पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५९१

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R R शेर-ऐसा नहीं हो सकता। इतना सुनते ही मायारानी ने तिलिस्मी खजर कमर से निकाल लिया और शेरअलीखों की तरफ बढा ही चाहती थी कि सामने के दर्वाजे स आता हुआ फिर वही जिन्न दिखाई पड़ा। जिन्न-(मायारानी की तरफ इशारा कर के इसके कब्जे से तिलिस्मी खञ्जर ले लेना मै भूल गया था क्योंकि जब तक यह खञ्जर इसके पास रहेगा यह किसी के काबू में न आएगी। यह कह कर उसने मायारानी की तरफ हाथ बढ़ाया और मायारानी ने वह खञ्जर उसके बदन के साथ लगा दिया मगर उसे इसका असर कुछ भी न हुआ। जिन्न ने मायारानी के हाथ से खञ्जर छीन लिया तथा अंगूठी भी निकाल ली और इसके बाद फिर बाहर का रास्ता लिया। दारोगा और जितने आदमी वहाँ मौजूद थे सव आश्चर्य और डर के साथ मुह देखते ही रह गये, कोई एक शब्द भी मुंह से निकाल न सका। अब इस जगह हम पुन थोडा सा हाल उन ऐयारों का लिखना चाहते है जो इस कमरे के छत पर बैठे सब तमाशा देख और सभी की बातें सुन रहे थे। शेर अलीखों को छोड कर जब वह जिन्न कमरे क बाहर निकला तोउसी समय तेजसिह छत के नीचे उतरे और इस फिक्र में आगे की तरफ बढे कि जिन्न का पीछा करें मगर जब ये छिपते हुए सदर दर्वाजा के पास पहुंचे जिधर से वह जिम्न आया और फिर लौट था तो उन्होंने और भी कई बातें ताज्जुब की देखीं। एक तो यह कि वह जिन्न लौट कर चला नहीं गया बल्कि अभी तक छिपा हुआ दर्वाजे के बगल में खड़ा है और कान लगा कर सब बातें सुनरहा है दूसरे यह कि जिन्न अकेला नहीं है बल्कि उसके साथ एक आदमी और भी है जो स्याह नकाब से अपने को छिपाये हुए और हाथ में नगी तलवार लिए है। जब यह जिन्न दोहरा कर कमरे के अन्दर गया और मायारानी से तिलिस्मीखञ्जर छीन कर फिर बाहर चलाआया तो अपने साथी को लिये हुए वाग की तरफ चला और कुछ दूर जाने के बाद अपने साथी से बोला आओ भूतनाथ अब तुमको फिर उसी कैदखाने छोडआ। जिसमें राजा बीरेन्द्रसिह के ऐयारों ने तुम्हें कैद किया था और उसी तरह हथकडी बेडी तुम्हें पहिरा दें जिसमें उन लोगों को इस बात का गुमान भी न हो कि भूतनाथ को कोई छुडा ले गया था भूत-बहुत अच्छा मगर यह तो कहिये कि अब मेरी क्या दशा होगी? जिन्न दशा क्या होगी ? मैं तो कह चुका कि तुम हर तरह से बेफिक्र रहो ठीक समय पर मै तुम्हारे पास पहुच जाऊगा। भूत-जैसी आपकी मर्जी मगर मैं समझता हू राजा बीरेन्द्रसिह के आने में अब विलम्ब नहीं और उनके साथ ही मेरा मुकदमा पेश हो जायगा ।। जिन्न क्या हर्ज है मुझे तुम हर वक्त अपन पास मौजूद समझो और वैफिक रहो। भूत-जो मर्जी। तेजसिह ने जो छिपे हुए उन दोनों के पीछे जा रहे थे ये बातें भी सुन ली और उन्हें हद से ज्यादे आश्चर्य हुआ। जिन्न और भूत दोनों उस मकान के पास पहुचे जिसकी छत फोड़ी गई थी और जो तिलिस्मी तहखाने के अन्दर जाने का दाजा था। भूतनाथ ने कमन्द लगाई और उसी के सहारे जिन्न तथा भूतनाथ उसके ऊपर चढ़ गए और टूटी हुई छत की राह से अन्दर उतर गए। तेजसिह ने भी उसके अन्दर जाने का इरादा किया मगर फिर कुछ सोच कर लौट आए और उसी कमरे की छत पर चले गए जहाँ अपने साथियों को छोड़ा था। अब हम पुन कमरे के अन्दर का हाल लिखते है। जब मायारानी से तिलिस्मी खञ्जर छीन कर वह जिन्न कमरे के बाहर चला गयतो मायारानी बहुत ही डरी और जिन्दगी से नाउम्मीद होकर सोचने लगी कि अब जान बचनी मुश्किल है बड़ी नादानी कीजो यहा आई भाग निकलने पर भी धनपत वाली करोड़ों रुपये की जमा मेरे हाथ में थी। अगर चाहती या आज के दिन की खबर होती तो किसी और मुल्कमें चलीजाती और जिन्दगी भर अमीरी के साथ आनन्द करती। मगर दुश्मनी की डाह में यह भी न होने पाया असभव बातों की लालध में पड़ कर शेरअलीखा के घर में वह सब माल रख दिया और उस स्वार्थी और मतलबी ने ऐसे समय में मेरे साथ दगा की। अब क्या किया जाय? मैं कहीं कीन रही। एक तो अब मुझे बचने की आशा ही नहीं रही फिर अगर मान भी लिया जाय कि पहिले की तरह यदि अब भी राजा गोपालसिह मुझे छोड़ देंगे तो मैं कहा जाकर रहूगी और किस तरह अपनी जिन्दगी बिताऊगी ? हाय इस समय मेरा मददगार कोई भी नहीं दिखाई देता । मायारानी इन सब बातों को सोच रही थी और शेरअलीखा क्रोध में भरा हुआ लाल आखों से उसे देख रहा था कि यकायक कई आदमियों के आने की आहट पा कर वे दोनों चौके और दर्वाजे कीतरफ घूर गये। हमारे बहादुर ऐयारों पर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२ ५८३