पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६१

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कुसुम-- है मालती की लाश पड़ी हुई है ।उसे किसने मारा ? लौंडी-न मालूम किसने मारा !कलेजे में जख्म लगा हुआ है खून से तर बतर हो रही है । कुसुम-और कालिन्दी का पता नहीं । लोडी-तमाम घर दूढ डाला लेकिन रनवीर-शायद कोई ऐसा दुश्मन आ पहुचा जो मालती को मार डालने बाद कालिन्दी को ले भागा। कुसुम-इधर कई दिनों से कालिन्दी उदास और किसी सोच में मालूम पडती थी इससे मुझे उसी पर कुछ शक पड़ता है। रनवीर - अगर एसा है तो मैं भी कालिन्दी ही पर शुबहा करता हूं। कुसुम-हाय बचारी मालती कुसुमकुमारी जी जान से मालती को प्यार करती थीं उसके मरने का उसे बड़ा ही गम हुआ साथ ही इस तरवुद ने भी उसका दिमाग परेशान कर दिया कि कालिन्दी कहाँ गायब हो गई और उसके सोच में उसके माँ बाप की क्या दशा होगी। कुसुम ने रनवीरसिह की तरफ देखकर कहा सर स ज्याद फिक्र तो मुझे बीरसेन की है। उसको कालिन्दी से बहुत ही मुहब्बत थी बल्कि थोडे ही दिनों में उन दोनों की शादी होने वाली थी। अब वह यह हाल सुन कर कितना दुखी होगा? एक तो मै उसे अपने छोटे भाई की तरह मानती हू, दूसरे इस समय ज्यादे भरोसा वीरसेन ही का है। तुम्हारी यह दशा है ईश्वर ने जान बचाई यही बहुत है मैं औरत ठहरी दीवान साहब वेचारे लडने भिड़ने का काम क्या जाने सो उन्हें भी आज लडकी का ध्यान बेचैन किए होगा सिवाय बीरसेन के बालेसिह का मुकाबला करने वाला आज कोई नहीं है ! हाय, सत्यानाशी मुहब्बत आज उस भी बेकाम करके डाल देगी देखें कालिन्दी के गम में उसकी क्या दशा होती है । रनबीर-क्या बालेसिह के चढ़ आने की काई खबर मिली है ? कुसुम-खबर क्या उसकी फौज इस किले के मुकाबले में आ पडी है जिसका सेनापति आपका दोस्त (मुस्कुरा कर)जसवन्तसिह बनाया गया है। रनवीर-क्या यहाँ तक नौबत पहुच गई ॥ कुसुम-जी हाँ लाचार होकर दीवान साहब ने किला बन्द करने का हुक्म दे दिया है और सफीलों पर से लडाई करने की तैयारी कर रहे है शायद बीरसेन का भी बुलवा भेजा है। रनवीर-(कुछ सोच कर) खैर क्या हर्ज है दरियाफ्त करो कोई बीरसेन के पास गया है या नहीं वह आ जाय तो में खुद मैदान में निकल कर देखता हू कि बालेसिह किस हौसले का आदमी है और जसवन्त मेरा मुकाबला किस तरह करता है। कुसुम-क्या ऐसी हालत में तुम लडाई पर जाआगे? रनबीर-क्या चिन्ता है? कुसुम-तुममें तो उठ कर बैठने की भी ताकत नहीं है ! रनबीर-ताकत तभी तक नहीं है जब तक गद्दी और तकिये के सहारे बैठा हू जिस वक्त जेई और खौद पहिन कर हर्वे यदन पर लगाऊँगा और नेजा हाथ में लेकर मैदान में निकलूंगा उस वक्त देयूँगा कि ताकत क्योंकर नहीं आती। क्षत्रियों के लिए लडाई का नाम ही ताकत और हौसला बढाने वाला मन्त्र है। कुसुम-(हाथ जोडकर और ऊपर की तरफ दख कर दिल में) हे ईश्वर तू धन्य है मुझ पर क्या कम कृपा की कि ऐसे बहादुर के हाथ में मेरी किस्मत सौंपी । रनवीर-(एक लौडी से) जाकर पूछ तो वीरसेन के पास काई गया है या नहीं? हुक्म पाते ही लौडी बाहर गई मगर तुरन्त ही लौट आकर बोली “वीरसेन आ पहुचे बाहर खडे है ? रनबीर-मालूम होता है यहाँ से सन्देसा जाने के पहिले ही वीरसेन इस तरफ रवाना हो चुके थे। कुसुम यही बात है, नहीं तो आज ही कैसे पहुच जाते? आज तक तो में उसे अपने सामने बुलाकर बातचीत करती थी क्योंकि मैं उसे भाई के समान मानती हू मगर अब जैसी मर्जी । रनवीर-(हॅस कर) तो क्या आज कोई नई बात पैदा हुई ? या भाई का नाता धोखे में टूट गया ! कुसुम-(शर्मा कर) जी मेरा भाई आप सा धर्मात्मा नहीं है। रनबीर-ठीक है, तुम्हारे सग पापी हो गया ! कुसुम कुमारी १०६९