पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५९३

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नि शेर-( आश्चर्य से ) तो क्या महबूबखों यहा कैद है ? तेज-बेशक । शेर-ओफ आप लोगों के साथ दुश्मनी करना आप ही अपनी मोत को बुलाना है । तेज-(मायारानी की तरफ देख के) वडी खुशी की बात है कि आज तुम अपनी दोनों नालायक बहिनों को भी इसी- महल के अन्दर देखोगी। मायारानी ने इसका जवाब कुछ भी न दिया और सिर झुका लिया मगर भीतर से उसका रज और भी बढ़ गया क्योंकि कमलिनी तथा लाडिली के यहा होने की खबर उसे बहुत बुरी मालूम हुई। तेजसिह सभों को लिए अपो कमर में पहुचे। शेरअलीखा के लिए एक मकान का बन्दोवस्त किया गया दारोगा को कैदखाने की अधेरी कोठरी नसीब हुई और कमलिनी की इच्छानुसार मायारानी कैदियों की सूरत में महल के अन्दर पहुचाई गई। नौवाँ बयान दिन पहर भर से ज्यादे चढ चुका है। रोहतासगढ के महल में एक कोठरी के अन्दर जिसके दर्वाजे में लोहे के रंगखध लगे हुए हैं मायारानी सिर नीचा किये हुए गर्म गर्म आसुओं की बूदों से अपने चेहरे की कालिख धोने का उद्योग कर रहा है मगर उसे इस काम में सफलता नहीं होती। दर्वाजे के बाहर सोने की पीढियों पर जिन्हें बहुत सी लोडिया घेरे हुई है कमलिनी किशोरी कामिनी लाडिली लक्ष्मीदेवी और कमला बैठी हुई मायारानी पर बातों के अमोघ बान चला रही किशोरी-( कमलिनी से ) तुम्हारी बहिन भायारानी है बड़ी खूबसूरत कमला-केवल खूबसूरत ही नहीं भोली और शमाऊ भी हद से ज्यादे है दखिये सिर ही नहीं उठाती बात करना तो, दूसरी बात है। कामिनी-इन्हीं गुणों न तो राजा गोपालसिह को लुभा लिया था। कमलिनी-मगर मुझे इस बात का रज है कि ऐसी नेक बहिन की सोहबत में ज्यादे दिन तक रह न सकी। किशोरी-वेशक इसका रज तुम्हें और लाडिली को भी होना चाहिए। कमला-जो हो मगर एक छोटी सी भूल तो मायारानी से भी हो गई। कामिनी-वह क्या? कमलिनी-यही कि राजा गोपालसिह को इन्होंने कोठरी में बन्द करके कैदियों की तरह रख छोडा था। किशोरी-इसका कोई न कोई सवय तो जरूर होगा। मैने सुना है कि राजा गोपालसिह इधर उधर आखें बहुत लडाया करते थे, यहा तक कि धनपति नामी एक वेश्या को अपने घर के अन्दर डाल रक्खा था। (मायारानी से ) क्यों चीची यह बात सच है? लक्ष्मी-ये तो बोलती ही नहीं मालूम होता है हम लोगों से कुछ खफा है। कमला-हम लोगों ने इनका क्या बिगाडा है जो हम लोगों से खफा होंगी, हा अगर तुमसे रज हों तो कोई ताज्जुब की बात नहीं क्योंकि तुम मुद्दत तक तो तारा के भेष में रही और आज लक्ष्मीदेवी बन कर इनका राज्य छीनना चाहती हो। बीची चाहे जो हो में तो महाराज के सामने जरूर इन्हीं की सिफारिश करुगी तुम चाहे भला मानो चाहे बुरा । कामिनी-तुम भले ही सिफारिश कर लो भार राजा गोपालसिह के दिल को कौन समझावेगा? कमला-उन्हें भी मैं समझा लूगी कि आदमी से मूल चूक हुआ ही करती है ऐसे छोटे छोटे कसूरों पर ध्यान देना भले आदमियों का काम नहीं है देखो बेचारी ने कैसी नेकनामी के साथ उनका राज्य इतने दिनों तक चलाया। किशोरी-गोपालसिह तो बेचारे भोले भाले आदमी ठहरे उन्हें जो कुछ समझा दोगी समझ जायेंगे मगर ये तारारानी मानें तब तो ये जो हकनाहक लक्ष्मीदेवी बन कर बीच में कूर्दी पडती है और इस बेचारी भोली औरत पर जरा रहम नहीं खाती ॥ लक्ष्मी-अच्छा रानी लो मैं वादा करती हूँ कि कुछ न बोलूगी बल्कि धनपति को छुडवा देने के लिये भी उद्योग करगी क्योंकि मुझे भी इस बेचारी पर दय' आती है। कमला- हाँ देखो तो सही राजगापालसिह की जुदाई में कैसा बिलख बिलख कर रो रही है कम्बखत मक्खिप भी ऐसे समय में इसके साथ दुश्मनी कर रही है। किसी से कहो नारियल का चवर लाकर इसकी भक्खिया तो झले। चन्द्रकाना सन्तति भाग १२ ५८५