पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६४१

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चारों तरफ आधा कास का साफ मैदान था यहा तक कि सरपत जगली बैर या पलास का भी काई पडन था जिसका होना जगल या जगल के आस पास अवश्यक समझा जाता है तब धन्नूसिह ने अपने घोडे का मुंह उसी आम के पेड की तरफ यह कह क फरा- मेरे पट में कुछ दर्द हो रहा है इसलिए थाडी देर तक इस पेड के नीचे ठहरने की इच्छा होती मनोरमा - क्या हर्ज है ठहर जाओ मगर यौफ है कि कहीं भूतनाथ न आ पहुचे। धन्दू-अव भूतनाथ के आन को आशा छाड़ा क्योंकि जिस राह से हम लोग आय है वह भूतनाथ का कदापि मालूम न हागो मगर मनारमा तुम ना भूतनाथ से इतना डरती हौ कि मनो-(यात काटकर ) भूतनाथ नि सन्दह ऐसा ही भयानक एयार है। पर थाडी ही दिन की बात है कि जिस तरह आज मै भूतनाथ न डरती हू उत्तस ज्यादे भूतनाथ मुझस डरता था । धन्नू-हा जब तक उसके कागजात तुम्हारे या नागर के कब्जे में थे । मनो-(चोककर ताज्जुब से ) क्या यह हाल तुनको मालूम है ? धन्नू-यहुत अन्टी तरह। / मना-सा कैस इतने ही में व दोनों उस पडके नीच पहुँच गय और धन्नूसिह यह कहकर घोड़े के नीच उतर गया कि अब जरा बेठ जाय ता कह। मोरमा भी घाड़ से नीच उतर पडी,दानों घोडे लम्बी बागडार क सहारे डाल के साथ चाध दिए गए और जीन पोश विछा कर दोनों आदमी जनीन पर बैठ गया रात आधी से ज्यादे जा चुकी थी और चन्द्रमा की विमल चादनी जिसका थाडी दर पहल कहीं नाम निशान भी न था बड़ी खूपी के साथ चारों तरफ फैल रही थी। मनो-हा अब बताआ कि भूतनाथ के कागजात का हाल तुम्हें केस मालूम हुआ? धन्नू-मैने भूतनाथ की ही जुबानी सुना था । मनोहै 'क्या तुमसे और भूतनाथ से जान पहिचान है? घन्नू-बहुत अच्छी तरह। मनो-ता भूतनाथ न तुमस यह भी कहा हागा कि उसने अपने कागजात नागर के हाथ से कैसे पाये। धन्नू हा, पूतनाथ ने मुझस वह कित्सा भी बयान किया था, क्या तुमको वह हाल मालूम नहीं 3377 ? मनो- गुझ वह हाल कैस मालूम होता ? मैना मुद्दत तक कमलिनी के कैदखान में सडती रही और जय वहा से छूटी ता दूसर ही फर में पड गयी मगर तुम जब सब हान जानते ही हो तो फिर जान-बूझ कर ऐसा सवाल क्या करत हा? धन्नू-अफ पद का दद ज्याद होता जा रहा है । जरा हरो तो मैं तुम्हारी बातों का जवाब दू। इतना कह कर धन्नूसिह चुप हा गया और घण्ट भर से ज्याद दर तक याता का सिलसिला बन्द रहा। धन्नूसिह यद्यपि इतनी दर तक चुप रहा मगर बैठा ही रहा और मनोरमा की तरफ से इस तरह होशियार और चौकन्ना रहा जैसे किसी दुश्मन की तरफ होना चाजिव था साथ ही इसके धन्नूसिह की निगाह मैदान की तरफ भी इस ढगस पडती रही जैसे किसी के आने की उम्मीद हामनारमा उसऊं इस ढग पर आश्चर्य कर रही थी। यकायक उस मैदान में दो आदमो बड़ी तजी के साथ दोडत हुए उसी तरफ आत दिखाई पड जिधर मनारमा और धन्यूसह का डेरा जमा हुआ था। मनो-य दानो कौन है जो इस तरफ आ रह है। धन्न यही बात मै तुमसे पूछना चाहता था मगर जब तुमने पूछ ही लिया तो कहना पड़ा कि इन दोनों में एक तो भूतनाथ है। मनो-क्या तुम मुदत्त दिल्लगी कर रह हो? धन्मू-नही,कदापि नहीं। मनो-ता फिर एसी बात क्यों कहते हो? धन्न-इसलिए कि मैं वास्तव में धन्नूसिह नही है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४