पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३२

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दि - यहादुरों का काम भी अच्छी तरह चल सकता था। इसमें काई शक नहीं कि दुश्मनों ने जी ताड कर लडाई की और राजा वीरेन्द्रसिह वगेरह को गिरफ्तार करने का बहुत उद्योग किया मगर कुछ न कर सके और हमारे बहादुर वीरेन्द्रसिह तथा आफत के परकाले उनके ऐयारों ने एसी बहादुरी दिखाई कि दुश्मनों के छक्के छूट गय! राजा बीरन्द्रसिह की न रुकन वाली तलवार नतीस आदमियों को उस लाक का रास्ता दिखाया एयारों न कमन्दों की उलझन में डाल कर पचासों को जमीन पर सुलाया जो अपने ही साथियों के पैरों तले रौदे जाकर काम हो गये। इन्द्रदेव ने जो चार गेंद निकाले थे उन्होंने तो अजीब ही तमाशा दिखाया। इन्द्रदेव न उन गेंदों को बारी-बारी से दुश्मनों के बीच में फेंका जो ठेस लगने के साथ ही आवाज देकर फट गए और उनमें से निकले हुए आग के शालों ने बहुतों को जलाया और बेकाम किया। जब दुश्मनों ने देखा कि हम राजा वीरेन्द्रसिह और उनके साथियों का कुछ भी न कर सक और उन्होंने हमार बहुत से साथियों को मारा और बेकाम कर दिया तो वे लोग भागन की फिक्र मे लग मगर भाग जाना भी असम्भव था क्योंकि वहा से निकल भागने का रास्ता उन्हें मालूम न था। कल्याणसिह जिस राह से उन सभों को इस तहखाने में लाया था उसे वन्द न भी कर देता तो उस घूमघुमौवे और पेंचीले रास्त का पता लगा कर निकल जाना कठिन था। आधी घडी स ज्यादे देर तक मौत का बाजार गर्म रहा। दुश्मन लोग मारे जाते थे और ऐयारों को सर्दारों के गिरफ्तार करने की फिक्र थी इसी में तहखाने के ऊपरी हिस्से से किसी औरत के चिल्लाने की आवाज आने लगी और सनों का ध्यान उसी तरफ चला गया। तेजसिह ने भी उसे कान लगा कर नुना और कहा 'ठीक किशोरी की आवाज मालूम पड़ती है। हाय र मुझे बचाओ अब मरी जान न यचगी दोहाई राजा वीरेन्द्रसिह की । इस आवाज न केवल तेजसिंह ही को नही बल्कि राजा बीरन्दसिह का भी परेशान कर दिया। वह ध्यान देकर उस आवाज को सुनन लगे। इसी बीच में एक दूसरे आदमी की आवाज भी उसी तरफ से आने लगी। राजा बीरेन्द्रसिंह और उनके साथियों न पहिचान लिया कि वह उसी की आवाज है जो कैदखाने की कोठरी में कुछ देर पहिले गुप्त रीति से बातें कर रहा था और जिसन दुश्मनों के आने की खबर दी थी। वह आवाज यह थी हाशियार होशियार देखो यह चाण्डाल मैचारी किशोरी को पकड़े लिये जाता है। हाय बेचारी किशारी को बचाने की फिक्र करो | रह तो जा नालायक पहिले मेरा मुकाबला कर ले । इस आवाज न राजा वीरेन्द्रसिंह तेजसिह इन्दसिंह और उसके साथियों को बहुत ही परेशान कर दिया और वे लोग घबडा कर चारों तरफ देखने तथा साचन लगे कि अब क्या करना चाहिए। बारहवॉ बयान हम ऊपर लिख आये है कि इन्द्रदेव ने भूतनाथ को अपने मकान से बाहर जाने न दिया और अपने आदमियों को यह ताकीद करके कि भूतनाथ को हिफाजत और खातिरदारी के साथ रक्खें, रोहतासगढ की तरफ रवाना हो गया यद्यपि भूतनाथ इन्ददेव के मकान में रोक लिया गया और वह भी उस मकान से बाहर जाने का रास्ता न जानन के कारण लाचार और चुप हो रहा मगर समय और आवश्यकता न वहाँ उसे चुपचाप बैटने न दिया और मकान से बाहर निकलने का मौका उस मिल ही गया। जब इन्द्रदेव रोहतासगढ की तरफ रवाना हो गया उसके दूसर दिन दोपहर के समय सऍसिंह जो इन्ददेव का बडा । विश्वासी एयार था भूतनाथ के पास आया और बोला क्यों भूतनाथ तुम चुपचाप बैठे क्या सोच रहे हो? भूत-यस अपनी बदनसीवी पर रोता और झख मारता हू, मगर इसके साथ ही इस बात को सोच रहा हू कि आदमी को दुनिया में किस ढग से रहना चाहिये। स!-क्या तुम अपन को बदनसीब समझते हो? भूत-क्यों नहीं तुम जानते हो कि वर्षों से मैं धीरेन्द्रसिह का काम कैसी ईमानदारी और नेकनीयती के साथ कर रहा हू? और क्या यह बात तुमसे छिपी हुई है कि उस सेवा का बदला भाज मुझे क्या मिल रहा है? सर्य- ( पास बैठकर ) मैं सब जानता हूँ मगर भूतनाथ मैं फिर भी यह कहने से बाज न आऊँगा कि आदमी को कभी हताश नहीं होना चाहिए और हमेशा बुरे कामों की तरफ से अपने दिल को रोककर नेक काम में तन-मन-धन से लगे रहना चाहिए। ऐसा करने वाला निःसन्देह सुख भोगता है चाहे बीच यीच में थोड़ी बहुत तबलीफ भी क्यों न उठानी पड़े देवकीमन्नमत्री समग्र