पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५९७

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ext T देख सुन रही है बहुत बुरी मालूम हाती होगी मगर उन्हें धीरज के साथ देखना चाहियेकि हम क्या करते है। हो मुझे अभी बहुत कुछ कहना है और में चुप नही रह सकता क्योंकि तुमने लज्जा से सिर झुका लने के बदले में बशर्मी अरितयार कर ली है और जिस तरह अबकी दफे टोका है उसी तरह आगे भी बात बात में मुझे टोकने का इरादा कर लिया है मगर यूय सभझ रक्खा फि राजा वीरेन्द्रसिह और उनके ऐयारों की बातें है इसलिये सह लूगा कि ये लोग किसी के साथ सिवाय भलाई के पुराई करन वाले नहीं है जब तक कोई कम्बख्त इन लोगों को व्यर्थ न सताय और ये नेक तथा बद को पहिचानने की भी बुद्धि रखते है मगर तुम्हारे ऐसे बेईमान और पापी की बातें नै राह नहीं सकता। भूतनाथ पर एक भारी इल्जाम लगाया गया है और भूतनाथ का में मुख्तार हूं इससे मरी इज्जत में कमी नहीं आ सकती। तुम लक्ष्मीदेरी कमलिनी और लाडिली के बाप चा कर अपने को बराबरी का दर्जा दिया चाहते हो मगर ऐसा नहीं हो सकता, अगर भूतनाथ दोपी है तो तुम भी मुँह दिखाने लायक नहीं हो समझ रक्खो और खूब समझ रक्यो कि चाहे आज हो या दो दिन के बाद हो भूतनाथ की इज्जत तुमसे बढी ही रहेगी । (भूतनाथ की तरफ देख कर) क्यों जी भूतनाथ तुम क्यों इससे दवे जाते हो? तुम्हें किस बात का डर है? भूत-(पीतल की सन्दूकड़ी की तरफ इशारा करके) वस कोवल इसो का डर है और इस कागज के मुद्दे को तो में कुछ भी नहीं समझता इसकी इज्जत तो मेरे सामने इतनी ही हो सकती है जितनी आज के दिन मायारानी की उस चीठी की हातोपतो वह अपने हाथ से लिख कर राजा गोपालसिह के सामने इस नीयत से रखती कि उसका कसूर माफ किया जाय और लक्ष्मीदेवी का ख्याल कुछ वह पुन राजा गोपालसिह की रानी बनाई जिर-पी सन्दह ऐसा ही है और इसी सन्दूकडी के सबसे बलभदसिह तुम्हारे सामने दिठाई कर रहा है। अच्छा इस सन्दूकडी का जादू दूर करने के लिये इसो के पास में एक लिलिरमी कलमदान ररो देता हू जिसमें बलमदासह पुन तुम्हार सामने बोलने का साहस न कर सके और तुम्हारा मुकदमा बिना किसी राकटोक के सुना जाकर शीघ्र समाप्त हो जाय। इतना कह कर जिन ने अपने कपड़ो के अन्दर से एक सोने का कलमदान निकाल कर उस सन्दूकड़ी के बगल में ररा दिया जो राजा वीरेन्दसिह के सामने रक्खी हुई और मृतनाथ के कागजात की गठरी में से निकाली गई थीं अथवा जिसका हाल हम्परे पाठक पहिले के किसी बयान में पढ़ चुके है। यह कलमदान जिसका ताला बन्द था बहुत ही अनूठा और सुन्दर बना हुआ था। इसके ऊपर की तरफ भीनाकारी के काम की तीन तस्वीर बनी हुई थी और उनकी चमक इतनी तेज और साफ थी कि काई देखने वाला इन्हें पुरानी नहीं कह सकता था। इस कलमदान को देखते ही भूतनाथ युशी के मारे उछल पड़ा और जिन की तरफ दय के तया हाथ जाड क योला माफ करना, मैने आपकी कुदरत के बारे में सक किया था मैं नहीं जानता था कि आपक पास एक एसीअनूठी चीज है। यद्यपि भैने अभी तक आपको नहीं पहिचास तथापि कह सकता है कि आप साधारण मनुष्य नहीं है। आप यह न समझे कि यह कलमदान मुझसे दूर है और मैं इसे अच्छी तरह से देख नहीं सकता। नहीं नहीं ऐसा नहीं है इसकी एक झलक ने ही भरे दिल के अन्दर इसकी पूरी पूरी तस्वीर खैच दी है (आसमान की तरफ हाथ उठा के) ईश्वर तू धन्य भूतनाय के विपरीत बलभदसिह पर उस कलमदान का उलटा ही असर पड़ा। वह उस देखते ही चिल्ला उठ। ओर उठ कर मैदान को तरफ भागा मगर जिन्न ने फुर्ती के साथ लपक कर उसे पकड़ लिया और धीरेन्द्रसिह के सामने लाकर कहा भलगनसी के साथ यहा चुपचाप बैडो तुम भाग कर अपनी जान किसी तरह नहीं बचा सकत । फेवल भूलनाथ और बलभद्रसिंह ही पर नहीं बल्कि तिलिस्मी दारोगा पर भी उस कमलदान का बहुत युरा असर पड़ा ओर डर के मारे वह इस तरह कापने लगा जैस जडैया बुखार चढ आया हो। वीरन्दसिह तजरिह और चाको के ऐयारों को भी बड़ा ही आरपय हुआ और वे लोग ताज्जुब भरी निगाहों स उस कलमदान की तरफ देरा लग। इतन में चिक के अन्दर से आवाज आई इस कलमदान को भी जरा देखा महती हू' यह आवाज कमलिनी की थी जिसे सुनकर राजा धीरन्दसिह न जिन की तरफ देखा और जिल ने जोश के साथ कहा हा हा आप बेशम इस कालभदान को पर्दे यो अदर भेजमा देक्योकि लक्ष्मीदेवी और कमलिगी को इस कलमदा का दखना आवश्य। (रजसिस) आप स्वयम इसे लेकर चिक के अन्दर जाइये। तजसि क्लगदात को लेकर उठचडे हुए और चिक के अन्दर जा कर कलमदान कमलिमीकाहायम रख दिया। 4 किसी तरह की रोती रहीं यो और पूरा अधकार था इसलिए उन सभों को कलमदान अच्छी तरह दयने लिए दूसर कमरे में जाना पा जादाधारगार को रोशनी से दिन की तरह उजाला हो रहा था। सिवाय ललीदेवा कर किसी औरत ने कलमदान का नही पहिचाना और 1 किसा पर उसका असर ही पड़ा द 7 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२