पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०५

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तुम यह तो बताओ कि जब वह चीठी तुम्हारे ही हाथ की लिखी हुई है तो तुम इसे हेलासिह के पास भेजने से क्यों इन्कार करते हो। भूत-इसका हाल भी उसी समय मालूम हो जायगा जब मैं असली बलभद्र को छुडा कर ले आऊँगा। जिन्न-आप इस समय इस मुकद्दमें को रोक ही दीजिए जल्दी न कीजिये क्योंकि इसमें अभी तरह तरह के गुल खिलने वाले हैं। बलभद्र-नहीं नहीं भूतनाथ को छोड़ना उचित न होगा यह बड़ा भारी वेइमान चालिया धूर्त और बदमाश है। यदि इस समय छूट कर चल देगा फिर कदापि न आवंगा। तेज (घुड़क कर बलभद से ) बस चुप रहो तुमसे इस बारे में राय हो नहीं ली जाती। मलमद-( खड़े हो कर ) तो फिर में जाता हूँ जिस जगह ऐसा अन्याय हो वहाँ ठहरना भले आदमियों का काम नहीं। बलमद्रसिह उठकर खड़ा हुआ ही था कि भैरोसिह ने उसकी कलाई पकड़ ली और कहा, 'उहरिये आप भले आदमी है आपको क्रोधन करना चाहियेअगर ऐसा कीजियेगा तो मलमनसी में बट्टा लग जायगा। यदि आपको हम लागों की सोहबत अच्छी मालूम नहीं पड़ती ता आप मायारानी और दारोगा की सोहबत में रक्खे जायेंग जिसमें आप खुश रहे हम लोग वही करेगें। भैरोसिह न बलभद्रसिह की कलाई पकड़ के कोई नस ऐसी दवाई कि वह येताब हो गया उसे ऐसा मालूम हुआ मानों उसके तमाम बदन की ताकत किसी ने खैच ली हो और वह बिना कुछ बोले इस तरह बैठ गया जैसे कोई गिर पड़ता है। उसकी यह अवस्था देख सभों ने मुस्कुरा दिया। जिन्न-(चीरन्दसिंह से ) अब मैं आपसे और तेजसिहजी से दो चार बाते एकान्त में कहा चाहता हूँ। वीरेन्द-हमारी भी यही इच्छा है। - राजा वीरेन्दसिह तेजसिह और जिन्न आधे घण्टे तक एकान्त में बैठ कर बातचीत करते रहे। सभी को जिन्न के विषय में जितना आश्चर्य था उतना ही इस बात का निश्चय भी हो गया था कि जिन्न का हाल राजा वीरेन्द्रसिह तेजसिह और भैरोसिह का मालूम हो गया है परन्तु वह किसी से न कहेंगे और न कोई उनसे पूछ सकेगा। आधे घण्टे के बाद तीनों आदमी कमरे के बाहर निकल कर अपने-अपने ठिकाने आ पहुंचे और तेजसिंह ने देवीसिह की तरफ देख के कहा भूतनाथ को छोड देने की आज्ञा हुई है। तुम भूतनाथ और जिन्न के साथ जाओ और हिफाजत के साथ पहाड के नीच पहुँचा कर लौट आओ। इतना सुनत ही दवीसिंह ने मूतनाथ की हथकड़ी बेडी खोल दी और उसको तथा जिन्न को साथ लिये वहॉ स याहर चले गये। इसके बाद तेजसिह पर्दे के अन्दर गय और लक्ष्मीदेवी कमलिनी तथा लाडिली को कुछ समझा बुझा कर बाहर निकल आए। बलभद्रसिह को खातिरदारी और चौकसी के साथ हिफाजत में रखने के लिए भैरोसिह के हवाले किया गया और याकी कैदियों को कैदखाने में पहुँचाने की आज्ञा देकर राजा वीरेन्द्रसिह बाहर चले आए तथा अदालत बरखास्त कर दी गई। चौथा बयान जब जिन्न और मूतनाथको पहाड के नीचे पहुंचा कर देवीसिह चले गये तो दोनों आपुस में नीचे लिखी याते करते हुए पूरब की तरफ रवाना हुए , मूत-नि सदेह आपने मुझ पर बड़ी कृपा की यदि आज आप मरे सहायक न होते तो मे तबाह हो चुका था। जिन्न-सो सब ता ठीक है मगर देखो आज हमने तुमको अपनी जमानत पर इसलिए छुड़ा दिया है कि तुम जिस तरह होअसली बलभद्रसिह की खोज निकाला और उन्हें अपने साथ लेकर राजा वीरेन्द्रसिह के पास हाजिर होजाओ लकिन ऐसा न करना कि बलन्द्रसिंह का पता लगाने के बदले तुम स्वय अन्तर्ध्यान हो जाओ और हमको राजा वीरेन्दसिह के आगे झूठा करो। भूत-नहीं मही ऐसा कदापि नहीं होगा। यदि मुझे नेकनामी के साथ राजा वीरेन्दसिह कर ऐयार बनने का शौक न होता तो में इन बखेड़ो मे क्यों पड़ता ? बिना कुछ पाये इतना काम क्यों करता ? रुपये की मुझे कुछ परवाह न थी मैं किसी दूसरे देश में चला जाता और खुशी के साथ जिन्दगी बिताता। मगर नहीं मुझे राजा वीरेन्द्रसिह के साथ रहने का चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३