पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३६

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शि 1 से समझाया कि शिवदत्त को किसी तरह का शक न रहा और उसने कहा अब मैं बखूबी समझ गया। उसी समय बगल से यह आवाज आई "ठीक है मै भी समझ गया। वह पेड यहुत मोटा और जगली लताओं के चढ़े होने से घना हो रहा था। शिवदत्त और कल्याणसिह की पीठ जिस पेड की तरफ थी उसी की आड में कुछ दर से खड़ा एक आदमी उन दोनों की बातचीत सुन रहा और छिप कर उस नक्शे को भी देख रहा था। जब उसने कहा कि 'ठीक है, मै भी समझ गया तब ये दोनों चौके और घूमकर पीछे की तरफ दखने लगे मगर एक आदमी के भागने की आहट के सिवाय और कुछ भी मालूम न हुआ। कल्याण-लीजिये श्रीगणेश हो गया नि सन्देह धीरेन्द्रसिह के ऐयास को हमारा पता लग गया । शिवदत्त-यात तो ऐसी हीमालूम होती है लेकिन कोई चिन्ता नहीं देखो हम बन्दोबस्त करते है। कल्याण-अगर हम ऐसा जानते तो आपके ऐयारी को दूसरा काम सुपुर्द करके आग बढ़ने की राय कदापि न देते। शिवदत्त-धन्नूसिंह को बुलाना चाहिए। इतना कहकर शिवदत्त ने ताली बजाई मगर कोई न आया और न किसी ने कुछ जवाब दिया। शिवदत को ताज्जुब मालूम हुआ और उसने कहा, अभी तो हाथ में नगी तलवार लिये यहा पहरा दे रहा था चला कहा गया? कल्याणसिंह ने जफील बजाई आवाज सुनकर कई सिपाही दौड आये और हाथ जोडकर सामने खडे हो गये। शिवदत्त ने एक सिपाही से पूछा धन्नू कहा गया है । सिपाही-मालूम नहीं हुजूर अभी तो इसी जगह पर टहल रहे थे। शिवदत्त-देखो कहा है, जल्द बुलाआ । हुक्म पाकर वे सब चले गए और थोड़ी ही देर में वापस आकर बाले 'हूजूर करीव में तो कहीं पता नहीं लगता शिव-बड़े आश्चर्य की बात है। उसे दूर जाने की आज्ञा किसने दी? इतने ही में हाफता हाफता धन्नूसिह भी आ मौजूद हुआ जिसे देखते ही शिवदत्त ने पूछा 'तुम कहा चले गये थे। धन्नू महाराज कुछ न पूछिये मैं तो बड़ी आफत में फस गया था ! शिवदत्त-सो क्या ! और तुम बदहवास क्यों हो रहे हो? धन्नू मैं इसी जगह पर धूम-घूम कर पहरा दे रहा था कि एक लडकेन जिसे मैंने आज के सिवाय पहिले कभी देखा नथा आकर कहा, ' एक औरत तुमसे कुछ कहना चाहती है। यह सुनकर मुझे ताज्जुब हुआ और मैने उससे पूछा वह औरत कौन है कहा है और मुझसे क्या कहा चाहती है?' इसके जवाब में लडका वाला सो सब मैं कुछ नहीं जानता तुम खुद चलो और जो कुछ वह कहती है सुन लो इसी जगह पास ही में तो है। 'इतना सुन कर ताज्जुब करता हुआ मैं उस लड़के के साथ चला और थोड़ी ही दूर पर एक औरत को देखा। (कापकर) क्या कहू ऐसा दृश्य तो आज तक मैने देखा ही न था। शिव-अच्छा अच्छा कहो वह औरत कैसी और किस उम्न की थी। धन्नू-कृपानिधान वह बडी भयानक औरत थी। काला रंग बडी बड़ी और लाल आखें हाथ में लोहे का एक डडा लिये हुए थी जिसमें बड़े बड़े काटे लगे थे और उसके चारों तरफ बड़े-बड़े और भयानक सूरत के कुते मौजूद थे जो मुझे देखत ही गुर्राने लगे। उस औरत ने कुत्तों को डाटा जिससे वे चुप हो रहे मगर चारों तरफ से मुझे घेर कर खड़े हो गये। डर के मारे मेरी अजब हालल हो गई। उस औरत ने मुझसे कहा अपने हाथ की तलवार म्यान में कर ले नहीं तो ये कुत्ते तुझे फाड खायेंगे। इतना सुनते ही मैने तलवार म्यान में कर ली और इसके साथ ही वे कुत्ते मुझसे कुछ दूर हटकर खडे हो गए। (लबी सास लेकर ) ओफ आह ! इतने भयानक और बडे कुत्ते मैने आज तक नहीं देखे थे । शिवदत्त-(आश्चर्य और भय से ) अच्छा अच्छा आगे चला तब क्या हुआ? धन्नू -मैने डरते-डरते उस औरत से पूछा- आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया? उस औरत ने कहा मैं अपनी वहिन मनोरमा से मिलर चाहती हू उसे बहुत जल्द मेरे पास ले आ । शिवदत्त-(आश्चर्य से) अपनी बहिन मनोरमा से । धन्नू-जी हा। मुझे यह सुन कर बडा आश्चर्य हुआ क्योंकि मुझे स्वपन में भी इस बात का गुमान न हो सकता था कि मनोरमा की बहिन ऐसी भयानक राक्षसी होगी । और महाराज उसने आपको और कुँअर साहब को भी अपने पास बुलाने के लिए कहा। कल्याण-(चौककर ) मुझे और महाराज को? धन्नू जी हा। शिव-अच्छा तब क्या हुआ? देवकीनन्दन खत्री समग्र ६२८