पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३०

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इन्द्रदेव-(कुछ सोचकर ) उन चारों के साथ कोई और भी है? आवाज-हॉ, एक हजार के लगभग फौज भी इसी तहखाने की किसी गुप्त राह से किले के अन्दर घुस कर अपना दखल जमाया चाहती है। इन्ददेव-इतनी मदद उन सभों को कहाँ से मिली? आवाज-इसी कम्बख्त मायारानी की बदौलत। इन्ददेव-क्या तुम भी उन्हीं लोगों के साथ हो ? आवाज-नहीं। इन्द्रदेव-तब तुम कौन हो। आवाज--एक दफे तो कह चुका कि तुम्हारा कोई हिती हू। इन्द्रदेव-अगर हिती हो तो हम लोगों की कुछ मदद भी कर सकते हो ! आवाज-कुछ भी नहीं। इन्द्रदेव-क्यों? आवाज-मजबूरी से। इन्ददेव-मजबूरी कैसी। आवाज-वैसी ही। इन्द्रदेव-क्या तुम हम लागों की मदद किए बिना ही इस तहखाने के बाहर चले जाओग! आवाज-नहीं क्योंकि रास्ता बन्द है। इतना सुनकर इन्द्रदेव चुप हो गया और कुछ देर तक सोचता रहा इसके बाद राजा वीरेन्द्रसिह का इशारा पाकरें फिर बातचीत करने लगा। इन्द्रदेव-तुम अपना नाम क्यों नहीं बताते ? आवाज-व्यर्थ समझ कर ! इन्द्रदेव क्या हम लोगों के पास भी नहीं आ सकते ? आवाज-नहीं। इन्द्रदेव-क्यों। आवाज-रास्ता नहीं हैं। इन्ददेव-तो क्या तुम यहा से निकल कर बाहर भी नहीं जा सकते? इस बात का जवाच भी कुछ मिला इन्द्रदेव न पुन पूछा मगर फिर भी जवाब न मिला । इतने ही में छत पर धमधमाहट की आवाज इस तरह आने लगी जैसे पचासो आदमी चारो तरफ दौड़ते या उछलते हो। उसी समय इन्द्रदेव ने राजा वीरेन्दसिह की तरफ देखकर कहा अब मुझे निश्चय हो गया कि इस गुप्त मनुष्य का कहना ठीक है और इस छत के ऊपर वाले खड में ताज्जुब नहीं कि दुश्मन आ गय हो और यह उन्हीं के पैरों की धमघमाहट हो। राजा बीरेन्दसिंह इन्द्रदेव की यात का कुछ जवाब दिया चाहते थे कि उसी मोखे मे से जिसमें से गुप्त मनुष्य के बातचीत की आवाज आ रही थी रग-बिरगे की और बहुत से आदमियों के बोलने की आवाजें आने लगी। साफ सुनाई देता था कि बहुत से आदमी आपस मे लङ-मिड रहे है और तरह तरह की बातें कर रह है। कहाँ है ? कोई ता नहीं 1 जरूर है । यही है पकड़ो पिकडो। तेरी ऐसी की तैसी तू क्या हमें पकड़ेगा? नहीं अब तू वच के कहाँ जा सकता है । इत्यादि आवाजें कुछ देर तक सुनाई देती रहीं और इसके बाद उसी मोखे में से बिजली की तरह चमक दिखाई देने लगी। उसी समय हाय रे यह क्या जले-जले मस्मरे देव-देव भूत है भूत देवता काल है काल अग्निदेव है अग्निदेव कुछ नहीं जाने दो हम नहीं हम नहीं | इत्यादि की आवाजें सुनाई देने लगी जिससे , चारी किशोरी और कामिनी का कामल कलेजा दहलने लगा और थरथर कॉपने लगी। राजा वीरेन्द्रसिह और तेजसिह वगेरह भी घबडाकर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। इन्द्रदेव-दुश्मनों के आन में काई शक नहीं। वीरेन्द्र-खैर क्या हर्ज है लडाइस हम लोग उरत नहीं अगर कुछ खयाल है तो केवल इतना ही कि तहखाने में पडे रह कर बरसी को हालन में जान दे देनी न पडे क्योंकि दर्याजों के बन्द हाने की खबर सुनाई देती है। अगर दुश्मन लोग आ गये तब कोई हज नहीं क्योंकि जिस राह सवेलास आवेग वहीं राह हम लागों के निकल जाने के लिए होमी हा पता वकीनन्दन रात्री समग्र ६२२