पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जिस लिए हुआ उसका हाल जरा ठहर कर कहूगा इत्यादि कहता हुआ अपनी स्त्री के पास चला गया जो बहुत दिनों से उसे देखे बिना येताब हो रही थी। हँसी खुशी से मिलने के बाद दोनों में यों बातचीत होने लगी- स्त्री-तुम बहुत दुवले और उदास मालूम पडते हो । भूत-हाँ इधर कई दिन मुसीवत ही में कटे है। स्त्री-(चौक कर ) सो क्या कुशल तो है? भूत-कुशल क्या जान बच गई यही गनीमत है। स्त्री-सो क्या ? तुम्हारा भेद खुल गया? भूत-(ऊँची सॉस लेकर ) हाँ कुछ खुल ही गया। स्त्री-( हाथ मल कर ) हाय हाय यह तो बड़ा ही गजब हुआ भूत-येशक गजब हो गया। स्त्री-फिर तुम यच कर कैसे निकल आये ? भूत-ईश्वर ने एक सहायक भेज दिया जिसने अपनी जमानत पर महीने भर के लिए मुझे छुड़ा दिया । स्त्री-तो क्या महीने भर के बाद तुम्हें फिर हाजिर होना पडेगा? भूत-हाँ। स्त्री-किसके आगे? भूत-राजा बीरेन्दसिंह के आगे। स्त्री-राजा वीरेद्रसिह से क्या सराफार ? तुम कुछ विगाडा नहीं था। भूत-इतनी ही ता कुशल है कि वह दूसरी जगह जाने के बदले सीधा लक्ष्मीदेवी के पास चला गया। स्त्री-(चौक कर ) है क्या लक्ष्मीदेवी जीती है? भूत-हा जता है। मुझे इस बात की खबर है कुछ भी न थी कि कमलिनी के साथ जो तारा रहती है यह वास्तव में लक्ष्मीदेवी है और बालासिह को यह बात मालूम हो गई थी इसलिए वह सीधा लक्ष्मीदेवी के पास चला गया। यदि मुझे पहिले लक्ष्मीदेवी की खबर लग गई होती ता आज में राजा वीरेन्द्रसिह के आप अपनी तारीफ सुनता होता । स्त्री-तुम तो कहते थे कि बालासिह मर गया। भूत-हॉ में ऐसा जानना या। स्त्री-उसी ने तो तुम्हारी सन्दूकडी चुराई थी। भूत-हॉ जब उसन सन्दूकडी चुराई थी तभी में अधमुआ हो चुका था मगर यह सुनकर कि वह मर गया में निश्चिन्त भी हो गया था परन्तु जिस समय वह यकायक मेरे सामने आ खड़ा हुआ मुझे बडा ही आश्चर्य हुआ। उसके हाथ में वह गठरी उसी कपडे मे चॅधी उसी तरह लटक रही थी जैसी तुम्हारे सन्दूक से चोरी गई थी और जिसे देखने के साथ ही मै पहचान गया। ओफ मै नहीं कह सकता कि उस समय मेरी क्या हालत थी। मेरे होशोहवास दुरुस्त न थे और मैं अपने को जिन्दा नहीं समझता था। इस बात के दो चार दिन पहले जब मै राजा गोपालसिह के साथ किशोरी और कामिनी को कमलिनी के मकान में पहुचाने गया था तो उसी समय तारा पर मुझे शक हो गया मगर अपनी भलाई का कोई दूसरा ही रास्ता सोचकर मैं उस समय चुप रहा परन्तु जिस समय बालासिह से यकायक मुलाकात हो गई और उसने उस गठरी की तरफ इशारा कर के मुझसे कहा कि इसमें सोहागिन तारा की किस्मत बन्द है उसी समय मुझे विश्वास हो गया कि तारा वास्तव में लक्ष्मीदेवी है और वह कागज का मुद्रा भी इसी ने चुरा लिया है जिसे मैंने बडी मेहनत से बटोर कर नकल करके रक्खा था। मैं उस समय बदहदास हो गया और अफसोस करने लगा कि जिन कागजों से मैं फायदा उठाने वाला था वही कागज अब मुझे चौपट करेंगे क्योकि वह उन्हीं कागजों से मुझी को दोषी ठहराने का उद्योग करेगा। यदि वह सन्दूकडी उसके पास न होती तो मै हताश न होकर और कोई बन्दोवस्त करता परन्तु उस सन्दूकडी के ख्याल ही से मैं पागल हो गया और उस समय तो मै बिल्कुल ही मुर्दा हो गया जब उसकी बेगम पर मेरी निगाह पड़ी। स्त्री-(चौक कर ) क्या बेगम भी जीती है । भूत-हॉ उस समय वह उसके साथ थी और थोड़ी ही दूर पर एक झाड़ी के अन्दर छिपी हुई थी। स्त्री-यह बड़ा ही अधेर हुआ अगर तुम्हें मालूम होता कि वह जीती है तो तुम अपना नाम भूतनाथ काहे को रखते। भूत-नहीं अगर उसके मरने में कुछ भी शक होता तो मै अपना नाम भूतनाथ न रखता। केवल इतना ही नहीं उसने ता मुझे उस समय एक ऐसी बात कही थी जिससे मेरी बची चचाई जान भी निकल गई और मै एसा कमजोर हो गया देवकीनन्दन खत्री समग्र