पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२६

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दि H कुछ भी असर न होता? बीरेन्द-मै भी यही सवाल तुमसे करता हूँ। इन्द्रदेव-भूतनाथ के इस कहने ने कि कृष्णाजिन्न ने एक कलमदान आपके सामने पेश किया था जिस पर मीनाकारी की तीन तस्वीरें बनी हुई थी और उसे देखत ही नकली बलभद्रसिह बदहवास हो गया था-मुझे असल बलभद्रसिंह के जीते रहने का विश्वास दिला दिया। क्या यह बात ठीक है? क्या कृष्णाजिन्न ने कोई कलमदान पेश किया था? बीरेन्द्र-हाँ एक कलमदान लक्ष्मी-(वात काट-कर) हाँ हाँ मेरे प्यारे चाचा, वही कलमदान जो मेरी बहुत ही प्यारी चाची ने मुझे विवाह के इतना कहते कहते लक्ष्मीदेवी का गला भर आया और वह रोन लगी। इन्द्रदेव-(व्याकुलता से) मै उस कलमदान को शीघ्र ही देखना चाहता हूँ, (तजसिह से) आप कृपा कर उसे शीघ भगवाइए। तेज अपने बटुए में से कलमदान निकालकर और इन्ददेव के हाथ में दकर) लीजिए तैयार है। मैं इसे हर वक्त अपने पास रखता हूँ और उस समय की राह देखता हू जब इसके अद्भुत रहस्य का पता हम लोगों को लगेगा। इन्ददेव-(कलमदान अच्छी तरह देखकर) नि सन्देह भूतनाथ ने जो कुछ कहा ठीक है। अफसास, कम्बख्तों ने बड़ा धोखा दिया। अच्छा इश्वर मालिक है ॥ लक्ष्मी-क्यों यह वही कलमदान हैन? इन्द्रदेव-हाँ लुम वहीं कलमदान समझो (क्रोध से लाल-लाल आँखें करके) आफ अब मुझसे बरदाश्त नहीं हो सकता और न में ऐसे काम में विलम्य कर सकता हूँ ( वीरेन्द्र से) क्या आप इस काम में मेरी सहायता कर सकते है। वीरेन्द्र-जो कुछ मर किये हो सकता है उसे करने के लिए मै तैयार है, मुझे बडी खुशी होगी जब मैं अपनी आँखों से बलभदसिह को सही सलामत देलूँगा! इन्द्रदेव-और आप मुझ पर विश्वास भी कर सकते हैं? वीरेन्द्र-हाँ मैं तुम पर उतना ही विश्वास करता हूँ जितना इन्द्रजीत और आनन्द पर। इन्द्रदेव--( हाथ जोड और गदगद होकर ) अब मुझे विश्वास हो गया कि अपन दानां प्रेमियों को शोघ देयूँगा। वीरेन्द्र-( आश्चर्य स) दूसरा कौन ? लक्ष्मी-(चोक कर आह में समझ गई है ईश्वर वह क्या, क्या में अपनी बहुत ही प्यारी इन्दिरा को भी दगी ! इन्द्रदेव-हाँ, यदि ईश्वर चाहेगा तो ऐसा ही होगा। धीरेन्द-अच्छा यह बताओ कि अब तुम क्या चाहते हो? इन्ददेव-मै नकली बलमदसिह दारोगा और मायारानी का दखना चाहतार और साथ ही इसके इस बात की आज्ञा चाहता हूँ कि उन लोगों के साथ मै जैसा बर्ताव चाहे कर सकूँ या तीनो मेंस किसी को यदि आवश्यकता हो तो अपने साथ ल जा सकें। इन्ददेव की बात सुन कर वीरेन्द्रसिंह ने ऐसे ढग से तेजसिह की तरफ देखा और इशारे से कुछ पूछा कि सिवाय उनक और तेजसिह के किसी दूसरे को मालूम न हुआ और जब तेजसिह ने भी इशारे में ही कुछ जवाब दे दिया तव इन्ददेव की तरफ देखकर कहा, 'वे तीनों कैदी सबसे बढ कर लक्ष्मीदेवी की गुहगार है जो तुम्हारी और हमारी धर्म की लडकी है। इस लिये उन कैदियों के विषय में जो कुछ तुमका पूछना या करना हो उसकी आज्ञा लक्ष्मीदेवी से ले लो हमें किसी तरह का उज्ज नहीं है। लक्ष्मी-(प्रसन्न हाकर) यदि महाराज की मुझ पर इतनी कृपा है तो मैं कह सकती हूँ कि उन कैदियों में से जिनकी बदौलत मरी जिन्दगी का सब से कीमती हिस्सा बर्वाद हा गया जिसे भरे चाचा चाहे ल जाय ! वीरेन्द-बहुत अच्छा ( इन्ददव स ) क्या उन कैदियां का यहॉ हाजिर करने के लिए हुक्म दिया जाय ? इन्द-वसब कहाँ रक्ख गए है? वीरेन्द-यहा के तिलिस्मी तहयाने में। इन्ददेव-(कुछ सार कर ) उत्तर यही होगा कि मे उस तहखान ही में उन केदियों का दयू और उनस बातें करूँ. तव जिसकी आवश्यकता हो उसे अपने साथ ले जाऊँ। वीरेन्द्र-जैसी तुम्हारी मर्जी अगर कहो तो हम भी तुम्हारे साथ तहलाने में चलें। देवकीनन्दन खत्री समग्र ६१८