पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६००

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इन्द-मुझ इस बात का विश्वास नहीं हो सकता। आपकी आवाज वैसी नहीं है जैसी वह आवाज थी। वुडढा--जो मैं कहता हूँ उसे आप विश्वास करें या यह वतावें कि आपको मेरी बात का विश्वास क्योंकर होगा? क्या मैं फिर उसी तरह से बोलूँ ? इन्द-हॉ यदि ऐसा हो ता हम लोग आपकी बात मान सकते हैं। बुडढा--(उसी तरह से और वे ही शब्द अर्थात्- अच्छा-अच्छा तू मेरा सर काट ले-इत्यादी बोल कर) देखिए वे ही शब्द और उसी ढग की आवाज है या नहीं? आनन्द- (ताज्जुब से) बेशक वही शब्द और ठीक वैसी ही आवाज है। इन्द-मगर इस ढग से बोलने की आपको क्या आवश्यकता थी,? बुडढा-मैं इस तिलिस्म में कल से चारों तरफ घूम घूम कर आपको खोज रहा हूँ। सैकड़ों आवाजें दी और बहुत उद्योग किया मगर आप लोगों से मुलाकात न हुई तब मैने सोचा कदाचित आप लोगों ने यह सोच लिया हो कि इस तिलिस्म के कारखाने में किसी की आवाज का उत्तर देना उचित नहीं है और इसी से आप मेरी आवाज पर ध्यान नहीं देते आखिर मैने यह तर्कीय निकाली और इस ढग से बाला जिसमें सुनने के साथ ही आप बेताब हो जॉय और स्वय ढूँढ कर मुझसे मिलें और आखिर जो कुछ मैने सोचा था वही हुआ। इन्दआप कौन है और मुझे क्यों बुला रहे थे? आनन्द-और इस तिलिस्म के अन्दर आप कैसे आए? बुडढा--में एक मामूली आदमी हूँ और आपका गुलाम हूँ, इसी तिलिस्म में रहता हूँ और यही तिलिस्म मेरा घर है। आप लोग इस तिलिस्म में आए हैं तो मेरे घर में आए है अतएव आप लोगों की मेहमानी और खातिरदारी करना मेरा धर्म है इसीलिए मैं आप लोगों को ढूँढ रहा था। इन्द-अगर आप इसी तिलिस्म में रहते है और यह तिलिस्म आपका घर है तो हम लोगों को आप दोस्ती की निगाह से नहीं देख सकते क्योंकि हम लोग आपका घर अर्थात यह तिलिस्म तोड़ने के लिए यहाँ आए है और कोई आदमी किसी ऐसे की खातिर नहीं कर सकता जो उसका मकान तोडने आया हो तब हम क्यों कर विश्वास कर सकते है कि आप हमें अच्छी निगाह से देखते होंगे या हमारे साथ दगा या फरेब न करेंगे। बुद्धदा-आपका ख्याल बहुत ठीक है ऐसे समय पर इन सब बातों को सोचना और विचार करना बुद्धिमानी का काम हे परन्तु इस बात का आप दोनों भाइयों को विश्वास करना ही होगा कि मैं आपका दोस्त हभिला सोचिए तो सही कि मैं दुश्मना करक अपको क्या बिगाड सकता हू हाँ आपकी मेहरबानी से अवश्य फायदा उठा सकता है। इन्द्र-हमारी मेहरबानी से आपका क्या फायदा होगा और आप इस तिलिस्म के अन्दर हमारी क्या खातिर करेंगे? इसके अतिरिक्त यह भी बतलाइये कि क्या सबूत पाकर हम लोग आप को अपना दोस्त समझ लेंगे और आपकी बात पर विश्वास कर लेगे? बुडढा-आपकी मेहरबानी से मुझे बहुत कुछ फायदा हो सकता है। यदि आप चाहेंगे तो मेरे घर को अर्थात इस तिलिस्म का बिल्कुल चौपट न करेंगे। मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि आप इस तिलिस्म को न तोडे और इससे फायदा न उठाए बल्कि मै यह कहता हूँ कि इस तिलिस्म को उतना ही तोडिए जितने से आपको गहरा फायदा पहुंचे और कम फायदे के लिए व्यर्थ उन मजेदार चीजों का चौपट न कीजिए जिनके बनाने में बड़े बड़े बुद्धिमानों ने वर्षो मेहनत की है और जिसका तमाशा देखकर बड़े बड़े होशियारों की अक्ल भी चकरासकती है। अगर इसका थोड़ा सा हिस्सा आप छाड देग तो मेरा खेल तमाशा बना रहेगा और इसके साथ ही साथ आपके दोस्त गोपालसिह की इज्जत और नामबरी में भी फर्क न पडेगा और वह तिलिस्म के राजा कहलाने लायक बने रहेंगे। मैं इस तिलिस्म में आपकी खातिरदारी अच्छी तरह कर सकता हूं तथा ऐसे ऐस तमाशे दिखा सकता हूँ जो आप तिलिस्म तोड़ने की ताकत रखने पर भी बिना मेरी मदद के नहीं देख सकत हॉ उसका आनन्द लिए बिना उसको चौपट अवश्य कर सकते हैं। बाकी रही यह बात कि आप मुझ पर भरोसा किस तरह कर सकते है इसका जवाब देना अवश्य ही जरा कठिन है। इन्द-(कुछ सोच कर ) तुमसे और राजा गोपालसिह से जान पहिचान है ? बुडढा-अच्छी तरह जान पहिचान है बल्कि हम दोनों में मित्रता है। इन्द-(सिर हिला कर ) यह बात तो मेरे जी में नहीं बैठती। बुडदा-सा क्यो? देवकीनन्दन खत्री समग्र ५९२