पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६ दे सके । (कुछ सोच कर और हँस कर) मगर कुमार तुम भी बड़े बुद्धिमान और मसखरे हो ! कुमार-कहो अब में तुम्हारी दाटी नोच लूँ ? आनन्द-(हस कर और ताली बजा कर ) या मैं नोच लूं? बुडदा--(हॅसते हुए ) अब आप लोग तकलीफ न कीजिए मैं स्वयम इत्त दाढी को नोच कर अलग फेंक दता हूँ । इतना कह उस बुडढे ने अपने चेहरे से दाढ़ी अलग कर दी और इन्द्रजीतसिंह के गले से लिपट गया। पाठक यह बुड्ढा वास्तव में राजा गोपालसिंह थे जो चाहते थे कि सूरत बदल कर इस तिलिस्म में कुँअर इन्दजीतसिंह और आनन्दसिंह की मदद करें, मगर कुमार की चालाकियों ने उनकी हिकमत लडने न दी और लाचार होकर उन्हें प्रकट होना ही पड़ा। कुँअर इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह दोनों भाई राजागोपालसिह के गले मिले और उनका हाथ पकड़े हुए नहर के किनार गये जहाँ पत्थर की एक चट्टान पर बैठ कार तीनों आदमी बातचीत करने लगे। तीसरा बयान अब हम रोहतासगढ़ का हाल लिखते है। जिस समय बाहर यह खबर आई कि लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठीक हो गई और वे सब पर्दे के पास आकर बैठ गई उस समय राजा वीरेन्द्रसिह ने तेजसिह की तरफ देखा और कहा, 'लक्ष्मीदेवी से पूछना चाहिए कि उसकी तबीयत यह कलमदान देखने के साथ की क्यों खराब हो गई ? इसके पहिले पि तेजसिंह राजा वीरेन्द्रसिह की बात का जवाब दें या उठने का इरादा करें जिन्न ने कहा आश्चर्य है कि आप इसके लिये जल्दी करते है। जिन्न की बात सुन राजा बीरेन्द्रसिह मुस्कुरा करचुप हो रहे और भूतनाथ का कागज पदने के लिए तेजसिह को इशारा किया! आज भूतनाथ का मुकदमा फैसला होने वाला है इसलिए भूतनाथ और कमला का रज और तरदुद तो वाजिब ही है मगर इस समय भूतनाथ से सौगुनी बुरी हालत बलभदसिह की हो रही है। चाहे सभों का ध्यान उस कागज के मुद्वे की तरफ ही लगा हो जिसे अब तेजसिंह पढा चाहते है मगर बलभद्रसिह का ख्याल किसी दूसरी तरफ है। उसके चेहरे पर बदहवासी और परेशानी छाई है और वह छिपी निगाहों से चारों तरफ इस तरह देख रहा है जैसे कोई मुजरिम निकल भागने के लिए रास्ता ढूंढता हो मगर भैरोसिह को मुस्तैदी के साथ अपने ऊपर तैनात पाकर सिर नीचा कर लेता है। हम यह लिख चुके है कि तेजसिंह पहिले उन चीठीयों को पढ गये जिनका हाल हमारे पाठका को मालूम हो चुका अब तेजसिह ने उसके आग वाला पत्र पढना आरम्भ किया जिसमें यह लिखा था - 'मेरे प्यारे दोस्त आज मै बलभद्रसिह की जान ले ही चुका था मगर दारोगा साहब ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया। मैने सोचा था कि बलभदसिंह केखतम हो जाने पर लक्ष्मीदेवी की शादी रुक जायगी और उसके बदले में मुन्दर को भरती कर देने का अच्छा मौका मिलेगा मगर दारोगा साहब की यह राय न ठहरी। उन्होंने कहा कि गापालसिइको भी लक्ष्मीदेवी के साथ शादी करने की जिद्द हो गयी है ऐसी अवस्था में यदि वलभद्रसिह को तुम मार डालोगे तो राजा गोपालसिह दूसरी जगह शादी करने के बदले में बरस दिन अटक जाना मुनासिब समझेंगे और शादी का दिन टल जाना अच्छा नहीं है इससे यही उचित होगा कि वलभद्रसिह को कुछ न कहा जाय लक्ष्मीदेवी की माँ को मरे ग्यारह महीने हो ही चुके हैं महीना मर और बीत जाने दो जो कुछ करना होगा शादी वाले दिन किया जायगा। शादी वाले दिन जो कुछ किया जायगा उसका बन्दोबस्त भी हा चुका है। उस दिन मौके पर लक्ष्मीदेवी गायब कर दी जायेगी और उसकी जगह मुन्दर बैठा दी जायेगी और उसके कुछ देर पहिले ही बलभदसिंह ऐसी जगह पहुंचा दिया जायगा जहॉ से पुन लौट आने की आशा नहीं है यस फिर किसी तरह का खटका न रहेगा। यह सच तो हुआ मगर आपन अभीतक फुटकर सर्च के लिए रुपये न भेजे । जिस तरह हो सक उस तरह बन्दोवस्त कीजिए और रूपये भेजिए नहीं तो सब काम चौपट हो जायेगा आर्ग आपको अख्तियार है। वही मूतनाथ वीरेन्द-(भूतनाथ की तरफ देख के ) क्यों भूतनाथ यह चीठी तुम्हारे हाथ की लिखी हुई है। भूत-(हाथ जोड़ कर ) जी हाँ महाराज यह कागज मेरे हाथ का लिखा हुआ है। पीरेन्द-तुमने यह पत्र हेलासिंह के पास भेजा था? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३