पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

he भूत-(मनोरमा स ) लक्ष्मीदेवी का वाप जिसका पता लगान के लिए ही हम लोगों ने तुझे गिरफ्तार किया है। मनो-(घवडाकर) मुझसे और उससे भला क्या सम्बन्ध? मै क्या जानू वह कौन है या कहा है और लक्ष्मीदेवो किसका नाम है। भूत-खैर जब समय आवेगा तो सब कुछ मालूम हो जायगा। (हस कर) लक्ष्मीदेवी से मिलने के लिए तो तुम लोग रोहतासगढ़ जाते ही थे मगर बलभद्रसिह और इन्दिरा से मिलने का बन्दोवस्त अब मै कागा घबडाती काहे को हो। मनो--(घबराहट के साथ बेचैनी से ) इन्दिरा कैसी इन्दिरा ? आफ नहीं नहीं मै क्या जानृ कौन इन्दिरा क्या तुम लोगों से उसकी मुलाकात हो गई ? क्या उसने मेरी शिकायत की थी कभी नहीं वह झूठी है मै तो उसे प्यार करती थी और अपनी बटी समझती थी भगर उसे किसी ने बहका दिया है या बहुत दिनो तक दुख भोगने के कारण वह पागल हो गई है या ताज्जुब नहीं कि मेरी सूरत बनकर किसी ने उसे घाखा दिया हो। नहीं नहीं नह मैं न थी कोई दूसरी थी में उसका भी नाम बताऊगी। ऊची सास लेकर) नहीं नहीं इन्दिरा नहीं, में तो मथुरा गई हुई थी वह कोई दूसरी ही थी भला मै तेरे साथ क्यों ऐसा करन लगी थी । ओफ ! मेरे पेट में दर्द हो रहा है आ आह मैं क्या कर 1 मनोरमा की अजय हालत हो गई उसका बोलना और बकना पागलों की तरह मालूम पडता था जिसे दख भूतनाथ और सऍसिह आश्चर्य करने लगे मार दोनों ऐयार इतना तो समझ ही गये कि दर्द का बहाना करके मनोरमा अपने असली दिली दर्द को छिपाना चाहती है जो होना कठिन है। स' (भूतनाथ से ) खैर अब इसका पाखड कहा तक देखोगे यस झटपट ले जाओ और अपना काम करा। यह समय अनमोल है और इसे नष्ट न करना चाहिए। (अपने शागिर्द की तरफ इशारा करके ) इसे हमारे पास छोड जाओ मनी अपने काम की फिक्र में लगू। भूतनाथ ने बहोशी की दवा सुंघा कर मनोरमा का येहोश किया और जिस घाडे पर वह आई थी उसी पर उसे लाद आप भी सवार हो पूरव का रास्ता लिया उधरे रा सिह अपने चेले को मनोरमा बनाने की फिक्र में लगा। तीसरा बयान हम ऊपर लिख आए है कि शेरअलीखा खातिरदारी और इज्जत क साथ रोहतासगढ में रक्खा गया क्योंकि उसन अपने कसूरों की माफी मागी थी और तेजसिह ने उसे माफी दे भी दी थी। अब हम उस रात का हाल लिखते है जिस रात राजा वीरेन्दसिह तेजसिह और इन्द्रदेव वगैरह तहखान के अन्दर गये थे और यकायक आ पड़ने वाली मुसीरत में गिरफ्तार हो गये थे। उन लागों का किसी काम मे लिए तहखाने के अन्दर जाना शेरअलीखा को मालूम था मगर उसे इन बातों स कोई मतलब न था उसे तो सिर्फ इसकी फिक्र थी कि मूतनाथ का मुकदमा खतम होले ता वह अपनी राजधानी पटना की तरफ पधारे और इसी लिए वह राजा वीरेन्द्रसिह की तरफ से रोका भी गया था। जिस कमरे में शेर अलीखा का डेरा था वह बहुत लम्बा चौडा और कीमती असयाव से सजा हुआ था। उसके दोनों तरफ दो कोठरियाँ थी और बाहर दालान तथा दालान के बाद एक चौखूटा सहन था। उन दोनों कोठरियाम से जो कमरे के दोनों तरफ थी,एक में तो सोने के लिए बेशकीमत मसहरी बिछी हुई थी और दूसरी काठरी में पहिरने के कपडे तथा सजावट का सामान रहता था। इस कोठरी में एक दर्याला और था जो उस मकान में पिछले हिस्से में जाने का काम देता था मगर इस समय वह बन्द था और उसकी ताली दारोगा के पास थी जिस कोटरी में सोने की मसहरी थी। उसमें सिर्फ एक ही दर्वाजा था और दवाजे वाली दीवार को छोड क उसकी बाकी तीनों तरफ की दीवार आबनूस की लकडी की बनी हुई थी जिस पर यहुत चमकदार पालिस किया हुआ था। वही अवस्था उस कमरे की भी थी जिसमें शरअलीखाँ रहता था। रात डेढ पहर स कुछ ज्यादे जा चुकी थी। शरअलीखों अपने कमर में माटी गद्दी पर लेटा हुआ किताव पढ रहा था और सिरहाने की तरफ सगमरमर की छोटी सी चौकी के ऊपर एक शमादान जल रहा था इसके अतिरिक्त कमरे में और कोई राशनो नक्षी। यकायक सोन वाली कोठरी के अन्दर से एक एसी आवाज आईजैसे किसी ने मसहरी के साथ ठाकर खाई हो। शेर अलोखा चौक पड़ा और कुछ दर तक उसकाडरी को लरफ जिसके आगे पर्दा गिरा हुआ था.दयता रहा। जब पर्दयो भी हिलते देखा तोकितार जमान पर रखकर बैठ गया और उसी समय कल्याणसिह को पर्दा हटाकर बाहर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४