पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६११

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गोपाल–हाँ ठीक है मुझे इस प्रकार की एक किताब मिली थी मगर उस समय मै बड़े क्रोध में था इसलिए कम्बख्त नकली मायारानी का असबाव कपड़ा लत्ता इत्यादि जो कुछ मेरे हाथ लगा उसी में उस तस्वीर वाली किताब को भी रखकर मैने आग लगा दी मगर अब मुझे यह जान कर अफसोस होता है कि यह किताच बड़े मतलब की थी। अव मूतनाथ को निश्चय हो गया कि राजा गोपालसिह मुझसे बहाना करते हैं और मेरी मदद करना नहीं चाहते। तर क्या करना चाहिए? इसके लिए भूतनाथ सिर झुकाए हुए कुछ साच रहा था कि राजा गोपालसिह ने कहा- गोपाल-मगर भूतनाथ मुझे याद पडता है कि तस्वीर वाली किताब में तुम्हारी तस्वीर भी थी। भूत-शायद हो। गोपाल खैर अब तो वह किताब ही जल गई उसके बारे में कुछ भी कहना वृथा है। भूत-(उदासी के साथ) मेरी किस्मत मै लाचार हूँ। यस मदद के लिए केवल एक वही किताब थी जिसे पाने की उम्मीद में मै आपके पास आया था खैर अब जाता हूँ जो कुछ हैरानी बदी है उसे उठाऊँगा और जिस तरह बनेगा असली बलभद्रसिह का पता लगाऊँगा। गोपाल-मै जानता हूँ कि इस समय जमानिया के बाहर होकर तुम कहाँ जाओगे और बलभद्रसिह का पता क्योंकर लगाओगे | क्या करोगे। भूत-(ताज्जुब से) वह क्या ? गोपाल–वस काशी में मनोरमा का मकान तुम्हारा सब स पहिला ठिकाना होगा। भूत-बस वस ठीक है आपन खूब समझा और अब मुझे विश्वास हो गया कि इस काम में आप मेरी बहुत कुछ मदद कर सकते हैं मगर आश्चर्य है कि आप किसी तरह की सहायता नहीं करते। गापाल-खैर अब हम तुमसे साफ-साफ कह दना ही अच्छा समझते हैं। कृष्णाजिन्न से और मुझसे नि सन्देह दोस्ती थी और वह अब भी मुझसे प्रेम रखता है मगर इसी कारण से मेरी तबीयत उससे खट्टी हो गई और मै कसम खा चुका हूँ कि जिस काम में वह पडेगा उसमें मै दखल न दूगा चाहे वह काम मेरे ही फायदे का क्यों न हो या मदद न देने के सबब से मेरा कितना ही बड़ा नुकसान क्यों न हो या मेरी जान ही क्यों न चली जाय । यस यही सबब है कि मै तुम्हारी मदद नहीं करता। भूत-(कुछ सोचकर) अच्छा तो फिर मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं जाउँ और बलभद्रसिह का पता लगाने क लिए उद्योग कॉ। गोपाल-जाओ ईश्वर तुम्हारी मदद करे । भूतनाथ सलाम करके कमरे के बाहर चला गया। उसके जाने के बाद गोपालसिंह को हँसी आई और उन्होंने आप ही आप धीरे से कहा 'इसने जरूर सोचा होगा कि गोपालसिंह पूरा बेवकूफ या पागल है । भूतनाथ महल की डयोढी पर आया जहाँ अपने साथी को छोड़ गया था और उसे साथ लेकर शहर के बाहर निकल गया। जब वे दोनों आदमी मैदान में पहुचे जहाँ चारों तरफ सन्नाटा था तो भूतनाथ के साथी ने राजा गोपालसिह की मुलाकात का क्या नतीजा निकला? भूत-कुछ भी नहीं मै व्यर्थ ही आया। आदमी-सो क्या? भूत-उन्होंने किसी प्रकार की मदद देने से इनकार किया। आदमी-बडे आश्चर्य की बात है यह काम तो वास्तव में उन्हीं का है। भूत-सब कुछ है मगर आदमी-तो क्या लक्ष्मीदेवी का पता लगने से वे खुश नहीं है ? भूत-मेरी समझ में कुछ नहीं आता कि वे खुश है या नाराज न तो उनके चेहरे पर किसी तरह की खुशी दिखाई दी नरज । हॅसना तो दूर रहा वे लक्ष्मीदेवी बलभद्रसिह मायारानी और कृष्णा जिन्न का किस्सा सुनकर मुस्कुराये भी नहीं, यद्यपि कई बातें ऐसी थी कि जिन्हें सुनकर उन्हें अवश्य हॅसना चाहिए था। आदमी-क्या उनके मिजाज में कुछ फर्क पड़ गया है। भूत-मालूम तो ऐसा ही होता है बल्कि मै तो समझता हूँ कि वे पागल हो गये है। जब मैंने उनसे पूछा कि राजा बीरेन्द्रसिह या लक्ष्मीदेवी से मिलने के लिए आप रोहतासगढ़ जायेंगे'? तो उन्होंने कहा 'नहीं जब तक राजा वीरेन्दसिह न बुलावेंगे मैं न जाऊँगा भला यह भी कोई बुद्धिमानी की बात है । पूछा कहिये चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३