पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मनोरमा-क्या आप भूतनाथ को नहीं जानते कि वह कैसा भयानक आदमी है ? क्या वे तीन-चार आदमी भूतनाथ को गिरफ्तार कर लेत जा मेरी पालकी के पास थे? शिवदत-ठीक है वह बड़ा ही भयानक ऐयार है दो चार क्या दस पाँच आदमी भी उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। मै तो उसके नाम से कॉप जाता है। ओफ वह समय मुझे कदापि नहीं भूल सकता जब उसने सहा बन कर मुझे अपने चंगुल में फसा लिया था। अपने चेले को भीमसेन की सूरत ऐसा बनाया कि मैं भी पहिचान न सका। मगर बड़े आश्चर्य की बात यह है कि आज वह असली सूरत में तुम्हें दिखाई पड़ा । उसका इस तरह चले आना मामूली बात नहीं है । मनोरमा-जितना मै उसका हाल जानती हू आप उसका सोलहवा हिस्सा भी न जानते होंगे और यही सक्य है कि इस समय डर के मारे मेरा कलेजा काप रहा है, फिर जहा तक मै ख्याल करती है वह अकेला भी नहीं है। शिवदत्त-नहीं नहीं वह अकेला कदापि न होगा। (धन्नूसिह की तरफ इशारा करके ) इसने भी एक ऐसा ही भयानक खबर मुझे सुनाई है। मनोरमा-(ताज्जुब से ) वह क्या ? शिवदत्त इसका हाल धन्नूसिंह की जुबानी ही सुनना ठीक होगा। (धन्नूसिह से) हा तुम जरा उन बातों को दोहरा तो जाओ! धन्नूसिह-बहुत खूब इतना कहकर धन्नूसिह उन बातों को ऐसे दग से दोहरा गया कि मनोरमा का कलेजा काप उठा और शिवदत्त तथा कल्याणसिह पर पहिले से भी ज्यादे असर पड़ा। शिवदत्त-(मनोरमा से) क्या वास्तव में वह तुम्हारी बहिन है? मनोरमा-राम राम ऐसी भयानक राक्षसी मेरी बहिन हो सकती है ? असल तो यह है कि मैं अकेली है, न कोई बहिन हैन भाई। धन्नू-तब जरा खडे खडे उसके पास चली चलो और जो कुछ वह पूछे उसका जवाब दे दो। मनोरमा-(रज होकर ) मैं क्यों उसके पास जाने लगी जाकर कह दी कि मनोरमा नहीं आती। धन- खैरखाहीं दिखाने के द्वग से ) मालूम होता है कि तुम अपने साथ ही साथ हमारे मालिक पर भी आफत लाया चाहती हो। (शिवदत्त से) महाराज उस राक्षसी ने जितनी याते मुझसे कहीं मै अदय के ख्याल से अर्ज नहीं कर सकता तथापि एक बात केवल आप ही से कहने की इच्छा है। धन्नूसिह की बात सुनकर मनोरमा को डर के साथ ही साथ क्रोध भी चढ आया और वह कड़ी निगाह से धन्नूसिह की तरफ देखकर बोली महाराज के खैरखाह एक तुम्ही तो दिखाई देते हो ! इतनी बडी फौज की अफसरी करने के लिए क्यों मरे जाते हो जो एक औरत के सामने जाने की हिम्मत नहीं है?' धन्न-हिम्मत तो लाखों आदमियों के बीच घुस कर तलवार चलाने की है मगर केवल तुम्हारे सबब से अपने मालिक पर आफत लाने और अपनी जान देने का हौसला कोई बेवकूफ आदमी भी नहीं कर सकता: (शिवदत्त से तिस पर भी महाराज जो आज्ञा दे उसे करने के लिए मै तैयार हू, यदि आग में कूद पड़ने के लिए भी कहें तो क्षण भर देर लगाने वाले पर लानत भेजता हूँ, परन्तु मेरी बात सुनकर तब जो चाहे आज्ञा दे । इतना सुनकर शिवदत्त उठ खड़ा हुआ और धन्नूसिह को अपने पीछे आने का इशारा करके कुछ दूर चला गया जहा से उनकी बातचीत कोई दूसरा नहीं सुन सकता था। शिवदत्त-हा धन्नूसिह कहो अब क्या कहते हो? धन्नू-महाराज क्षमा करें रज न हो । भै सरकार का नमकदार गुलाम हू इसलिए सिवाय सरकार की भलाई के मुझे और कुछ भी नहीं सूझता। मै यह नहीं चाहता कि मनोरमा के सबब से जो आपकी कुछ भी भलाई नहीं कर सकती बल्कि आपके सवव से अपन को फायदा पहुंचा सकती है आप किसी आफत में फस जाय। मैं सच कहता है कि वह भयानक औरत साधारण नहीं मालूम होती। उसने कसम खाकर कहा था कि मैं केवल एक पहर तक राजा शिवदत्त का मुलाहिजा करणी इसके अन्दर अगर मनोरमा मेरे पास न भेजी जायमी या अलग न कर दी जायगी तो राजा शिवदत्त को

  • देखिये चन्द्रकान्ता सन्तलि छठवा भाग दूसरा बयान ।

1 देवकीनन्दन खत्री समग्र