पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२७

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ext इन्ददेव-आप जरूर चलें यदि यहाँ के तहखाने की कैफियत आपने अच्छी तरह देखी न हो तो मै आपको जहखाने की सैर भी कराऊँगा बल्कि ये लडकियों भी साथ रहें तो कोई हर्ज नहीं परन्तु यह काम मै रात्रि के समय किया चाहता हूँ और इस समय केवल इसी बात की जॉच किया चाहता हूँ कि भूतनाथ ने मुझसे जो बाते कहीं थीं वे सब सच है या झूठ। बीरेन्द-ऐसा ही होगा। इसके बाद बहुत देर तक इन्ददेव लक्ष्मीदेवी कमलिनी किशोरी लाडिली तेजसिह और बीरेन्दसिह इत्यादि में बातें होती रहीं और बीती हुई बातों को इन्द्रदेव बर्ड गौर से सुनते रहे। इसके बाद भोजन का समय आया और दो तीन घण्टे के लिए सब कोई जुदा हुए। राजा बीरेन्दसिंह की इच्छानुसार इन्ददेव की बड़ी खातिर की गई और वह जब तक अकेले रहे बलभद्रसिह और कृष्णाजिन्न के विषय में गौर करते रहे। जब सध्या हुई सब कोई फिर उसी जगह इकटठे हुए और बातचीत होने लगी। इन्द्रदेव ने राजा बीरेन्दसिह से पूछा 'कृष्णाजिन्न का असल हाल आपको मालूम हुआ या नहीं? क्या उसने अपना परिचय आपको दिया? बीरेन्द-पहले तो उसने अपने को बहुत छिपाया मगर भैरोसिह ने गुप्त रीति से पीछा करके उसका हाल जान लिया जव कृष्णाजिन्न को मालूम हो गया कि भैरोसिह ने उसे पहिचान लिया तब उसने भैरोसिंह को बहुत कुछ ऊँच नीच समझा कर इस बात की प्रतिज्ञा करा ली कि सिवाय मेरे और तेजसिह के वह कृष्णाजिन्न का असल हाल किसी से न कहे और न हम तीनों में से कोई किसी चौथे को उसका भेद बतावे। पर अब मै देखता हूँ तो कृष्णाजिन्न का असल हाल तुमको भी मालूम होना उचित जान पड़ता है पर साथ ही मैं अपने ऐयार की की हुई प्रतिज्ञा को भी तोडना नहीं चाहता। इन्ददेव-नि सन्देह कृष्णाजिन्न का हाल जानना मेरे लिए आवश्यक है परन्तु में भी यह नहीं पसन्द करता कि भैरोसिह या आपकी मडली में से किसी की प्रतिज्ञा भग हो। आप इसके लिए चिन्ता न करें मै कृष्णाजिन्न को पहिचाने बिना नहीं रह सकता बस एक दफे सामना हान की दर है। बीरेन्द्र-मेरा भी यही विश्वास है। इन्द्रदेव-अच्छा तो अब उन कैदियों के पास चलना चाहिये। बीरेन्द-चलो हम तैयार है (तेजसिह देवीसिह, लक्ष्मीदेवी कमलिनी और किशोरी इत्यादि की तरफ इशारा करके) इन सभों को भी लेते चले? इन्द्रदेव-जी हाँ मैं तो पहिले ही अर्ज कर चुका है, बल्कि ज्योतिषीजी तथा भैरोसिंह को भी लेते चलिये। इनता सुनतेंहीराजा वीरेन्दसिह उठ खड हुए और सभी को साथ लिये हुए तहखाने की तरफ रवाना हुए। जगन्नाथ ज्योतिषी को बुलाने के लिए देवीसिंह भेज दिये गये। . ये लोग धीरे-धीरे जब तक तहखाने के दर्वाजे पर पहुंचे तब तक जगन्नाथ ज्योतिषी भी आ गये और सब कोई एक साथ मिलकर तहखाने के अन्दर गये। इस तहखाने के अन्दर जाने वाले रास्ते का हाल हम पहिले लिख चुके है इसलिए पुन लिखने की आवश्यकता न जान कर केवल मतलब की बाते ही लिखते है। ये सब लोग तहखाने के अन्दर जाकर उसी दालान में पहुँच जिसमें तहखाने के दारोगा रहा करते थे और जिसके पीछे की तरफ कई कोठरियों थीं। इस समय भैरोसिह और देवीसिह अपने हाथ में मशाल लिए हुए थे जिसकी रोशनी से बखूबी उजाला हो गया था और वहाँ की हर चीज साफ-साफ दिखाई दे रही थी। वे लोग इन्द्रदेव के पीछे पीछे एक कोठरी के अन्दर घुसे जिसमें सदर दाजे के अलावे एक दर्वाजा और भी था। सब लाग उस दर्वाजे मे घुसकर दूसरे खण्ड में पहुँचे जहाँ बीचोबीच में छोटा सा चौक था उसके चारों तरफ दालान और दालानों के बाद बहुत सी लोहे क सीखचों से बनी जगलदार एसी कोठरियाँ थी जिनके देखने से साफ मालूम होता था कि यह कैदखाना है और इन कोठरियों में रहने वाले आदमियों को स्वप्न में भी रोशनी नसीब न होती होगी। इन्हीं सीखचेवाली कोटरियों में से एक में दारोगा दूसरे में मायारानी तीसरी में नकली बलभद्रसिह कैद था। जब ये लोग यकायक उस कैदखाने में पहुंचे और उजाला हुआ तो तीनों कैदी जो अब तक एक-दूसरे को नहीं देख सकते थे ताज्जुब की निगाहों से उन लोगों को देखने लगे। जिस समय दारोगा की निगाह इन्ददेव पर पड़ी उसके दिल में यह ख्याल पैदा हुआ कि या तो अब हमको इस कैदखाने से छुटटी ही मिलेगी या इससे भी ज्यादे दुख भोगना पड़ेगा। इन्ददेव पहिले मायारानी की तरफ गया जिसका रग एक दम से पीला पड़ गया था और जिसकी आँखों के सामने मौत की भयानक सूरत हर दम फिरा करती थी। दो तीन पल तक मायारानी को देखने बाद इन्द्रदेव उस कोठरी के सामने आया जिसमें नकली बलभद्रसिह केद था। उसकी सूरत दखते ही इन्द्रदेव ने कहा ऐ मेरे लड़कपन के दोस्त ww चन्द्रकान्ना सन्तति भाग १३ ६१९