पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६१७

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आवश्यकता थी। अस्तु इसका सबब भी इसी जगह लिख देना उचित समझते है। कम्बख्त दारोगा ने सोचा कि लक्ष्मीदेवी की जगह में मुन्दर को राजरानी बना तो दिया मगर कही एसा न हो कि दा चार वर्ष बाद या किसी समय में लक्ष्मीदेवी के रिश्तेदारी में काई या उसकी दानों वहिने मुन्दर से मिलने आयें और लक्ष्मीदेवी के लडकपन का जिक छेड देतो अगर उस समय मुन्दर उसका जयाय न दे सकी तो उनका शक हो जायरा सूरत शक्ल के बारे में तो कुछ चिन्ता नहीं जैसी लक्ष्मीदेवी खूबसूरत है वैसी ही मुन्दर भी है और औरतों की सूरत शक्ल प्राय विवाह होने के बाद शीघ्र ही बदल जाती हे अस्तु सूरत-शक्ल के बारे में काई कुछ कह नहीं सकेगा परन्तु जब पुरानी चाते निकलेंगी और मुन्दर कुछ जवाय न दे सकेगीतब कठिन हागा। अतएव लक्ष्मीदेवी का कुछ हाल उसक लडकपन को कैफियत उसके रिश्तेदारों और सखी सहलियों के नाम और उनकी तथा उनके घरों की अवस्था से मुन्दर का पूरी तरह जानकारी हो जानी चाहिए। अगर वह सब हाल हम बलभद्रसिइ से पूछेग तो वह कदापि न बतायेगा, हों अगर किसी दूसरे आदमी का बलभद्रसिह बनाया जाय और वह कुछ दिनों तक लक्ष्मीदेवी के साथ रह कर इन बातों का पता लगावे तब चल सकता है इत्यादि बातों को साथ कर ही दारोगा ने उपराक्त चालाकी की और कृतथार्थ भी हुआ अर्थात दो ही चार महीनों में नकली बलभद्रसिह को लक्ष्मीदवी का पूरा पूरा हाल मालूम हो गया। उसने सर हाल दारागा से कहा और दारोगा न मुन्दर को सिखा पढा दिया। जब इन बातों से दारागा की दिलजमाई हो गई तो उसने नकली वलभद्रसिंह का कैदखान स बाहर कर दिया और फिर मुद्दत तक लक्ष्मीदेवी को अकेले ही कैद की तकलीफ उठानी पड़ी। नौवॉ बयान एक दिन लक्ष्मीदेवी उस कैदखाने में बैठी हुई अपनी किस्मत को रो रही थी कि दाहिनी तरफ वाली कोठरी में से एक नकाबपोश को निकलते देखा। लक्ष्मीदेवी ने समझा कि यह वही नकाबपोश है जिसने मेरे बाप की जान बचाई थी मगर तुरन्त ही उसे मालूम हो गया कि यह कोई दूसरा है क्योंकि उसक और इसक डील डौल में बहुत फर्क था। जब नकाबपोश जगले के पास आया तब लक्ष्मीदेवी ने पूछा तुम कौन हो और यहाँ क्यों आये हो? नकाबपोश-मैं अपना परिचय तो नहीं दे सकता परतु इतना कह सकता हूँ कि बहुत दिनों से में इस फिक्र में था कि इस कैदखान से किसी तरह तुमको निकाल दूमगर मौका न मिल सका आज उसका मौका मिलने पर यहाँ आया हूँ, इस विलम्ब न करो और रठो। इतना कह नकाबपोश न जगला खोल दिया लक्ष्मी और मेरे पिता? नकाबपोश-मुझे मालूम नहीं कि वे कहाँ कैद है या किस अवस्था में हैं ? यदि मुझे उनका पता लग जायगा ता मै उन्हें भी छुडाऊँगा। यह सुन कर लक्ष्मीदेवी चुप हो रही और कुछ साच-विचार कर आँखों से आंसू टपकाती हुई जगले के बाहर निकली। नकाबपोश उसे साथ लिए हुए उसीकोठरी में घुसा जिसमें से वह स्वयें आया था अब लक्ष्मीदेवी को मालूम हुआ कि यह एक सुरग का मुहाना है। बहुत दूर तक नकाबपोश के पीछे जा और कई दर्वाज लाघ कर उस आसमान दियाई दिया और मैदान की ताजी हवा भी मयस्सर हुई। उस समय नकाबपाश ने पूछा 'कहो अब तुन क्या करागी और कहाँ जाओगी? लक्ष्मी-मैं नहीं कह सकती कि कहाँ जाऊँगी और क्या करूँगी वल्कि डरती हूँ कि कहीं फिर दारागा के कब्जे में न पड़ जाऊँ हाँ यदि तुम मेरे साथ कुछ और भी नेकी करो और मुझे मेर घर तक पहुँचान का बन्दोबस्त कर दो तो अच्छा हो। नकायपोश-(ऊँची साँस लेकर ) अफसोस तुम्हारा धर पर्याद हो गया और इस समय वहाँ कोई नहीं हैं।तुम्हारी दूसरी मॉ अधात तुम्हारी मौसी मर गई तुम्हारी दोनों छोटी वहिने राजा गापालसिह के यहाँ आ पहुंची है और मायारानी को जा तुम्हार बदले में गोपालसिंह को गल मडी गई है.अपनी सगी बहिन समडाकर उसी क साथ रहती है। लक्ष्मी मैन तो सुना था कि मेरे बदल में मुदर मायारानी बनाई गई है। नकाय-हाँ वही मुन्दर अव मायारानी के नाम से प्रसिद्ध हो रही है। लक्ष्मी तो क्या मैं अपनी बहिनों से या राजा गोप्पलसिह स मिल सकती हूँ २ नकाव-नहीं। . चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३