पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५९२

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नजर पड़ी और सब के सब आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगे। सुबह की सुफेदी ने रात की स्याही को धोकर अपना रग इतना जमा लिया था कि चाग के हर एक गुलयुटे साफ साफ दिखाई देने लग गये थे जब तेजसिह देवीसिह भैरोसिह और तारासिह कमरे की छत पर से नीचे उतरे और शेरअली मायारानी और उनके आदमिया के सामने जा खड़े हुए। तेजसिह ने मुस्कुराते हुए मायारानी की तरफ देखा और आगे की तरफ बढ कर कहा- तेज-केवल राजा गोपालसिह ही नहीं बल्कि हम लोगों ने भी उनकी आज्ञा पाकर इसलिये कई दफे तुझे छोड़ दिया था कि देखें न्यायी ईश्वर तुझे तेरे पापा का फल क्या देता है मगर ईश्वर की मर्जी का पता लग गया। वह नहीं चाहता कि तू एक दिन भी आराम के साथ कहीं रह सके और हम लोगों के सिवाय किसी दूसरे या गैर पर अपनी जिन्दगी की आखिरी नजर डाले। केवल तू ही नहीं दारोगा की तरफ देखकर ) इस नकटे की यदकिस्मती भी इसे किसी दूसरी जगह जाने नहीं देती और घुमा फिरा कर घर बैठे हम लोगों के सामने ले आती है। हा यह एक (शेरअलीखों की तरफ देख के ) नये बहादुर है जो हम लोगों के साथ दुश्मनी करने के लिए तैयार हुए है। शेर-(हाथ जोड़ कर) नहीं नहीं मैं खुदा की कमस खाकर कहता है कि आप लोगों के साथ दुश्मनी का बर्ताव नहीं रक्खाचाहता और न मुझमें इतनीसामर्थ्य है। मुझे तो इस बदकार ने धाखा दिया। मुझे इसका असल हाल मालूम न था। बहुतों से सुन चुका हू कि आप लोग बडे बहादुर और दिल खोल के खैरात देने वाले है इसलिये भीख के ढग पर अपने उन कसूरों की माफी मागता है जो इस वक्त तक कर चुका है। तेज-अगर तुम्हारा दिल साफ है और आगे कसूर करने का इरादा नहीं है तो हमने माफ किया। अच्छा आओ और इन दोनों बदकारों को लिये हुए हमारे साथ चलो। हाँ यह तो बताओ कि ये पाचों तुम्हारे आदमी है या इस दारोगा के ?? शेर-जी हा ये पाचा आदमी मरे ही है। तेज-ओर भी तुम्हारा कोई आदमी इस याग में आया या आने वाला है ? शेर-जी नहीं मगर थोडी सी फौज इस पहाडी के नीच नदी किनारे मौजूद है जिसका तेज-( बात काट कर ) उसका हाल हमे मालूम है, खैर दखा जायगा तुम हमार साथ आओ । तेजसिह की आज्ञानुसार सब के सब कमरे के बाहर निकले। मायारानी और दारोगा के लिये इस वक्त मौत का सामान था भगर लाचार कोई बस नहीं चल सकता था और न वे दोनो यहा से भाग ही सकते थे। तेजसिह ने भैरोसिह को कुछ समझा कर उसी याग में छोड़ दिया। और बाकी सभी को साथ लिये हुए अपने स्थान का रास्ता लिया। रास्ते में शेरअलीखा से यो बातचीत होने लगी तेज-आज की रात केवल हम लोगों के लिये नहीं बल्कि तुम्हारे लिये भी अनूठी ही रही। शेर-पेशक ऐसा ही है जिस राह में में इस बाग मे आया हु और यहा आकर जा कुछ देखा जन्म भर याद रहेगा। मैं निश्चिन्त होने पर सव हाल आपसे कहूरगा, आप सुनकर आश्चर्य करेंगे। तेज-हमें सब हाल भालूम है। रास्ते के बारे में हम लोगों के लिये कोई नई बात नहीं है क्योंकि जिस तहखाने की राह से तुम लोग आये हो उसी राह से हमलोग कई दफे आ चुके है बाकी रही जिन्न थाली वात सो वह भी हम लोगों से छिपी नहीं है। शर-(ताज्जुब से ) क्या आप लोग बहुत देर से यहाँ आये हुए थे? तेज-देरी से 'बल्कि हमारे सामने तुम इस बाग में आयेही हाँ तुम्हारे पायों नौकर पहिले आ चुके थे बल्कि यों कहना चाहिये कि उन्हीं के आने की खबर पाकर हम लोग आए थे। शेर-आप लोग हम लोगों को कहा से देख रहे थे? तेज-सो नहीं कह सकते मगर कोई मामला ऐसा ही हुआ जिसे हम लोगों ने न देखा हो या जिसे हम लोग न जानते हो। (मायारानी और दारोगा की तरफ इशारा करके हम लोगों का सामना होने के पहिले तक ये दोनों कम्बख्त सोचते होंगे कि जिन्न ने पहुच कर काम में बाधा डाल दी नहीं तो कमरे की जमीन खुद जाती और सुरग की राह से तुम्हारी फौज यहा पहुच कर किले को दखल कर लेती। शेर-बेशक ऐसा ही है और मै भी इसका पक्ष लिए ही जाता अगर उस जिन्न ने चाहे वह कोई भी हो मुझे कह न दिया होता कि यह मायारानी असल में तुम्हारे दोस्त की लडकी लक्ष्मीदेवी नहीं है बल्कि तुम्हारे दोस्त के दुश्मन हेलासिंह की लड़की मुन्दर है। तेज-मगर यह ख्याल झूठा था क्योकि तुम्हारी फौज के आने की खबर हम लोगों को मिल चुकी थी और हमलोग उसके रोकने का बन्दोवस्त कर चुके थे। केरल इतना ही नही बल्कि तुम्हारी फौज के सेनापति महबूबखा को हमारे एक ऐयार ने गिरफ्तार करके पहर रात जाने के पहिले ही इस किले में पहुचा भी दिया था। देवकीनन्दन खत्री समग्र