पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०१

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इन्द्र-इसलिए कि एक तो यह तिलिस्म तुम्हारा घर है कहो हाँ। बुडढा-जी हॉ। इन्द्र-जय यह तिलिस्म तुम्हारा घर है तो यहाँ का एकएक कोना तुम्हारा देखा हुआ होगा बल्कि आश्चर्य नहीं कि राजा गोपालसिंह की बनिस्बत इस तिलिस्म का हाल तुमको ज्यादा मालूम हो। बुडदा-जी हॉ वेशक ऐसा ही है । इन्द्र-(मुस्कुरा कर ) तिस पर राजा गोपालसिह से और तुमसे मित्रता है। बुडढा-अवश्य इन्द-तो तुमने इतने दिनों तक राजा गोपालसिह को मायारानी के कैदखाने में क्यों सड़ने दिया? इसके जवाब में तुम यह नहीं कह सकते कि मुझे गोपालसिंह के कैद होने का हाल मालूम न था या मैं उस सीखचेवाली कोठरी तक नहीं जा सकता था जिसमें वे कैद थे। इन्द्रजीतसिंह के इस सवाल ने बुडढे को लाजवाब कर दिया और वह सिर नीचा करके कुछ सोचने लगा। कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने समझ लिया कि यह झूठा है और हम लोगों को धोखा दिया चाहता है। बहुत थोडी देर तक सोचने के बाद बुडदे ने सिर उठाया और मुस्कुरा कर कहा वास्तव में आप बडे होशियार है बातों की उलझन में मुलावा देकर मेरा हाल जानना चाहते हैं मगर ऐसा नहीं हो सकता हॉ जब आप तिलिस्म को तोडे लेंगे तो मेरा परिचय भी आपको मिल जायगा, लेकिन यह बात झूठी नहीं हो सकती कि राजा गोपालसिह मेरे दोस्त है और वह तिलिस्म मेरा घर है। इन्द-आप स्वय अपने मुंह से झूठे बन रहे हैं इसमें मेरा क्या कसूर है। यदि गोपालसिह आपके दोस्त हैं तो आप मेरी बात का पूरा पूरा जवाब देकर मेरा दिल क्यों नहीं भर देते है? चुडढा----नहीं आपकी इस बात का जवाब में नहीं दे सकता कि गोपालसिंह को मैने मायारानी के कैदखाने से क्यों नहीं छुडाया। इन्द-ता फिर मेरा दिल कैसे भरेगा और में कैसे आप पर विश्वास करूँगा? बुडढा-इसके लिए मैं दूसरा उपाय कर सकता हूँ। इन्द-चाहे कोई उपाय कीजिए परन्तु इस बात का निश्चय अवश्य होना चाहिए कि यह तिलिस्म आपका घर है और गोपालसिह आपके मित्र है। बुडढा-आपको तो केवल इसी बात का विश्वास होना चाहिए कि मैं आपका दुश्मन नहीं हूँ। आनन्द-नहीं नहीं हम लोम और किसी बात का सबूत नहीं चाहते केवल वह दो बात आप साबित कर दें जो भाईजी चाहते हैं। बुद्धा-तो इस समय मेरा यहाँ आना व्यर्थ हुआ (चगेर की तरफ इशारा करके ) देखिए आप लोगों के खाने के लिए मै तरह तरह की चीजें लेता आया था मगर अब लौटा ले जाना पड़ा क्योंकि जब आपको मुझ पर विश्वास ही नहीं है तो इन चीजों को कव स्वीकार करेंगे। इन्द्र-वेशक में इन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता जब तककि मुझे आपकी बातों का विश्वास न हो जाय ! आनन्द-(मुस्कुरा कर) क्या आपके लड़के वाले भी इसी तिलिस्म में रहते हैं? ये सब चीजें आपके घर की बनी हुई है या बाजार से लाए है ? मुड्दा जी मेरे लड़के वाले नहीं हैं न दुनियादार ही हूँ यहाँ तक कि कोई नौकर भी मेरे पास नहीं है ये चीजें तो बाजार से खरीद लाया हूँ। आनन्द--तो इससे यह भी जाना जाता है कि आप दिन रात इस तिलिस्म में नहीं रहते जब कभी खेल तमाशा देखने की इच्छा होती होगी तो चले आते होगे। इन्द्र-खैर जो हो इन सबबातों से कोई मतलब नहीं हमारे सामने जब ये अपने सच्चे होने का सबूत लाकर रक्खेंगे तब हम इनमे बातें करेंगे और इनके साथ चल कर इनका घर भी देखेंगे। इस बाते का जवाब उस बुडदे ने कुछ न दिया और सिर झुकाये वहाँ से चला गया। इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह भी यह देखने के लिए कि वह कहा जाता है और क्या करता है उसके पीछे चले। बुड्ढे ने घूम कर इन दोनों भाइयों को अपने पीछे पीछे आते देखा मगर इस बात की उसने कुछ परवाह न किया और बराबर चलता गया । हम पहिले के किसी बयान में लिख आये है कि इस बाग में पश्चिम की दीवार के पास एक कूआ था। वह बुढा उसी कुएँ की तरफ चला गया और जब उसके पास पहुंचा तो विना कुछ रुके एक दम उसके अन्दर कूद पडा। इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह भी उस कुए के पास पहुंच और झांककर देखने लगे मगर सिवाय अन्धकार के और कुछ भी दिखाई न दिया। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३ ५९३