पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२१

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ceri है। अच्छा तुम पहिले यह तो कह जाओ कि तारा का नद क्योंकर प्रकट हुआ तुन कित्त मुसीदत में एडे हो, और इस वात. का क्या सबूत तुम्हारे पास है कि यलमदसिंह अभी तक जीत है ? क्या बलभद्रसिंहजान-बूझ कर कहीं छिपे हुए है या किसी की कैद में है? भूत-नहीं नहीं बलमदत्सिंह जान बूझ कर छिपे हुए नहीं है बल्कि कहीं कैद है। मैं उन्हें छुड़ान की फिक्र में लगा हूँ और इसी काम में आपसे मदद लिया चाहता हूँ क्योंकि अगर बलमदसिंह का पता लग गया तो आपको दाजाने बचाने का पुण्य मिलगा। इन्ददूसरा कौन? भूत-दूसरा मै क्योंकि अगर बलन्दसिंह का पता न लगगा तो निश्चय है कि मैं भी मारा जाऊँगा। इन्द्र-अच्छा तुन पहिल अपना पूरा हाल वह जाओ। इतना सुन कर भूदनाथ ने अपना हाल उन जाहत जर नगदनिया के सामने नकली बल नद्रसिंह से उमसे मुलाकात हुई यो कहना शुरू किया और इन्ददय बडे गौर से उस सुनते रहे। भूतनाथ न अपना कैदियों की हालत में राहतार गद पहुँचना, कृष्णाजिन्नस मुलाकात हाना यारानी और दारोगा इत्यादि की गिरफ्तारी राजा बीरेन्द्रसिंह के आ। मुझदने की पो कृष्णाजिन्न से पश किये हुए अनूठ कलन्दान को कैफियत असली बलभदसिह को खाज लिए अपनी रिहाई और राजा गापालसिंह कपात सनिना कुछ मदद पाये बैरंग लौट आने का हाल सब पूरा-पूरा इन्द्रदव त कह सुन्नया । इन्द्रदव थन्डी दर तक चुपचाप कुछ सोचत रहे। भूतनाथ ने दखा कि उनकचहरे रग बडी-थाडी दर में बदलता है और कमी लालकलो सरदारकमीसद होकर उनक दिल को अवस्था का थाडा बहुर हाल प्रस्ट करता है। इन्द-(कुछ दर वाद) मार तुम्हार इस किले में कोई ऐसल स्यूत नहीं मिला जिससे बलभद्रसिह का अभी तक जेन्त रहना सारित हाता हो। भूत-क्या मैन आपत्त अभी नही कहा कि असली बलभद्रसिंह के जीते रहने का मुझे शक हुआ और कृष्णाजिन्नन मर उस राक को यह कहकर विश्वास के साथ पदल दिया कि बेशक असलो बलभदांसह अभी तक कड़ी कैद है और तू जिन तरह हा एकं उसका पता लगा ! इन्द्र-हाँ यह लो तुमन कहा मगर नै यह नहीं जानता कि कृष्णाजिन्न कौन है और उसकी बातो र कहाँ तक विश्वास करना चाहिये। मूत-अफसोस आपन ऋष्णाजिन्न को कार्रवाई पर अच्छी तरह ध्यान नहीं दिया जो मै अभी आपसे कह चुका हूँ। यपि मैं न्दय उसे नहीं जानता परन्तु जिस समय कृष्णाजिन्न ने वह अनूदा कलमदान पश किया जिसे दखन के साथ ही नकली चलनदरिहका आधी जान निकल गई जिस पर निगाह पडते हो लक्ष्मीदवी बेहोश हो गई जिस एक झलक ही नेमै पहिचान गया जिस पर मीनाकारी को तीन तत्त्वीरं बनी हुई थी और जिस पर विचलोत्स्वीर के नीचे मीनाकारी के माटे खुपमूरत अक्षरों में इन्दिरा लिखा हुआ था उसी समय नै समझ गया कि यह साधारण मनुष्य नहीं है। इन्द-(चौक कर ) क्या कहा क्या लिखा हुआ था? -इन्दिग। और यह कहने के साथ ही इन्ददव के चेहरे का रंग उड गया तथा आश्चर्य ने उस पर अपना रोआव जमा लिया। नूत-हो हो 'इन्दिरा-उराक यही लिखा हुआ था। अब इन्द्रदेव अपने को किसी तरह सम्हाल न सका। वह चयडा कर उढ खड़ा हुआ और धीरे-धीर निम्नलिरिस्त बातें कहता हुआ इबर-उधर घूमन लगा- आफ मुझे घाखा हुआ वाह रे दारोगा तैने इन्द्रदेव ही पर अपना हाथ साफ किया जिसने तेरे सैक्डा कसूर माफ शिय और फिर भी तेरे राने पीटने और बड़ी-बड़ी कसने खाने पर विश्वास करके तुझे राजा वीरेन्द्रसिह की कैद से छुडाया ! वाह र जैपाल तुझेता इस तरह तडपातड़पा कर मागा कि गन्दगी पर बैठने वाली मक्खिों को भीतर हाल पर रहम आदमा लक्ष्मीदेवीका बाप रन कर चला था मायारानी और दारोमा को मदद करा दाह रे कृष्णाग्नि ईश्वर तेय मला करें !नगर इसने नौ कोई शक नहीं कि तुझका यह हाल हाल ही में मालूम हुआ है। आह मैने वारतव में धोखा खाया। ल्नदेवी कौवत ही प्यारी इन्दिरा !अच्छा अच्छा ठहरसा देख तो नही मैक्या करता हूँ। भूतन ने यद्यपि बहुत रो दुरे कान किये है परन्तु अब वह उन्का प्रायश्चित भी बड़ी खूबी क साथ कर रहा है। (भूतनाथ की तरफ देखक) अच्छा-अच्छा मैं तुम्हारा साथ दूंगा मगर अभी नहीं जब तक मै उस कलन्दा को अपनी आँखों से न देख लूँगा तब तक मेरा जी ठिकान न होगा। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३