पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२०

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€ इतना कह कर वह आदमी लौट गया एक घण्टे के बाद वह और भी दो आदमियों को अपने साथ लिए हुए आया और भूतनाथ से घोला 'चलिए मगर आँखों पर पट्टी बंधवाने की तकलीफ आपको उठानी पड़ेगी। इसके जवाब में भूतनाथ यह कह कर उद खडा हुआ सो तो मैं पहिले ही स जानता हूँ। भूतनाथ की आँखों पर पट्टी बाँध दी गई और वे तीनों आदमी उस अपने साथ लिए हुए इन्द्रदेव के पास जा पहुंचे। इन्ददव के स्थान और उसक मकान की कैफियत हम पहिले। लिख चुके है इसलिए यहाँ पुन न लिख कर असल मतलव पर ध्यान दते है। जिस समय भूतनाथ इन्द्रदव के सामने पहुंचा उस समय इन्ददव अपने कमरे में मसनद के सहारे बैठे हुए कोई ग्रथ पढ़ रहे थे। भूतनाथ को देखते ही उन्होंन मुस्कुराकर कहा. आओ-आओ मूतनाथ अवकी तो बहुत दिनों पर मुलाकात हुई भूतनाथ-(सलाम करक) यशक बहुत दिनों पर मुलाकात हुई है। क्या कहें जमान के हेर-फेर न एसे ऐसे कुठेंगे फंसा दिया और अभी तक फंसा रक्खा है कि मेरी कमजोर जान को किसी तरह छुटकारे का दिन नसीब नहीं होता और इसी से आज यहुत दिनों पर आपकं मी दर्शन हुए हैं। इन्द्र-(हँसकर) तुम्हारी कमजोर जान जो भूतनाथ मजबूत आदमियों को नीचा दिखाने की ताकत रखता है वह कहे कि मेरी कमजोर जान ! भूत-वंशक ऐसा ही है। यद्यपि मैं अपन को बहुत कुछ कर गुजरने लायक समझता था मगर आज कल ऐसी आफत में जान फंसी हुइ है कि अक्ल कुछ काम नहीं करती। इन्द-क्या कुछ कहा भी तो? भूत-मै यही सब कहने और आपस मदद माँगन के लिए तो आया ही हूँ। इन्द-मदद मांगने के लिए । भूत-जी हाँ आपसे बहुत बड़ी मदद की मुझे आशा इन्द-सो कैसे ? क्या तुम नहीं जानते कि मायारानी का तिलिस्मी दारागा मेरा गुरुमाई है और वह तुम्हें दुश्मनी की निगाह से देयता है? भूत-इन बातों को मै खूर जानता हूँ और इतना जानने पर भी आपसे मदद लेने के लिए आया हूँ। इन्द्रयह तुम्हारी भूल है। भूत नहीं मरी भूल कदापि नहीं है यद्यपि आप दारोगा के गुरूभाई है मगर मै इस पात को भी अच्छी तरह जानता हूँ कि आपके और उसके मिजाज में उलल सोच का फर्क है और मैं जिस काम में आपसी मदद लिया चाहता हु वह नेक और धर्म का काम है। इन्द्र-(कुछ साथ कर) अगर तुम यह तमझ कर कि मै तुम्हारी मदद न करूँगा अपना मतलब कह सकते हो ता कहा जैसा हागा में जवाब दूंगा। 1 भूत-यह तो मैं समझ ही नहीं सकता कि आपसे किसी तरह की मदद नहीं मिलेगी, मदद मिलेगीऔर जरूर मिलेगी। क्योंकि आपस और बलभदसिह सदोस्ती थी और उस दास्ती का बदला आप उस तरह नहीं अदा कर सकतं जिस तरह दारागा साहब ने दिया था। इस समय उस कमरे में वे तीनों आदमी भी मौजूद थे जो भूतनाथ को अपने साथ यहाँ तक लाये थे इद्रदेव ने उन तीनों को विदा करने के बाद कहा- इन्द-क्या तुम उस बलभद्रसिह के बारे में मुझसे मदद लिया चाहत हो जिसे मरे आज कई वर्ष बीत चुके है ? भूत-जी हॉ. उसी प्रलभदसिह के बारे में जिसकी लडकी तारा बन कर कमलिनी के साथ रहने वाली लक्ष्मीदेवी है .और जिसे आप चाह मरा हुआ समझते हैं मगर मैं मरा हुआ नहीं समझता। इन्द्र-(आश्चय) क्या तारा ने अपना भेद प्रकट कर दिया । और तुम्हें कोई ऐसा संधूत मिला है जिससे समझा जाय कि बलभद्रसिंह अभी तक जीता है? भूत-जी तारा का भेद यकायक प्रकट हो गया है जिसे मैं भी नहीं जानता था कि वह लक्ष्मीदेवी है, और वलनदसिह के जीते रहने का सबूत भी मुझे मिल गया मगर आपने तारा का नाम इस ढग से लिया जिससे मालूम होता है कि आप असल भेद पहिले ही से जानते थे। इन्द-नहीं नहीं मै भला क्योंकर जान सकता था कि तारा लक्ष्मीदवी है यह तो आज तुम्हारे ही मुँह से मालूम हुआ देवकीनन्दन खत्री समग्र ६१२