पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३९

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दि ta इस दुनिया से उठा दूंगी और अपने कुत्तों को जो आदमी के खून के हर दम ध्यासे रहते हैं बस महाराज अब आगे कहने से अदब जवान रोकती है। (कापकर ) ओफ ये भयानक कुत्ते जो शेर का कलेजा फाड़कर खा जाय (रुककर) फिर मनोरमा की जुबानी भी आप सुन ही चुके हैं कि भूतनाथ यकायक यहा पहुँचकर मारमा से क्या कह गया है इसलिए (हाथ जोडकर )मै अर्ज करता है कि किसी बहाने मनोरमा को अपने से अलग करें। सरकार खूब समझ सकते है कि जिस काम के लिए जा रहे हैं उसमें सिवाय कुँअर कल्याणसिह के और कोई भी मदद नहीं कर सकता फिर एक मामूली औरत के लिए अपना हर्ज या नुकसान करना उचित नहीं आगे महाराज मालिक है जो चाहें करें। शिवदत्त-तुम्हारा कहनग यहुत ठीक है मैं भी यही साच रहा हु। जिस जगह ये दोना खडे होकर बात कर रहे थे वहा एक दम निराला था कोई आदमी पणस न था। शिवदत्त ने अपनी बात पूरी भी न की थी कि यकायक भूतनाथ वहा आ पहुचा और कड़ाई के ढग से शिवदत की तरफ देखकर बोला इस अंधेरे में शायद तुम मुझे न पहिचान सको इसलिए में अपना नाम भूतनाथ बता कर तुम्हें होशियार करता हूँ कि घण्टे भर के अन्दर मैरी खुराक मनोरमा को मेरे हवाले करो या अपने साथ से अलग कर दो नहीं तो जीतान छोडूगा इतना कहकर बिना कुछ जवाब सुने भूतनाथ वहा से चला गया और शिवदत्त उसकी तरफ देखता ही रह गया। शिवदत्त एक दफे भूतनाथ के हाथ में पड़ चुका था और भूतनाथ ने जो सलूक उसके साथ किया था उसे वह कदापि भूल नहीं सकता या बल्कि भूतनाथक नाम ही से उसका कलेजा कापता था इसलिए वहा यकायक भूतनाथ के आ पहुंचने से वह काप उठा और धन्नूसिह की तरफ देखकर बोलो, नि सदेह यह बड़ा ही भयानक ऐयार है। धन्नू-इसीलिए में अर्ज करता हूं कि एक साधारण औरत के लिए इस भयानक ऐयार और उस राक्षसी को अपना दुश्मन बना लना उचित नहीं है। शिवदत्त-तुन ठीक कहते ही अच्छा आओ में कल्याणसिह से राय मिला कर इसका बन्दोबस्त करता है। धन्नूसिह को साथ लिए हुए शिवदत्त अपने ठिकाने पहुंचा जहा कल्याणसिह और मनोरमा को छोड़ गया था। मनारमा को यह कह कर वहा से विदा कर दिया कि-- तुम अपने ठिकाने जाकर बैठो हम यहा से कूच करने काबन्दाबस्त करत है और निश्चय हो जाने पर तुमको बुलावेंगे और जब वह चली गई और नहा केवल यही तीन आदमी रह गये तब चातचीत होन लगी। शिवदत्त न धन्नूसिह की जुबानी जो कुछ सुना था और धन्नूसिह की जो कुछ राय हुई थी यह सब तथा बातचीत क समय यकायक भूतनाथ क आ पहुचने और धमका कर चले जाने का पूरा हाल कल्याणसिह से कहा और पूछा कि- अब आपकी क्या राय होती है ? कुँअर कल्याणसिह ने कहा, 'मैं धन्नूसिह की राय पसन्द करता है। मनोरमा के लिए अपने को आफत में फसाना बुद्धिमानी का काम नहीं है अस्तु किसी मुनासिब ढग से उसे अलग ही कर देना चाहिए ! शिवदत्त-तिस पर भी अगर जान वधे तो समझें कि ईश्वर की बडी कृपा हुई। कल्याण-सा क्या ? शिवदत्त-मै यह सोच रहा हू कि भूतनाथ का यहा आना केवल मनोरमा ही के लिए नहीं है। ताज्जुर नहीं कि हम लोगों का कुछ भेद भी उसे मालूम हो और यह हमारे काम में बाधा डाले। कल्याण-ठीक है मगर काम आधा हो चुका है केवल हमार और आपके यहा पहुंचन भर की देर है। यदि भूतनाथ हम लागो का पीछा भी करेगा तो रोहतासगढ तहखान के अन्दर हमारी मर्जी के बिना वह कदापि नहीं जा सकता और जब तक वह मनारमा को ल जाफर कहीं रखने या अपना काई काम निकालने का बन्दावस्त करेगा तब तकता हम लोग सहतासगढ़ स पहुच कर जा कुछ करना है कर गुजरेंगे। शिवदत-इश्यर कर ऐसा ही हो अच्छा अब यह कहिये कि मनोरमा को किस ढंग से अलग करना चाहिए? कल्याण-(धन्नूसिह स ) तुम बहुत पुरान और तजुर्वेकार आदमी हा तुम ही वताआ कि क्या करना चाहिए? धन्नू-मणेता यही राय है कि मनोरमर को बुलाकर समझा दिया जाय कि अगर तुम हमारे साथ रहोगीता भूतनाथ तुम्हें कदापि न छोडेग्म सा तुम मर्दानी पोशाक पहिर कर धन्नूतिह के (हमारे) साथ शिवदत्तगढ की तरफ चली जाओ घर तुम्ह हिफाजत के साथ वहा पहुवा दगा जब हम लौट कर तुमसे मिलेंग तो जसा होगा किया जायगा। अगर तुम अपन आदमियों का साथ ले जाना चाहोगी तो भूतनाथ को मालूम हो जायगा अतएव तुम्हारा अकले हो यहा से निकल जामह। शिवदत्त-टाया है लेकिन आर वह इस बात को मजूर कर ले तो क्या तुम ना उसी के साथ चले आग? तय तो हमारा डा हर्ज होगा। $ चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४ ६३१