पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०

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CY तो मैं वापस चला जाऊगा। जस-(ताज्जुब से) महारानी कुसुमकुमारी का सन्देशा लाया है ठीक है मालूम होता है रनबीर चल बसा, तभी राह पर आई है अच्छा उसे हाजिर करो। कालिन्दी खेमे के अन्दर पहुचाई गई उसे देखते ही जसवन्त उठ बैठा और उसने जल्दी में पहिली वात यही पूछी, "कहो रनबीरसिह की क्या खबर है? महारानी का अब क्या इरादा है ?" कालिन्दी-रनबीरसिह अभी तक बेहोश पडे है, मगर हकीमों के कहने से मालूम होता है कि दो एक दिन में होश में आ जायगे, मेरे हाथ महारानी ने कोई सन्देशा नहीं भेजा है, मैं उनसे लडकर यहाँ आया हू, आप मेरी खातिर करेंगे तो दो ही दिन में यह किला फतह करा दूगा. इस तरह आप साल भर में भी इसे फतह नहीं कर सकते। महारानी के यहॉ मेरा उतना ही अख्तियार है जितना बालेसिह के यहाँ आपका । इतना कह अपने मुह से नकाब हटा चारपाई के पास जा खडी हुई. उसकी बातों का जवाब जसवन्त क्या देगा इसका कुछ भी इन्तजार न किया। कालिन्दी की बातों ने जसवन्त को उलझन में डाल दिया मगर जब मुह खोल कर पास जा खडी हुई तो उसकी हालत बिल्कुल बदल गई और उसके दिमाग में किसी दूसरे ही ख्याल ने डेरा जमाया। कम्बख्त कालिन्दी गजब की खूबसूरत थी, उसको देखते ही अच्छे अच्छे ईमानदारों के ईमान में फर्क पड जाता था, बेईमान जसवन्त की क्या हकीकत थी कि उसके लासानी हुस्न को देखें और चुप रह जाय । फौरन उठ खडा हुआ, हाथ पकड के अपने पास चारपाई पर बैठा लिया, और शमादान की रोशनी में जो इस वक्त खेमे के अन्दर जल रहा था उसकी सूरत देखने लगा। कालिन्दी के मन की भई, ईश्वर ने बेईमानों की अच्छी जोडी मिलाई दोनों को एक दूसरे के देखने से सन्तोष नहीं होता था, मगर इसी समय किसी ने खेमे के दर्वाजे पर ताली बजाई क्योंकि जब दो आदमी खेमे के अन्दर बैठे वातें कर रहे हों तो ऐसे वक्त में किसी सिपाही या गैर की बिना इत्तला अन्दर जाने की मजाल न थी। कालिन्दी उसके पास पलग पर बैठी हुई थी ऐसे मौके पर वह कब किसी दूसरे को अन्दर आने देता खुद उठकर वाहर गया और देखा कि कई सिपाही एक आदमी की मुश्के वाँधे खडे है। जसवन्त-यह कौन है? एक सिपाही-यह महारानी का जासूस है कहीं जा रहा था कि हमलोगों ने गिरफ्तार कर लिया । जसवन्त--किस वक्त और कहाँ पकडा गया? एक सिपाही-यहॉ से पॉच कोस की दूरी पर कुछ दिन रहते ही यह गिरफ्तार हुआ था यहाँ आते आते बहुत रात हो गई। हुजूर आराम करने चले गए थे इसलिये इत्तिला न कर सके, अब सवेरा हाने पर हाजिर किया है। जसवन्त-इसकी तलाशी ली गई या नहीं? एक सिपाही-जी हाँ तलाशी ली गई थी, एक चिट्ठी इसके पास से निकली और कुछ नहीं । जसवन्त-वह चिट्ठी कहाँ है, लाओ! सिपाही ने वह चिट्ठी जसवन्त के हाथ मे दी जिसे पढ कर वह बहुत ही खुश हुआ। पाठक समझ ही गए होंगे कि यह चिट्ठी वही थी जो दीवान साहब ने बीरसेन के पास भेजी थी और जिसमें लिखा था कि--'शनीचर के दिन मय फौज के सुरग की राह तुम किले के अन्दर चले आना, दर्वाजा खुला रहेगा।' 'वह सुरग कहा पर है इसका हाल वह औस्त (कालिन्दी) जो अभी आई हैजानती होगी और वह जरूर मुझसे कह देगी अब इस किले का फतह करना कोई बड़ी बात नहीं है । यह सोचता हुआ जसवन्त फिर खेमे के अन्दर चला गया। - पन्द्रहवां बयान महारानी कुसुमकुमारी के लिये आज का दिन बड़ी खुशी का है क्योंकि रनवीरसिह की तबीयत आज कुछ अच्छी है। वह महारानी के कोमल हाथों की मदद से उठकर तकिए के सहारे बैठे है और धीरे धीरे बातें कर रहे है। हकीमों ने उम्मीद दिलाई कि दो ही चार दिन में इनका जख्म भर जायगा और ये चलने फिरने लायक हो जायेंगे। घण्टे भर से ज्यादे दिन न चढा होगा। रनबीरसिह और कुसुमकुमारी बैठे बातें कर रहे थे कि एक लौडी बदहवास दौडी हुई आई और बोली- लौडी-कालिन्दी के खास कमरे में मालती की लाश पड़ी हुई है और कालिन्दी का कहीं पता नहीं है। देवकीनन्दन खत्री समग्र १०६८