा साथ है पर इस बार मे व्यर्थ हसते हुए हमने तुम्हें कभी नही दखा। बताआ तो सही या बात है? लाडिली-तुम् विचित्र दग से घबडाए हुए चारों तरफ दयत देय मुझ हसी आ गई। किशोरी केंदल यही बात नहीं है जरूर कोई दूसरा सबर भी इसके साथ है। कमलिनी- मैं समझ गइ बहन मुझसे पूछो, मै बताऊगी बेशक लाडिलो को ईसा का दूसरा सब लिसे वह शर्मा भारे नही कहा चाहती। किशोरी-(कमलिनी की कलाई पफड कर ) अच्छा परिन तुम ही बताओ कि इसका क्या सच है? कमलिनी-इसके हसन का सबब यही है कि जिन दिनो तुम इस मकान में देवरो और मुसीवत से दिन काट रही थी उन दिनों यह लाजिली भी यहा रहती थी और इससे तुमसे बहुत मेल मिलाप था। किशोरी-- (ताज्जुब से) तुम भी हसी करतो हो । क्या में ऐसी बेवकूफ हूँ जो महीनों तक इस महल में लाजिली मेरे साथ रहे और में उसे पहिचान सकू। कमलिनी-(हस कर) यह तो मैं नहीं न कहती कि उन दिनों इस महल में लाडिली अपनी असली सूरत में थी मेरा मतलब लाली से है वास्तव में यह लाडिली उन दिनों लालीबा कर यहा रहती थी। किशोरी-(ताज्जुय से घबरा कर और लाडिली का हाथ पकड कर ) है -क्या वास्तय में तुम ही थी। लाडिली-इसके जवाब में ही कहते मुझे शर्म मालूम होती है। अफसोस उन दिनों मेरी नीयत आज की तरह साफ देवकीनन्दन खत्री समग्र ५७२