पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५९६

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जिन्न की बातों से सभों को बड़ा ही आश्चर्य और रज हुआ बल्कि हमारे कई एयारा को क्रोध भी चढ आया मगर राजा वीरेन्द्रसिह का इशारा पा कर सभों को चुप और शान्त होना ही पडा। धीरेन्द्रसिंह ने तजसिह की तरफ देख कर भूतनाथ का मुकदमा शुरू करने के लिए कहा और तेजसिह ने एसा ही किया। तजसिह ने भूमिका के तौर पर थोड़ा सा पिछला हाल कह कर वह गठरी खोली जिसमें पीतल की एक सन्दूकड़ी और कागज का यह मष्टा था जिसमें की चीठिया कमलिनी वगैरह के सामने पढी जा चुकी थीं। तेजसिंह उन चीठियों को पढ गये जिनका हाल हमारे पाठका को मालूम हो चुका है और इसके बाद अगली चीठी पढने का इरादा किया मगर जिन न उसी समय टोक दिया और कहा 'यदि महाराज साहब उचित समझ तो दारोगा और मुन्दर को भी जिसने अपने को मायारानी के नाम से मशहूर कर रक्खा है और जा इस समय सरकार के कब्ज में है इसी जगह बुलवा लें और चीठियों को उनक सामने पुन पढन की आज्ञा दें।यद्यपि यहा पर शेरअलीया के आने की भी आवश्यकता है परन्तु मांक मौके पर कई बातें ऐसी प्रकट होंगी जिनका हाल शरअलीखा को मालूम होने दना हम उचित नहीं समझत । यद्यपि जिन्न ने वमोके टोक दिया था और राजा वीरन्दसिह तथा हमार ऐयारों को इस बात का रज होना चाहिए था मगर ऐसा नहीं हुआ बल्कि सभों न जिन्न की बात पसन्द की और महाराज ने मायारानी को हाजिर करने का हुक्म दिया। तारासिह गए और थाड़ी ही देर में भायारानी और दारोगा को इस तरह लिए हुए आ पहुचे जिस तरह अपनी जान से हाथ घरेए और जिद्दी कैदियों को घसीटते हुए लाना पडता है। जिस समय मुन्दर वहा आई उसने घबराहट के साथ चारो तरफ देखा। सबसे ज्याद दर तक उसकी निगाह जिस पर अड़ी रही वह बलमदसिह था और बलमदसिह ने भी मायारानी को बड़ गोर सदर तक देखा जिन्न ने इस समय पुन टोका और राजा वीरेन्द्रसिंह से कहा आशा है कि हमारे हाशियार और नीतिकुशल महाराज मुन्दर ओर वलभद्रसिंह की आखों को बड़े ध्यान और गूढ विचार से देख रहे होंगे। जिन्न की इस बात ने हाशियारो और बुद्धिमानों के दिल में एक नया ही रग पैदा कर दिया और तेजसिह तथा वीरेन्द्रसिह न मुस्कुराते हुए जिन की तरफ दखा। इसी समय भैरोसिह भी आ पहुंचे जिन्हें तेजसिह कुछ समझा बुझा फर आज दो दिन हुए वाग के उस हिस्से में छाड कर आये थ जिसमें मायारानी गिरफ्तार की गई थी। भैरोसिंह के हाथ में एक छोटा सा पुर्जा था जिसे उन्होंने तेजसिह के हाथ में रख दिया तय मुस्कुराते हुए जिन्न की तरफ देखा। भैरोसिह को देख जिन्न के दात भी हसी से दिखाई द गए मगर उसन अपन को रोका और भैरासिंह की तरफ से मुंह फेर लिया। सजसिह न इस पुर्जे का यद्धा और हस कर राजा वीरेन्द्रसिह के हाथ में द दिया। राजा वीरेन्द्रसिह भी पढ कर हस पडे ओर जिन्न तथा रासिह की तरफ देखने लगे। इस समय समो की इच्छा यह जानने की हो रही थी कि भैरोसिह ने जो पुर्जा तेजसिह को दिया उसमें क्या लिखा हुआ था और राजा वीरेन्दसिह उसे पढ़ कर और जिन्न की तरफ देख कर क्यों हस पडे? और इसी तरह जिन भैरोसिह को ओर भैरासिंह जिन्न को देख कर क्यों हस? मगर इसका असल भेद किसी का मालूम न हुआ और न कोई पूछ ही सका। जिस समय जिज ने भायारानी और बलभदसिह की देखादेखी के वार में आवाज कसी उस समय मायारानी ने बलभद्रसिह की तरफ से आँखे फेर ली मगर बलभदसिह केवल ऑय बचा कर चुप न रह गया बल्कि उसने कोध में आकर जिन्न स कहा- बलभद्र - एक ता तुम बिना बुलाए यहाँ पर चल आए जहा आपुस की गुप्त यातों का मामला पश है दूसरे तुमसे जा कुछ पूछा गया उसका जवाय तुमन वेअदबी और दिठाई के साथ दिया तीसरे अब तुम बात बात पर टोका टाकी करने और आवाज कसने लगे आखिर कोई कहा तक बरदाश्त करेगा? तुम हम लोगों की बातों में बोलने वाले कौन ? जिन-(काध और जोश में आकर हमें भूतनाथ ने अपना मुख्तार बनाया है इसलिये हम इस मामले में बोलने का अधिकार रखते है हो यदि राजा साहब हमें चुप रहन की आज्ञा दें ता हम अपनी जुबान बन्द कर सकते हैं। (कुछ रुक कर) मगर मैअफसास के साथ कहता है कि काध और खुदगर्जी ने तुम्हारी बुद्धि के आईने को गदला कर दिया है और निर्लज्जता की सहायता से तुम बोलने में तज हो गयेही इतना भी नहीं साचत कि इतने बडे राहतासगढ किले के अन्दर बल्कि महल के बीच में जो देखोफ धुस आया है वह किसी तरह की ताकत भी रखता होगा या नहीं ( राजा वीरेन्दसिह और एयारों की तरफ इशारा करक) जा ऐसे ऐसे वहादुरों और बुद्धिमानों के सामने विना बुलाए आने पर भी ढिठाई के साथ वादाविवाद कर रहा है है वह किसी तरह की कुदरत भी रखता हागा या नहीं में खूब जानता हू कि नेक इमानदार निर्लोभ और लापरवाह आदी का राजा बीरन्द्रसिह एसे बहादुर और तजसिह ऐसे चालाक आदमी भी कुछ नहीं कह सकते तुम्हार एसों की ता हकीकत ही क्या जिसन बईमानी लालच दगाबाजी और यशर्मी के साथ ही साथ पाप की मारी गठरी अपन सिर पर उठा रक्ली है और उसक वाझ स घुटने तक जमीन के अन्दर गडा हुआ है। मै इस बात का भी खूब समझना हूँ कि मरी इस समय की बातचीत लक्ष्मीदवी कमालनी और लाडिली को जो इस पर्दे के अन्दर बैठी हुई सब कुछ देवकीनन्दन सभी समग्र