पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६

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अस्वाभाविकता न थी। अपने श्वसुर से न पटने के कारण इनके पिता मुजफ्फरपुर छोड़कर काशी आ गए । आप यहाँ जरी, चाँदी के हौदे एवं राजदरबार का सामान बनवा कर व्यापार करते । इससे आमदनी के साथ राजाओं, जमींदारों और सामंतों का गहरा संपर्क भी था । देवकीनंदन खत्री की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू-फारसी में हुई थी। बाद में इन्होंने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया। इन्हें पहाड़ों, जंगलों आदि में घूमने का बड़ा शौक था। १५-२० दिनों तक लगातार घूमते । दिन-रात घूमते । चाँदनी रातों में जंगलों में घूमते । दिल्ली, कलकत्ता, मथुरा, हरिद्वार आदि भी घूम आए थे। हरिद्वार से विशेष प्रेम था । इसलिये साल में एक बार वहाँ अवश्य जाते थे । ध्यान रखिए, हरिद्वार हिमालय का द्वार है । रहस्यों से भरा हिमालय । तांत्रिकों, योगियों, साधु-संन्यासियों का हिमालय । शिव का निवास और नदियों का उद्गम एवं विभिन्न प्राकृत संपदा का संगम हिमालय । ऐसे ही प्रतिवर्ष नैनीताल भी जाते। उनमें एक तरफ सामंती शान-शौकत थी तो दूसरी ओर बनारसी मौज-मस्ती और फैक्कड़पन थे। भांग का शौक था ! सामंती अंदाज में आम, कसेरू, शहतूत, फालसा या लीची आदि की भाँग बनती। देवकीनंदन खत्री की इस छोटी सी जीवनी से उनके संस्कारों का पता लगता है । उन्होंने सामंती जीवन की अच्छाइयों, बुराइयों और स्थितियों को अत्यंत नजदीक से देखा था। उसे भोगा भी था। इसीलिये सामंती समाज को समझने में उनके उपन्यासों से काफी मदद मिलती है। उनके उपन्यासों के मुख्य विषय राजा, रानी, राजकुमार, राजकुमारी, सामंत, सामंत संतानें और उनके सैनिक आदि हैं । दास-दासियाँ जो सामंती जीवन के - महत्वपूर्ण अंग है इन उपन्यासों में लुप्त प्राय हैं । दास-दासियों का स्थान ऐयारों को प्राप्त है। भोग की अपेक्षा संघर्ष की प्रधानता है। कई पीढ़ी संघर्ष में लगी है। चंद्रकान्ता के पति वीरेन्द्रसिंह, उनके पिता सुरेन्द्रसिंह, पुत्र इन्द्रजीतसिंह और आनंदसिंह यह तीन पीढ़ी संघर्षशील है। ऐसी ही स्थिति भूतनाथ की है। अंग्रेजी राज ने भारत में एक अजीब तिलस्म तैयार किया था । उसने आधुनिक उद्योगों को पूंजीवाद आरम्भ किया। एक नवीन मध्यवर्ग की स्थापना की । पुराने मूल्यों, मान्यताओं के स्थान पर नये मूल्यों और मान्यताओं को बढ़ावा दिया। एक नया वर्ग तैयार हुआ । अंग्रेजी पढ़ा, अंग्रेज भक्त एवं अंग्रेजी संस्थाओं से सम्बद्ध यह वर्ग अर्ध अंग्रेज था। किन्तु पुराने सामंतों को बिल्कुल समाप्त नहीं कर दिया । उनकी पुरानी हैसियत और प्रतिष्ठा कम अवश्य कर दी। किंतु उन्हें समाज के साधारण वर्ग से अलग रखा। नये मध्य वर्ग में भी शामिल नहीं होने दिया पुराने सामंतों की मनःस्थिति माध्यमिक थी। ये शासक भी थे, शासितभी। किंतु इनकी आर्थिक स्थिति बदलती रहती थी। इनके जीवन में बड़ा उतार-चढ़ाव था। ये अंग्रेजों के भक्त भी थे, डरेभी थे। डर कई ओर से था । अंग्रेजों का, नए मध्य वर्ग का एवं साधारण जन का । ये साधारण जन के शासक अवश्य थे। किंतु पुराना आत्मविश्वास समाप्त हो चुका था। आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक दुनिया में भी इन की नींव हिल रही थी । राज्यसत्ता मूलतःविदेशियों के हाथ में थी। इन्हें अंग्रेज अफसरों की हर प्रकार की सेवा करनी पड़ती थी। एक तरफ थी विलासिता की पुरानी परंपरा तो दूसरी ओर नयी औद्योगिक सभ्यता उसे इनकार कर रही थी। पूरी सामंती व्यवस्था लड़खड़ा गयी थी । यह भी सच है कि १८५७ में अंग्रेजों के विरुद्ध मुख्यतः सामंत ही लड़े। इसलिये कि अंग्रेजों ने सत्ता सामंतों से छीनी थी। उस (vii)