पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३७

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cert धन्न-मैने कहा कि तुम्हारा सन्देशा मनोरमा को अवश्य देदूगा मगर महाराज और कुँअर साहब तुम्हारे कहने से यहा नहीं आ सकते। कल्याण-तब उसने क्या कहा? धन्न बस मेरा जवाब सुनते ही वह बिगड़ गई और डाट कर बोली खवरदार ओ कम्बख्त जो मै कहती है वह तुझे और तेरे महाराज को करना ही होगा "(कापकर) महाराज उसके डाटने के साथ ही एक कुत्ता उछल कर मुझ पर चढ़ बैठा। अंगर वह औरत अपने कुत्ते को न डाटती और न रोकती तो बस मै आज ही समाप्त हो चुका था (गर्दन और पीठ के कपडे दिखा कर) देखिए मेरे तमाम कपड़े उस कुत्ते के बडे बडे नाखूनों की बदौलत फट गए और बदन भी छिल गया, देखिये यह मेरे ही खून से मेरे कपडे तर हो गये है। शिवदत्त-(भय और घबराहट से आफ ओह धनसिह तुम तो जख्मी हो गये तुम्हारे पीठ पर के कपडे सब लहू से तर हो रहे है ।। धन्न जी हा महाराज बस आज मैं काल के मुहँ से निकल कर आया हू मगर अभी तक मुझे इस बात का विश्वास नहीं होता कि मेरी जान बचेगी। कल्याण-सो क्यों? धन्न-जवाब देने के लिए लौट कर मुझे फिर उसके पास जाना होगा। कल्याण सो क्या । अपर न जाओ तो क्या हो? क्या हमारी फौज में भी आ कर वह उत्पात मचा सकती है? इतने ही में दो तीन भयानक कुत्तों के भोकने की आवाज थोड़ी ही दूर पर से आई जिसे सुनते ही धन्भूसिह थरयर कापने लगा। शिवदत्त तथा कल्याणसिह भी डरकर उठ खड़े हुए और कापते हुए उस तरफ देखने लगे। उसी समय यदहवास और घबडाई हुई मनोरमा भी वहा आ पहुची और बोली अभी मैन भूतनाथ की सूरत देखी है वह बेखौफ मैरी पालकी के पास आकर कह गया है कि आज तुम लोगों की जान लिये बिना मैं नहीं रह सकता । अब क्या होगा? उसका चेखौफ यहा चले आना मामूली बात नहीं है । । तेरहवा माग समाप्त ।।

चन्द्रकान्ता सन्तति चौदहवां भाग पहिला बयान धन्नूसिह की बातों ने शिवदत्त और कल्याणसिह को ऐसा बदहवास कर दिया कि उन्हें बात करना मुश्किल हो गया। शिवदत्त सोच रहा था कि कुछ देर की सच्ची मोहलत मिले तो मनोरमा से उसकी बहिन का हाल पूर्छ मगर उसी समय घबराई हुई मनोरमा खुन ही वहा आ पहुची और उसने जो कुछ कहा वह और भी परेशान करने वाली बात थी। आखिर शिवदत्त ने मनोरमा से पूछा 'क्या तुमने अपनी आखों से भूतनाथ को देखा ? मनोरमा-हाँ मैने स्वय देखा और उसने यह वान मुझी से कही थी जो मैं आपसे कह चुकी हूँ? शियदत्त-क्या वह तुम्हारी पालकी के पास आया था ? मनोरमा हो मै माधवी से बातें कर रही थी कि वह निडर होकर हम लोगों के पास आ पहुंचा और धमका कर चला शिवदत्त-तो तुमने आदमियों को ललकारा क्यों नहीं? गया। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४