पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६१२

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३ आदमी-मालूम होता है वे सनक गये है। भूत-या तो सनक ही गये हैं या फिर कोई भारी धूर्तता करना चाहते हैं। खैर जाने दो इस समय तो भूतनाथ स्वतन्त्र है फिर जा होगा देखा जायेगा। अब मुझे किसी ठिकाने बैठकर अपने आदमियों का इन्तजार करना चाहिए। आदमी-तय उसी कुटी में चलिए किसी न किसी से मुलाकात हो ही जायगी। भूत-(हॅस कर ) अच्छा देखो तो सही भूतनाथ क्या करता है और कैसे-कैसे खेल दिखाता है। सातवॉ बयान - अब हम शोडा हाल लक्ष्मीदेवी की शादी का लिखना आवश्यक समझते है। जब लक्ष्मीदेवी की मॉ तहरीली मिठाई के असर से मर गई (जैसा कि ऊपर के लरस से हमारे पाठकों को मालूम हुआ होगा) तव लक्ष्मीदेवी की सगी मोसी जा विधवा थी और अपने ससुराल म रहा करती थी बुला ली गई और उसने बडे लाङप्यार स लक्ष्मीदेव कमलिनी और लाडिली की परवरिश शुरू की और बडी दिलजभई तयादिलासे से उन तीन को रखा। परन्तु बलभद्रसिह स्त्री के मरने से बहुत उदास और विरत्ता हो गया। उसका दिल गृहस्थी तथा व्यापार की तरफ नहीं लगता था और वह दिन रात इसी विचार में पड़ा रहता था कि किसी तरह तीना लड़कियों की शादी हा जाय और वे सब अपने-अपन टिकाने पहुंच जाय तो उत्तम हो । लक्ष्मीदधी की बातचीत का राजा गोपालसिंह के साथ तय हो चुकी थी परन्तु कमलिनी और लाउिली के विषय मे अभी तक कुछ निश्चय नहीं हो पाया था ! लक्ष्मीदेवी की माँ को मर जब लगभग सोलह महीने हा चुके तब उसकी शादी का इन्तजाम होने लगा। उधर राजा गापालसिह और उधर बलभद्रसिंह तैयारी करने लगे। यह बात पहिले ही से तै पा चुको श्री कि राजा गोपालसिह बारात सजाकर बलभद्रसिह के घर न आवेगे बल्कि बलभद्रसिह को अपनी लड़की उसके घर ले जाकर ब्याह देनी हागी और आखिर ऐसा ही हुआ। सावन का महीना और कृष्णपक्ष की एकादशी का दिन था जब बलभद्रसिह अपनी लडकी को लेकर जमानिया पहुचे । उसके दूसर या तीसरे दिन शादी हान वाली थी और उधर कम्बख्त दारोगा ने गुप्त रीति से हलासिह और उसकी लडकी मुन्दर को बुलाकर अपन मकान में छिपा रखा था। बलभद्रसिह और दारोगा से बड़ी दोस्ती थी और बलभदसिह दारोगा का बड़ा विश्वास करता था मगर अफसोस रुपया जो चाहे सो करावे। इसकी ठण्डी आँच को बरदाश्त करना किसी ऐसे-वैसे दिल का काम नहीं। इसके सबब से यडे-बड़े मजबूत कलेजे हिल जाते हैं और पाप और पुण्य के विचार को तो यह इसी तरह से उड़ा देता है जैसे गन्धक का चूं कनेर पुष्प के लाल रंग का। यद्यपि दारोगा और बलभद्रसिंह में दोस्ती थी परन्तु हेलासिह के दिखाए हुए सब्जबाग ने दारोगा को ईश्वर और धर्म की तरफ कुछ भी विचार करने न दिया और वह बडी दृढता के साथ विश्वासाघात करने के लिए तैयार हो गया। बलभदसिह अपनी लडकी तथा कई नौकर और सिपाहियों को लेकर जमानिया में पहुचे और एक किराए के बाग में डेरा डाला जो कि दारोगा ने उनके लिए पहिले से ही ठीक कर रखा था। जब हर तरह का सामान ठीक हो गया तो उन्होंने दोस्ती के ढग पर दारोगा को अपने पास बुलाया और उन चीजों को दिखाया जो शादी के लिए बन्दोबस्त कर अपने साथ ले आए थे उन कपड़ों और गहनों को भी दिखाया जो अपने दामाद को देने के लिए लाए थे फिहरिस्त के सहित वे चीजे उसके सामने रक्खी जो दहेज में देने के लिए थीं और सच के अन्त में वे कपडे भी दिखाये जो शादी के समय अपनी लडकी लक्ष्मीदेवी को पहिराने के लिए तैयार कराकर लाए थे। दारोगा ने दोस्ताने दग पर एक एक करके सब चीजों को देखा और तारीफ करता गया मगर सबसे ज्यादा देर तक जिन चीजों पर उसकी निगाह ठहरी वह शादी के समय पहिराए जाने वाले लक्ष्मीदेवी के कपड़े थे।दारागाने उन कपड़ों को उससे भी ज्यादे बारिक निगाह से देखा जिस निगाह से कि रहन रखने वाला कोई चालाक बनिया उन्हें देखता आया या जाच करता। दारोगा अकेला बलभद्रसिह के पास नहीं आया था बल्कि अपने दो नौकरों तथा सिपाहियों के साथ जिनको वह दरवाजे पर ही छोड़ आया था और भी दो आदमियों को लाया था जिन्हें बलभद्रसिह नहीं पहिचानते थे और दारोगा ने जिन्हें अपना दोस्त कहकर परिचय दिया था। इस समय इन दोनों ने भी उन कपड़ों को अच्छी तरह देखा जिनके देखने में दारागा ने अपने समय का बहुत हिस्सा नष्ट किया था। योडी देर तक गपशप और तारीफ करने के बाद दारागा उठकर अपने घर चला आया। यहाँ उसने सब हाल हलासिह से कहा और यह भी कहा कि मैं दो चालाक दर्जियां को अपने साथ लिये चला गया था जिन्होंने वे कपडे बहुत अच्छी तरह देखभाल लिए है जो लक्ष्मीदेवी को विवाह के समय पहिराए जाने वाले हैं और उन दर्जियों को ठीक उसी तरह के कपडे तैयार करने के गई है इत्यादि। आज्ञा दे देवकीनन्दन खत्री समग्र