पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६१६

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w | दवा न मेरी जान तो बचा ली परतु में दखता रजहर का असर मुझे साफ छोड़ा नहीं चाहता निसन्दह इसकी गमी भर तमाम बदन का बिगाड़ दगी । इतना कहकर बलभदसिह चुप हा गया और गर्मी की बेनी स हाथ पात मारने लगा। सुबह होते होले उसके तमाम बदन में परफाल तिफल आये जिसकी तकलीफ स ह बहुत ही बेचैन हो गया। वारी लक्ष्मीदेवी उसके पास बैठकर सिवा रोन के और कुछ भी नही कर सकती थी दूसरे दिन जव तारागा उस तहया में आया तो बलभद्रसिह का हाल देखकर पहिले बालोट मया मगर थोड़ी ही देर बाद पुन दा आदमियों को साथ लेकर आया और बलभद्रसिह को हाथों हाथ उटया कर तहखाने के बाहर ल गया। इसको आठ दस दिन तक बेचारी लक्ष्मीदेवी २ अथावारी सरत भी नहीं देखी। नई दिन कम्धरत दासगान बलभदसिह की जगए अपन दोस्त पारस का उस तइया? मजला और माला बन्द करक चला गया। जैपालसिह का देख कर लक्ष्मीदेवी ताज्जुब में आ गई और बाली तुम कौन हो यहा पर क्या लाये गय? जैपाल-वटी क्या तू मुझे इसी आठ दिन में ही भूल गई।क्यातूनही जानती कि जहर के असर नेमरी दुति कर दी है? क्या तेरे सामने ही मेरे तमाम बदन में फफोले नहीं उठ आर्य थे? ठीक है येशक तू मुझे नहीं पहिचान सका हागी क्योंकि मेरा तमाम बदन जख्मो से भरा हुआ है चेहरा बिगड़ गया है मेरी आवाज खराब हो गई है और मै बहुत हो दुखी हो रहा हूँ। लक्ष्मीदेवी को यद्यपि अपने बाप पर शक हुआ था मगर माड़े पर का यही दाँत काटा निशान जो इस समय भी मौजूद था और जिसे दारोगा ने कारीगर जर्राह की बदौलत बनवा दिया था,दराकर चुप हा रही और उस निश्चय हो गया कि मेरा बाप बलभद्रसिह यही है। थाड़ी देर याद लक्ष्मीदवी ने पूछा तुम्ट जब दारोगा यहाँ स ल गया तर उसने वया किया? नकली बलभद-तीन दिन तक ता मुझे तनोयदन की सुध नहीं रही। लक्ष्मी-अच्छा फिर। नकली बलभद-चौथे दिन जब मरी आख खुली ता मैने अपने को एक तहखाने में कैद पाया जहाँ सामने चिराग जल रहा था फुसी पर वेईमान दारोगा बैठा हुआ था और एक जर्राह मेरे जरमों पर मरहम लगा रहा था। लक्ष्मी--आश्चर्य है कि जय दारोगा ने तुम्हारी जान लेने के लिए जहर ही दिया ता नकली बलभद--मसुद आश्चर्य कर रहा हूँ कि जब दारोगा मेरी जान ही लिया चाहता था और इसलिए उसने मुझप्ले जहर दिया था तो यहाँ से ले जाकर उसो मुझे जीता क्यो छाडा मरा सिर क्यों नही झाट डाला बल्कि मेरा इलाज क्यों करान लगा? लक्ष्मी-जीक है ने भी यही साध रही है. अन्न तर क्या हुजा नकली बलभद्र-जब जर्राह मरहम लगा के चला गया और निराला हुआ तब दारोगा न मुझस कहा 'देखो अलभद्रसिह नि सन्देह तुम मरे दोस्त थे मगर दौलत की लालब ने मुझे तुम्हारे साथ दुश्मनी करने पर मजबूर किया। जो कुछ में किया पाहता था सो मै यद्यपि कर चुका अर्थात तुम्हारी लडकी की जगह हेलासिंह को लड़की मुन्दर को राजरानी बना दिया मगर फिर मैन साया कि अगर तुम दानो यच कर निकल जाओगे तो मेरा भेद खुल जायगा और मै मारा जाऊँगा इसलिए मैंने तुम दानों को कैद किया। फिर हलासिह ने राय दी कि वलभदसिंह का मार कर सदैव के लिए टन्टा मिटा देना चाहिए और इसलिए मैने तुमको जहर दिया मगर आश्चर्य है कि तुम मरे नहीं। जहा तक मैं समझता हूँ मेर किसी नौकर ने ही भरे साथ दगा की अर्थात मेर दया के सन्दूक में स सजीवनी की पुडिया जो केवल एक ही सुराक थी और जिसे वर्षों मेहनत करके भेन तैयार किया था निकाल कर तुम्हें खिला दी और तुम्हारी जान बच गई येशक यही बात है और यह शक मुझे तय हुआ जय मैंन अपने तन्दूक में राजीवनी की पुडिया न पाई और यद्यपि तुम उस सजीवनी की यदौलत वच ग्ये मगर फिर भी तेज जार के अत्तर से तुम्हारा बदन तुम्हारी सूरत और तुम्हारी जिन्दगी खराब हुए बिना नहीं रह सकती। ताज्जुब नहीं कि आज नहीं तो दो चार वर्षों के अन्दर तुम मर जाओ अतएव मै तुम्हार भारन के लिए कष्ट नहीं उठाता वाल्क तुम्हारे इस जना का आराम करने का उधाग करता हूँ और इसमें अपना फायदा भी समझता हूँ। इतना कह दारोगा चला गया और मुझे कई दिनों तक उसी तहखाने में रहना पड़ा। इस बीच मजराह दिन में तीन धार दफे मेर पास आता और जख्मों को साफ कर के पटी लगा जाता ! जब मेरे जख्म दुरुस्त होने पर आये और जर्रह ने कहा कि अब पट्टी बदलने की जरुरत न पडेगी तो मैं पुन इस जगह पहुंचा दिया गया। लक्ष्मी-( ऊँची साँस लेकर ) न मालूम हम लोगों ने ऐसे कौन पाप किय है जिनका फल यह मिल रहा है। इतना कह लक्ष्मी रोने लगी और नकली बलभद्रसिह उसको दम दिलासा देकर समझाने लगा। हमारे पाठक आश्चर्य करते हाग कि दारोगा ने एसा क्यों किया और उसे नकली बलभद्रसिह बनाने की क्या देवकीनन्दन खत्री समग्र ६०८ ?